Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

1.9.15

खनन माफिया का मुखपत्र बना जागरण... सहारनपुर में ब्रांडिंग के नाम पर करोड़ों का खेल


विश्व का नंबर वन अखबार होने का दावा करने वाला दैनिक जागरण वर्तमान में सहारनपुर जिले में खनन माफिया की रखैल बनकर रह गया है. संपादकीय प्रभारी, विज्ञापन प्रभारी, जिला प्रभारी से लेकर तहसील प्रभारी तक मोटी चांदी कूट रहे हैं. विज्ञापन और इवेंट की आड़ में अखबार को गिरवी रखकर जेबें भरने की कुछ ताजा मिसालें देखने को मिल रही हैं.


जिला प्रभारी संजीव जैन खबर लिखने के नाम पर पैसे ले रहे हैं. जितने स्क्वायर सेंटीमीटर की खबर उतने पैसे. यानी विज्ञापन छापने के बजाए खबर. ग्लोकल यूनिवर्सिटी खनन ठेकेदार कंपनी को चलाने वाले एमडी महमूमद अली की है, जिसके चांसलर मोहम्मद इकबाल हैं, जो बसपा से एमएलसी हैं. जागरण के बेहट तहसील प्रभारी हरिओम शर्मा आंख खुलते ही इनके मिर्जापुर स्थित आवास पर पहुंच जाते हैं और प्रत्येक दिन सवेरे का नाश्ता वहीं करते हैं. 28 अगस्त को दैनिक जागरण ने पेज 6 पर पूरे आठ कॉलम में ग्लोकल यूनिवर्सिटी में डीन नियुक्त होने की खबर ‘ग्लोकल स्कूल आफ एग्रीकल्चर साइंस के डीन बने डा. माजिद’ शीर्षक से छापी. दो दिन बाद 30 अगस्त को पेज 5 पर पांच कॉलम में एक अन्य खबर ‘व्यापार में डिजिटल मीडिया की भूमिका अहम’ प्रकाशित की. बाकी समाचार पत्रों में ये खबरें केवल सूचनात्मक थीं या छपी ही नहीं.

इसके अलावा दैनिक जागरण इवेंट के नाम पर तमाम आयोजन ग्लोकल यूनिवर्सिटी से प्रायोजित करा रहा है. सारा पैसा कैश लिया जाता है. खर्च यदि पांच लाख रुपये का होता है तो ग्लोकल यूनिवर्सिटी से 10 लाख लिए जाते हैं. सारे इवेंट में खुद संपादकीय प्रभारी मनोज झा आते हैं और अपना हिस्सा नकद लेकर जाते हैं. साथ में जागरण के ब्रांड मैनेजर अरुण तिवारी और जीएम विकास चुघ भी शामिल हैं. इवेंट मैनेजमेंट में जिस स्थानीय व्यक्ति का सहयोग लिया जाता है, उसके माध्यम से विकास चुघ और अरुण तिवारी अपने खातों में पैसा जमा कराते हैं. दैनिक जागरण में इस स्तर तक की गिरावट पहली बार अनुभव की जा रही है. ऊपर शिकायत करने पर या तो संपादकीय प्रभारी से बात करा दी जाती है और या फिर जीएम से. दोनों ही स्तर पर मामले को दबा लिया जाता है और शिकायतकर्ता को ही धमकाया जाता है. दोनों खबरों की क्लिपिंग संलग्न है. 

xxx

गुटों में बंटे सहारनपुर के पत्रकार... एक तरफ श्रमजीवी तो दूसरी तरफ धंधेबाज

सहारनपुर जिले के पत्रकार इन दिनों गुटों में बंटे हुए हैं. एक तरफ तमाम श्रमजीवी पत्रकार हैं, जिन्हें खबरों की भूख है तो दूसरी तरफ वे तमाम धंधेबाज पत्रकार हैं, जिन्हें अपने हित साधने हैं और आर्थिक लक्ष्य हासिल करने हैं. एक गुट की कमान दैनिक शाह टाइम्स के जिला प्रभारी अबू बकर शिब्ली के हाथ में है, जो उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष व जिला स्थाई प्रेस समिति के सदस्य हैं. दूसरे गुट की कमान राजेश जैन के हाथ में है, जो जैन समाज के अध्यक्ष हैं, लेकिन पत्रकारिता से उनका कोई दूर दूर का वास्ता नहीं है.

राजेश जैन भी खुद को उत्तर प्रदेश जर्नलिस्ट एसोसिएशन का जिलाध्यक्ष प्रचारित करते हैं. यह उपजा का दूसरा गुट है और हाईकोर्ट इसे फर्जी करार दे चुका है. राजेश जैन के साथ जो कथित पत्रकार जुड़े हैं, वे आजतक के स्ट्रिंगर अनिल भारद्वाज, आइबीएन-7 के फर्जी स्ट्रिंगर देवेश त्यागी, एबीपी न्यूज के स्ट्रिंगर मुकेश गुप्ता और जी-न्यूज़ की स्ट्रिंगर नीना जैन हैं. नीना को छोड़कर बाकी किसी का खबर से सरोकार नहीं है. पूरे दिन अफसरों की चाकरी और अपने विवादित जमीनों के धंधों में अफसरों का इस्तेमाल करना इनकी प्राथमिकता रहती है.

