मआज़ खान
स्वतंत्र पत्रकार.
अन्ना हजारे द्वारा चलाये गए भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम का उल्टा असर पड़तादिखाई दे रहा है,ऐसा लगता है की भ्रष्ट लोगों ने यह ठान लिया है कि वहभ्रष्टाचार करेंगे ही जिसे जो करना है करे? ए.रजा के साथ दूसरे बड़ेनेताओंऔर नौकर शाहों कि जेल जाने का भी कोई असर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है,ऐसा महसूस होता है कि भ्रष्टाचार में दिन प्रति दिन बढ़ोतरी ही होतीजारही है,
शिक्षण संस्थानों में अभी तक कोई इतना बड़ा भ्रष्टाचार नहीं हो रहा था लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ वाईस चांसलरों को अन्ना कि भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम से चिढ हो गयी है.उन्होंने यह ठान ली है कि वह हर वो काम करेंगे जिसकी कानून इजाज़त नहीं देता .कमसे कम जामिया हमदर्द विश्व विद्यालय के वाईस चांसलर के बारे में तो यह बात दावे से कही जा सकती है.
जामिया हमदर्द के सबसे वरिष्ठ प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल ने 9 अगस्त 2011 को जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर डॉ.ग़ुलाम नबी क़ाज़ी को एक पत्र लिख कर विश्वविद्यालय में हो रही धांधलियों से अवगत कराया और यह भी मांग कि के इन धांधलियों कि निष्पक्ष जाँच करायी जाये? प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल के पत्र में और भी कई घोटालों का विवरण है.सबसे बड़ा घोटाला हमदर्द इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइन्सेज़ एंड रिसर्च (एह.आई.एम्.एस.ए.आर ) का है.पहले हमदर्द विश्व विद्यालय कि ज़मीन पर इसे प्राइवेट मेडिकल कालेज खोलने कि पेशकश कि गयी थी मगर जन आन्दोलन और मेडिकल काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के विरोध के बाद उसे जामिया हमदर्द का हिस्सा बताया गया.कहा जाता है कि इस प्रोजेक्ट पर करोडो रूपए खर्च किये जा चुके हैं मगर मेडिकल कालेज का दूर- दूर तक कहीं कोई पता नहीं है.प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल के पत्र से यह लगता है कि घोटाला बहुत बड़ा है मगर इसे जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर डॉ.ग़ुलाम नबी क़ाज़ी ने कोई कार्यवाई कराना तो दूर उन्होंने अपने कई भाषणों और सम्मेलनों में प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल को ही आड़े हाथो लेते हुए अप शब्द भी कहे जिसका विवरण जामिया हमदर्द के चांसलर सय्यद मुहम्मद हामिद को 21 सितम्बर 2011 को लिखे अपने पत्र में प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने दिया है.इस पत्र में प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने यह भी कहा है कि उन्हें कुछ अपरिचित लोगों द्वारा फोन करके धमकियाँ भी दी जा रही है.मगर अभी तक चांसलर सय्यद मुहम्मद हामिद की ओर से
कोई जवाब नहीं आया है जिससे यह कहा जा रहा है कि आखिर चांसलर ने इस पर कोई कार्यवाई क्यूँ नहीं कि ? क्या मजबूरी हो सकती है चांसलर कि ? ये सवाल उठता है कि चांसलर कि ख़ामोशी कही कोई राजनीति दबाव का असर तो नहीं है? प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने एक पत्र विश्व विद्यालय अनुदान आयोग को भी भेजा था जिसपर विश्विद्यालय अनुदान आयोग ने संज्ञान लेते हुए जामिया हमदर्द से जवाब माँगा तो अभी तक कोई ऐसे तथ्य सामने नहीं आये हैं कि जामिया हमदर्द ने इसके जवाब में विश्व विद्यालय अनुदान आयोग को क्या जवाब दिया और उसका कंटेंट क्या था?
