जब मैंने पत्रकारिता का एक वर्षीया डिग्री प्राप्त की तब पता नही था की पत्रकारिता के लिए ये जरुरी नही होगा. वहां जहाँ मैं निवास करती हूँ ,हर कोई पत्रकार है यानि वो जिसकी गाड़ी पर प्रेस लिखा है, वो जो किसी न्यूज़ पेपर के ऑफिस में पेयून है, या किसी रिपोर्टर का छोटा भाई है. ये सब उसी तर्ज पर है जैसे पुलिस वाले अंकल की पुरी फॅमिली पुलिस होती है. आज यहाँ अपना पैर ज़माने के लिए की किसी बड़े पत्रकार से पहले साठगांठ करनी होते है फिर बड़े पत्रकार ये निर्णय करेंगे की आप किस पत्रकार वार्ता मे जाने लायक हो या नही. और यदि बिना पूछे आप चले गए तो मान कर चलिए आप तुच्छ प्राणी हो या किसी अजायब घर के जंतु. आपको सब जानते पहचानते है पर उस वक्त आप अकेले युद्ध भूमि में हो. अच्छा एक बात और जो उस वार्ता मैंने अपने आप को पत्रकार समझते है वो है पांचवी या दसवी पास कैमरामैन. आज उनकी तूती हर जगह बोलती है भले बात हॉस्पिटल की हो, थाने की या रेलवे की. आपकी क्या बिसात जो उनको चेलेन्ज कर पाओ...तो क्या यही मायने है पत्रकारिता के ? क्या पता
पर हमने भी " एक मशाल उठाई है हवाओ के खिलाफ"
मिस मंजुराज ठाकुर
सह संपादक http://www.narmadanchal.in/
3 comments:
miss aap hamare sriganganagar me kab aai. kyonki jo aapne likha wah to hamare yahan hota hai.it means we are sailing in the same boat.
मंजू जी,
सिर्फ बे आकार ही नहीं बिना पेंदी के लोटे भी, मैं जिस जगह से हूँ वहां पत्रकार कि पैदाइश ऐसी है जैसे धान के खेत में घास फूस, और ये ही वजह है कि सामजिक मान्यता के नाम पर हमारे यहाँ इन्हें दलाल से ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है.
जय जय भड़ास
प्रिय मंजू जी सामजिक मूल्यों में अवमूल्यन के साथ ही हर पेशे का नैतिक पतन हुआ है | चाहे डॉक्टर, वकील , अध्यापक , पुलिस , नेता या कोई भी हों ......... ऐसे में सिर्फ़ पत्रकार समुदाय को निशाना बनाना कहाँ तक उचित है ? वैसे भी अब पत्रकारिता जैसी कोई चीज़ कहाँ रह गई है .......... अब तो सिर्फ़ मीडिया है जो बाज़ार के इशारे पर या पूंजीपतियों के मुताबिक चलता है | पहले पत्रकारिता मिशन हुआ करती थी ......... आज चाटुकारिता और दलाली बन कर रह गई है |
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