दैनिक जागरण के प्रभारी संजीव जैन और दैनिक हिंदुस्तान के प्रभारी नीरज चौधरी इनके साइलेंट पार्टनर हैं, जो अफसरों से इनके कामों की सिफारिश करते हैं. मिशन कंपाउंड स्थित एक बदनाम कोठी पर हर रात शराब और शबाब की महफिलें चलती हैं, जिसमें दोनों अखबारों के प्रभारी भी शामिल रहते हैं और किसी न किसी पुलिस अथवा प्रशासनिक अफसर या सत्ताधारी नेता को इसमें आमंत्रित किया जाता है. संजीव जैन शराब का नहीं, लेकिन शबाब का सेवन करते हैं और राजेश जैन को अपना मामा बताते हैं. तमाम अवैध निर्माणकर्ताओं से गिरोह हर रोज वसूली करता है. सहारनपुर के वास्तविक पत्रकारों की इमेज ऐसे धंधेबाजों ने खराब कर रखी है. राज्य सरकार ने जैन समाज के माफिया राजेश जैन के खिलाफ हाल ही में एक खुफिया जांच भी कराई है. 

media hunter 
mediahunter007@gmail.com

2 comments:

Madan said...

संजीव जैन तो पुराना ऐय्याश है। जब वह मेरठ में था तब तो उसका ठिकाना ही कबाड़ी बाजार था। कई बार उसे वहीँ देखा गया है। अब तो जोड़ीदार मनोज झा का और साथ मिल गया। सहारनपुर में कई बार अय्याशी का सुख भोग चुके हैं जागरण मेरठ के संपादकीय प्रभारी
रही बात रुपया कमाने की तो उसमे भी संजीव जैन अव्वल है। हर काम के रेट फिक्स हैं। जागरण के मालिक के काम बताकर अफसरों को दबाव में लेता है। ब्रांड विभाग के अरुण तिवारी को गिफ्ट और पैकेट की खुरचन दे देते हैं, जबकि असली माल मनोज झा और विकास चुघ पी जाते हैं। संजीव जैन महीने में दो बार मेरठ पंहुचता है, नहीं तो त्रिदेव पंहुच जाते है।जागरण मेरठ अपने पतन की पराकाष्ठा पर है। सारे चोर इकट्ठा हो गए और मालिक चुपचाप देख रहा है।

एक जागरणकर्मी said...

मीडिया में घुसपैठ कर चुके डकैत का नाम है मनोज झा। सहारनपुर में मीडिया दलाल संजीव जैन को प्रभारी बनाकर खुली लूट मचा रखी है, वहीं बाकि के जिलों में भी ऐसी ही गंध मचाई है। पहले तो जिलों में मोटी रकम लेकर चार्ज दे रहा है, फिर महीने दर महीने वसूली अलग से। बिजनौर में योगेश राज को प्रभारी बनाया है, जो जिला पाने के लिए खुलेआम एक लाख की घूस की पेशकश कर चुका था। रूपये लिए जिला दिया। बिजनौर में अवैध खनन और लकड़ी कटान का ठेकदार बन गया वो। बुलंदशहर में नीरज गुप्ता द्वितीय को इंचार्ज बनाया तो उससे भे 50 हज़ार लिए, महीना अलग से। अब सुमन लाल कर्ण को बनाया तो उससे भी 50 हज़ार। नक़ल माफिया से सेटिंग की ऑडियो क्लिप जगजाहिर है कर्ण की। मुज़फ्फरनगर में प्रवीण वशिष्ठ है, जो विज्ञप्ति पर 500 रूपये पकड़ रहा है। मुज़फ्फरनगर की सीधी डीलिंग मनोज झा दलाल पत्रकार रवींद्र चौधरी के मार्फ़त करता है। शामली में अश्वनी त्रिपाठी है, जो खुलेआम देहात के रिपोर्टरों से 3-3 हज़ार वसूली करता है। न-नुकुर पर मनोज झा को पैसे पहुंचाने की हामी भरता है। ये तो मनोज झा के गुर्गों का चरित्र है। झा का तो और बुरा हाल है। तैनाती में तो घूसखोरी कर ही रहा है, नयी नियुक्तियों में भी 20 से 25 हज़ार (जैसा हाथ लगे) ऐंठ रहा है। देहात के रिपोर्टरों से तेल, गुड़, चीनी, चावल, गेहूं तक मंगा रहा है। इसकी कई ओडियो रिकॉर्डिंग भी मार्केट में हैं, जिसमें यह डिमांड करता सुनाई पड़ता है। फ़िलहाल जनरल मैनेजर विकास चुघ और ब्रांड विभाग के अरुण तिवारी के साथ इसने गिरोह बना रखा है। जिलों में कार्यक्रम कराने के नाम पर मोटी वसूली करते हैं और बड़ा हिस्सा तीनों मनोज झा, विकास चुघ और अरुण तिवारी अपनी जेब में रखते हैं। अकाउंट में रुपया जमा कराने की बात सौ फीसदी सही है। बुलंदशहर में मुशयारे के नाम पर भी वसूली की और सारा माल पी गयी तिकड़ी।