जामिया हमदर्द में इन बातों से काफी बेचैनी का माहौल बना हुआ है.लोग वाईस चांसलर से तो दुखी हैं मगर साफ़ बोलने से भी परहेज़ करते हुए दिखाई दिए.एक और प्रोफ़ेसर ने जामिया हमदर्द टीचर्स एसोसियशन (जे.एच.टी.ए.) के अध्यक्ष को लिखे पत्र में भी हो रही धांधलियों कि ओर ध्यान आकर्षित कराया है.17 अगस्त 2011 को लिखे गए इस पत्र से साफ़ पता चलता है कि जामिया हमदर्द के शिक्षकों का भी शोषण हो रहा है.कुछ शिक्षक जो करीब 12 /13 वर्षों से शिक्षण का कार्य कर रहे हैं मगर उन्हें अभी तक कोई प्रोमोशन तक नहीं दी गयी है आज भी वह एक लेक्चरार के पद पर ही कार्यरत हैं जबकि कई ऐसे शिक्षक हैं जो इन्ही के कार्य काल में जामिया हमदर्द में बहाल हुए और आज प्रोफ़ेसर के पद पर असीन हैं.
मास्टर ऑफ़ ब्युज्नेस अप्लिकेशन (एम्.बी.ए ) और मास्टर ऑफ़ कम्प्यूटर साइन्सेज़ (एम्.सी.ए ) जैसे मुख्य कोर्सेज़ के शिक्षकों को यह भी पता नहीं है ही वह परमानेंट हैं या कैजुअल पर ?
१७ अगस्त के इस पत्र में एक बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन भी किया गया है कि जामिया हमदर्द ,विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग कि गाइड लाइन को अपनी मर्ज़ी के अनुसार मानती है.अगर इस में जामिया हमदर्द के प्रशासनिक अधिकारीयों को अपना लाभ दिखाई देता है तो फिर उसे मान लिया जाता है.१७ अगस्त को लिखे पत्र में एक शिक्षक के चयन कि बात कही गयी है मगर नाम नहीं लिया गया है कि किसके चयन कि बात कही गयी है. पता करने पर ये बात सामने आई कि डॉ मेहर ताज बेगम का मामला है जो विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के डिप्टी-सेक्रेटरी शकील अहमद की पत्नी हैं और यही उनकी सबसे बड़ी योग्यता है.विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के 26 अगस्त 2010 के एक सर्कुलर जिस पर निदेशक एच.आर.जोशी के हस्ताक्षर हैं के अनुसार जो लोग 1 जनवरी 2006 को रीडर थे या जो 1 जून 2010 तक रीडर के पद पर चयन किये गए थे उनका वेतन पे बैंड-3 में 23890 /- पर फिक्स कि जाएगी और उनका अकेडमिक ग्रेड 8000 /- होगा.डॉ मेहर ताज बेगम का चयन जून 2010 से पहले हुआ था और विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के सर्कुलर के अनुसार उनका बेसिक वेतन 23890 /- पर फिक्स होना चाहिए था .मगर ऐसा नहीं हुआ और विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के ही सर्कुलर को धता बताते हुए डॉ मेहर ताज बेगम को पे बैंड -4 में रख दिया गया.यहाँ बिलकुल उस फ़िल्मी गीत की तरह है कि 'सय्याँ भईले कोतवाल तो का चीज़ के डर बा; डॉ मेहर ताज बेगम कोई एकलौती मिसाल नहीं हैं जामिया हमदर्द के लिए.फेकल्टी ऑफ़ साइंस के एक प्रोफ़ेसर जो इसी फेकल्टी के डॉ रईस (एसोसिएट प्रोफ़ेसर ) के शिष्य हैं.
