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3.9.08

बिहार और बाढ़

आजकल हर जगह बिहार की बाढ़ की चर्चा हो रही है की बिहार मैं बाढ़ आई है ,घर डूब रहे हैं , लोग मर रहे हैं , डाकू लुटेरे लूट रहे हैं , लोग अपने घरो को छोड़ कर जा रहे हैं , पानी ने सब तहस-नहस कर दिया है आदि ।
पर सोचने वाली बात ये है की आख़िर इसमें नया क्या है जो हम इतने दुखी हैं । इस बार की बाढ़ मैं और पिछले वाली बाढ़ मैं या उससे भी पहले वाली बाढ़ मैं क्या अन्तर है कि हम टी.वी पर २४ घंटे यही देखते रहें ? वही रोना -धोना , गिडगिडाना , अपनों कि लाशें अपने ही कंधो पे ढोना सब तो बिल्कुल वही है बिल्कुल वही , हाँ अगर इस बार कुछ बदला है तो वो है कुछ लोग । ये लोग भी प्रकृति के नियम के कारण हैं । कुछ मर जाते हैं तो कुछ नए पैदा हो जाते हैं । बस इसी कारण । इसलिए मुझे तो इस पर चर्चा कि कोई जरुरत महसूस नही होती । बिल्कुल भी नही ।


दोस्तों आपसब सोच रहे होंगे कि कितनी कठोर दिल कि है कि इसे कुछ महसूस ही नही होता न लोगो का दुःख न दर्द।
हाँ नही होता और न ही मैं महसूस करना चाहती हूँ आख़िर क्या फर्क पड़ता है मेरे या आपके महसूस भर कर लेने से। सालों से महसूस करते आए ,रोये भी खूब टी.वी पर लोगो कि दशा देख। पर हुआ क्या ? कुछ नही ? बल्कि साल दर साल बाढ़ grasit लोगो कि संख्या बढती ही जा रही है।
समझ नही आता कि क्या बिहार उन राज्यों मैं से एक है jinhe sarkaar सबसे कम रुपये देती है या उसकी तरफ़ dekhti तक नही कि वे हर साल बाढ़ मैं fansh जाते हैं और kram yu ही चलता रहता है । या फिर बिहार के neta कुछ ज्यादा ही samajhdaar हैं कि sarkaar से मिले पैसों को अपने घरो को बाढ़ से बचाने पर खर्च कर देते हैं की किसी का तो घर बचे ,जनता का नहीं तो बिहार के नेताओं का ही सही ।

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