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28.12.11

साक्षात् देवी -एक लघु कथा


साक्षात् देवी -एक लघु कथा 
jai mata dijai mata di


शुचि  का  मूड  सुबह  से  ही  ख़राब  था  .उसके यहाँ बर्तन साफ करने वाली जमुना मौसी की बेटी का विवाह बीस हजार रूपये का इंतजाम न होने के कारण आगे टलने के कगार पर था और शुचि के पतिदेव विपुल ने उन्हें बीस हजार रूपये उधार  देने से इंकार कर दिया था .शुचि जानती  थी की आज  कल  विपुल को  व्यापार  में घाटा  झेलना  पड़  रहा  है  वरना  वो  भी  किसी की मदद करने में पीछे नहीं हटता .ऐसी ही ख़राब मूड में वो घर के कम में लग गयी थी और विपुल अपने कार्य स्थल को रवाना हो गया .दिन में दो बजे अचानक विपुल को घर लौटा देख शुचि उसके स्वास्थ्य को लेकर सशंकित हो उठी पर विपुल के चेहरे पर आई चमक देखकर वह भी खिल उठी .विपुल चहकता हुआ बोला-''....शुचि जल्दी से तैयार हो जाओ ..हम अभी जमुना मौसी के घर चलेंगे .....उनकी बिटिया का विवाह अब नहीं टलेगा .....याद है मैंने आने वाले नवरात्रों में देवी मैया  को जोड़ा व् कंगन चढाने  की प्रतिज्ञा की थी पर अब जब असली कन्या देवी रूप में हमारी भेंट  स्वीकार  कर रही रही तब मैं साक्षात् देवी की उपेक्षा का पाप अपने सिर  पर ले सकता हूँ ?....शुचि का ह्रदय  आनन्द  से भर उठा और नेत्र श्रृद्धा जल से नम हो गए .वो हाथ जोड़कर देवी मैय्या को नमस्कार करती हुई बोली-''विपुल देवी मैय्या ने ही आपको यह अच्छी सोच प्रदान की है .देखना आज जमुना मौसी के रूप में माता हमारी झोली आशीषो से भर देगी !''

                                                 शिखा कौशिक 
                               [मेरी कहानियां ]
                     

1 comment:

उपेन्द्र नाथ said...

बहुत ही अच्छा सन्देश देती लघुकथा . काश हम सही अर्थो में मानवता को समझ पाते.