डॉ रईस वाईस चांसलर के सलाहकार हैं उन्हें इस पद के अलावा और भी कई पदें दिए गए हैं जिन्हें प्रोफ़ेसर के वेतन के अलावा 30000/- प्रति माह भेट किये जाते हैं.डॉ रईस का भी मामला अजीब है,डॉ रईस खुद को प्रोफ़ेसर लिखते हैं और प्रोमोशन स्कीम के तहत प्रोफ़ेसर शिप के उम्मीदवार भी हैं.इसका मतलब यह है कि डॉ रईस स्वयम असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं और उन असोसिएट प्रोफेसरों के आवेदनों कि जाँच पड़ताल कर रहे हैं जिन्होंने प्रोफ़ेसर के लिए आवेदन दिए हैं.
जामिया हमदर्द टीचर्स असोसिएशन और नॉन टीचिंग इम्प्लायिज़ यूनियन ने भी वाईस चांसलर के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है.1 अक्तूबर 2011 को कि गयी बैठक में वाईस चांसलर पर आरोप लगाया गया कि वो अपने पद पर ही असंवैधानिक तरीके से बैठे हुए हैं.दोनों संघठनों के द्वारा लगाये गए आरोप के अनुसार डॉ ग़ुलाम नबी क़ाज़ी कि वाईस चांसलर कि अवधि 14 अगस्त 2011 को समाप्त हो गयी है मगर इसके बाद भी डॉ ग़ुलाम नबी क़ाज़ी ज़बरदस्ती अपने पद पर बने हुए हैं.इसके पीछे एक बड़े केंद्रीय मंत्री का समर्थन बताया जाता है.आखिर वो मंत्री कौन हैं जिन्होंने डॉ क़ाज़ी को अपने पद पर बने रहने के लिए समर्थन दे रहें हैं.वैसे अगर जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर के पद के लिए आयु सीमा तय है कि ६५ साल से अधिक नहीं होनी चाहिए.ये दोनों संघठनों के अलावा कई प्रोफेसर्स ने भी वाईस चांसलर के इस कब्जे के बारे में चांसलर सय्यद हामिद को पत्र लिखा मगर अभी तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है.जामिया हमदर्द के एक प्रोफ़ेसर का मानना है कि वाईस चांसलर ,चांसलर और हमदर्द नेशनल फाऊंडेशन, जामिया हमदर्द को एक निजी संस्था बना ना चाहते हैं जिससे सीधे तौर पर लाभ जामिया हमदर्द के संस्थापक स्वर्गीय हकीम अब्दुल मजीद के घर वालों को पहुंचे. जामिया हमदर्द विश्विद्यालय में यह सवाल आम है कि सी.बी.आई के पास एक प्रोफ़ेसर के भ्रष्टाचार में लिप्त होने और और उसकी जाँच के लिए समय है मगर जामिया हमदर्द के प्रशासन और वाईस चांसलर द्वारा किये गए सारे भ्रष्टाचार के लिए समय नहीं है ?ज्ञात हो कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा दिए गए निर्देश पर जामिया हमदर्द के एक प्रोफ़ेसर से उनकी डीन शिप और विभागाध्यक्ष के पद से निलंबित कर दिया गया है .
द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के नवंबर 5 , 2011 भुबनेश्वर संस्करण में छपी रिपोर्ट के अनुसार जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर पर यह अल्ज़ाम लगे है कि वो कैसे सर्च कमिटी में हो सकते हैं जिनके ऊपर विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के पैसों का दुरूपयोग करने का मामला हो,वो भरष्टाचार में स्वयम लिप्त हैं.? डॉ क़ाज़ी रवेंषा विश्विद्यालय भुबनेश्वर के वाईस चांसलर के लिए सर्च कमिटी में शामिल थे,
डॉ क़ाज़ी जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर होते हुए भी जामिया हमदर्द के कानून कि धज्जियाँ उड़ाते हैं,जैसे किसी फेकल्टी में कोई प्रोफ़ेसर है तो वही डीन होगा मगर फेकल्टी ऑफ़ मैनेजमेंट और इन्फार्मेशन टेक्नालोजी में दो- दो प्रोफेसर्स हैं मगर इन संकायों के डीन कोचिंग सेंटर के निदेशक हैं.इसी तरह डीन और विभागाध्यक्ष को सही समय पर नियुक्ति नहीं कि जाती है बल्कि कानून कि धज्जियाँ बिखेरते हुए वाईस चांसलर जब जिसे चाहते हैं डीन बनाते हैं और जिसे विभागाध्यक्ष और अपनी मर्ज़ी के अनुसार उन्हें उस पद पर रखते और हटाते हैं.
