आज यह बहुत ही अहम् प्रश्न है कि हम भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक निर्णायक जंग लड़ने को तैयार हैं या नहीं । अन्ना में गांधीवादी तेवर हैं परन्तु क्या इस भोगवादी संस्कृति के पास अन्ना के पीछे चलने की दृढ इच्छाशक्ति है ? क्या अनशन पर अंकुश लगाने की मंशा रखने वाली सरकार को यह पता है कि अनशन एक प्रकार की उपासना है , यह मनुष्य का ईश्वर के प्रति सत्याग्रह है और किसी सरकार का इसमें हस्तक्षेप कुछ अतिविशिष्ट परिस्थितियों में ही युक्तियुक्त माना जा सकता है ? और क्या अपने आप में गुणात्मक बदलाव लाये बिना आप और हम यह लड़ाई जीत लेंगे ?ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो बहस की अपेक्षा रखते हैं ताकि हम एक सही संकल्प तक पहुँच पायें ।
11.12.11
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