अंत में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि इस देश में कोई अन्ना हजारे आजाये मगरजब तक खुद इन्सान ना चाहे कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लडेगा तब तक येबीमारी का समापन संभव नहीं है.
श्रवण कुमार शुक्ल
स्वतंत्र पत्रकार.
अन्ना हजारे द्वारा चलाये गए भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम का उल्टा असर पड़तादिखाई दे रहा है,ऐसा लगता है की भ्रष्ट लोगों ने यह ठान लिया है कि वहभ्रष्टाचार करेंगे ही जिसे जो करना है करे? ए.रजा के साथ दूसरे बड़ेनेताओंऔर नौकर शाहों कि जेल जाने का भी कोई असर पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है,ऐसा महसूस होता है कि भ्रष्टाचार में दिन प्रति दिन बढ़ोतरी ही होतीजारही है,
शिक्षण संस्थानों में अभी तक कोई इतना बड़ा भ्रष्टाचार नहीं हो रहा था लेकिन ऐसा लगता है कि कुछ वाईस चांसलरों को अन्ना कि भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम से चिढ हो गयी है.उन्होंने यह ठान ली है कि वह हर वो काम करेंगे जिसकी कानून इजाज़त नहीं देता .कमसे कम जामिया हमदर्द विश्व विद्यालय के वाईस चांसलर के बारे में तो यह बात दावे से कही जा सकती है.
जामिया हमदर्द के सबसे वरिष्ठ प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल ने 9 अगस्त 2011 को जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर डॉ.ग़ुलाम नबी क़ाज़ी को एक पत्र लिख कर विश्वविद्यालय में हो रही धांधलियों से अवगत कराया और यह भी मांग कि के इन धांधलियों कि निष्पक्ष जाँच करायी जाये? प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल के पत्र में और भी कई घोटालों का विवरण है.सबसे बड़ा घोटाला हमदर्द इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइन्सेज़ एंड रिसर्च (एह.आई.एम्.एस.ए.आर ) का है.पहले हमदर्द विश्व विद्यालय कि ज़मीन पर इसे प्राइवेट मेडिकल कालेज खोलने कि पेशकश कि गयी थी मगर जन आन्दोलन और मेडिकल काउन्सिल ऑफ़ इंडिया के विरोध के बाद उसे जामिया हमदर्द का हिस्सा बताया गया.कहा जाता है कि इस प्रोजेक्ट पर करोडो रूपए खर्च किये जा चुके हैं मगर मेडिकल कालेज का दूर- दूर तक कहीं कोई पता नहीं है.प्रोफ़ेसर मोहम्मद इकबाल के पत्र से यह लगता है कि घोटाला बहुत बड़ा है मगर इसे जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर डॉ.ग़ुलाम नबी क़ाज़ी ने कोई कार्यवाई कराना तो दूर उन्होंने अपने कई भाषणों और सम्मेलनों में प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल को ही आड़े हाथो लेते हुए अप शब्द भी कहे जिसका विवरण जामिया हमदर्द के चांसलर सय्यद मुहम्मद हामिद को 21 सितम्बर 2011 को लिखे अपने पत्र में प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने दिया है.इस पत्र में प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने यह भी कहा है कि उन्हें कुछ अपरिचित लोगों द्वारा फोन करके धमकियाँ भी दी जा रही है.मगर अभी तक चांसलर सय्यद मुहम्मद हामिद की ओर से
कोई जवाब नहीं आया है जिससे यह कहा जा रहा है कि आखिर चांसलर ने इस पर कोई कार्यवाई क्यूँ नहीं कि ? क्या मजबूरी हो सकती है चांसलर कि ? ये सवाल उठता है कि चांसलर कि ख़ामोशी कही कोई राजनीति दबाव का असर तो नहीं है? प्रोफ़ेसर मुहम्मद इकबाल ने एक पत्र विश्व विद्यालय अनुदान आयोग को भी भेजा था जिसपर विश्विद्यालय अनुदान आयोग ने संज्ञान लेते हुए जामिया हमदर्द से जवाब माँगा तो अभी तक कोई ऐसे तथ्य सामने नहीं आये हैं कि जामिया हमदर्द ने इसके जवाब में विश्व विद्यालय अनुदान आयोग को क्या जवाब दिया और उसका कंटेंट क्या था?
जामिया हमदर्द में इन बातों से काफी बेचैनी का माहौल बना हुआ है.लोग वाईस चांसलर से तो दुखी हैं मगर साफ़ बोलने से भी परहेज़ करते हुए दिखाई दिए.एक और प्रोफ़ेसर ने जामिया हमदर्द टीचर्स एसोसियशन (जे.एच.टी.ए.) के अध्यक्ष को लिखे पत्र में भी हो रही धांधलियों कि ओर ध्यान आकर्षित कराया है.17 अगस्त 2011 को लिखे गए इस पत्र से साफ़ पता चलता है कि जामिया हमदर्द के शिक्षकों का भी शोषण हो रहा है.कुछ शिक्षक जो करीब 12 /13 वर्षों से शिक्षण का कार्य कर रहे हैं मगर उन्हें अभी तक कोई प्रोमोशन तक नहीं दी गयी है आज भी वह एक लेक्चरार के पद पर ही कार्यरत हैं जबकि कई ऐसे शिक्षक हैं जो इन्ही के कार्य काल में जामिया हमदर्द में बहाल हुए और आज प्रोफ़ेसर के पद पर असीन हैं.
मास्टर ऑफ़ ब्युज्नेस अप्लिकेशन (एम्.बी.ए ) और मास्टर ऑफ़ कम्प्यूटर साइन्सेज़ (एम्.सी.ए ) जैसे मुख्य कोर्सेज़ के शिक्षकों को यह भी पता नहीं है ही वह परमानेंट हैं या कैजुअल पर ?
१७ अगस्त के इस पत्र में एक बहुत बड़ा रहस्योद्घाटन भी किया गया है कि जामिया हमदर्द ,विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग कि गाइड लाइन को अपनी मर्ज़ी के अनुसार मानती है.अगर इस में जामिया हमदर्द के प्रशासनिक अधिकारीयों को अपना लाभ दिखाई देता है तो फिर उसे मान लिया जाता है.१७ अगस्त को लिखे पत्र में एक शिक्षक के चयन कि बात कही गयी है मगर नाम नहीं लिया गया है कि किसके चयन कि बात कही गयी है. पता करने पर ये बात सामने आई कि डॉ मेहर ताज बेगम का मामला है जो विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के डिप्टी-सेक्रेटरी शकील अहमद की पत्नी हैं और यही उनकी सबसे बड़ी योग्यता है.विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के 26 अगस्त 2010 के एक सर्कुलर जिस पर निदेशक एच.आर.जोशी के हस्ताक्षर हैं के अनुसार जो लोग 1 जनवरी 2006 को रीडर थे या जो 1 जून 2010 तक रीडर के पद पर चयन किये गए थे उनका वेतन पे बैंड-3 में 23890 /- पर फिक्स कि जाएगी और उनका अकेडमिक ग्रेड 8000 /- होगा.डॉ मेहर ताज बेगम का चयन जून 2010 से पहले हुआ था और विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के सर्कुलर के अनुसार उनका बेसिक वेतन 23890 /- पर फिक्स होना चाहिए था .मगर ऐसा नहीं हुआ और विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के ही सर्कुलर को धता बताते हुए डॉ मेहर ताज बेगम को पे बैंड -4 में रख दिया गया.यहाँ बिलकुल उस फ़िल्मी गीत की तरह है कि 'सय्याँ भईले कोतवाल तो का चीज़ के डर बा; डॉ मेहर ताज बेगम कोई एकलौती मिसाल नहीं हैं जामिया हमदर्द के लिए.फेकल्टी ऑफ़ साइंस के एक प्रोफ़ेसर जो इसी फेकल्टी के डॉ रईस (एसोसिएट प्रोफ़ेसर ) के शिष्य हैं.
डॉ रईस वाईस चांसलर के सलाहकार हैं उन्हें इस पद के अलावा और भी कई पदें दिए गए हैं जिन्हें प्रोफ़ेसर के वेतन के अलावा 30000/- प्रति माह भेट किये जाते हैं.डॉ रईस का भी मामला अजीब है,डॉ रईस खुद को प्रोफ़ेसर लिखते हैं और प्रोमोशन स्कीम के तहत प्रोफ़ेसर शिप के उम्मीदवार भी हैं.इसका मतलब यह है कि डॉ रईस स्वयम असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं और उन असोसिएट प्रोफेसरों के आवेदनों कि जाँच पड़ताल कर रहे हैं जिन्होंने प्रोफ़ेसर के लिए आवेदन दिए हैं.
जामिया हमदर्द टीचर्स असोसिएशन और नॉन टीचिंग इम्प्लायिज़ यूनियन ने भी वाईस चांसलर के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है.1 अक्तूबर 2011 को कि गयी बैठक में वाईस चांसलर पर आरोप लगाया गया कि वो अपने पद पर ही असंवैधानिक तरीके से बैठे हुए हैं.दोनों संघठनों के द्वारा लगाये गए आरोप के अनुसार डॉ ग़ुलाम नबी क़ाज़ी कि वाईस चांसलर कि अवधि 14 अगस्त 2011 को समाप्त हो गयी है मगर इसके बाद भी डॉ ग़ुलाम नबी क़ाज़ी ज़बरदस्ती अपने पद पर बने हुए हैं.इसके पीछे एक बड़े केंद्रीय मंत्री का समर्थन बताया जाता है.आखिर वो मंत्री कौन हैं जिन्होंने डॉ क़ाज़ी को अपने पद पर बने रहने के लिए समर्थन दे रहें हैं.वैसे अगर जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर के पद के लिए आयु सीमा तय है कि ६५ साल से अधिक नहीं होनी चाहिए.ये दोनों संघठनों के अलावा कई प्रोफेसर्स ने भी वाईस चांसलर के इस कब्जे के बारे में चांसलर सय्यद हामिद को पत्र लिखा मगर अभी तक उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है.जामिया हमदर्द के एक प्रोफ़ेसर का मानना है कि वाईस चांसलर ,चांसलर और हमदर्द नेशनल फाऊंडेशन, जामिया हमदर्द को एक निजी संस्था बना ना चाहते हैं जिससे सीधे तौर पर लाभ जामिया हमदर्द के संस्थापक स्वर्गीय हकीम अब्दुल मजीद के घर वालों को पहुंचे. जामिया हमदर्द विश्विद्यालय में यह सवाल आम है कि सी.बी.आई के पास एक प्रोफ़ेसर के भ्रष्टाचार में लिप्त होने और और उसकी जाँच के लिए समय है मगर जामिया हमदर्द के प्रशासन और वाईस चांसलर द्वारा किये गए सारे भ्रष्टाचार के लिए समय नहीं है ?ज्ञात हो कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा दिए गए निर्देश पर जामिया हमदर्द के एक प्रोफ़ेसर से उनकी डीन शिप और विभागाध्यक्ष के पद से निलंबित कर दिया गया है .
द टाइम्स ऑफ़ इंडिया के नवंबर 5 , 2011 भुबनेश्वर संस्करण में छपी रिपोर्ट के अनुसार जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर पर यह अल्ज़ाम लगे है कि वो कैसे सर्च कमिटी में हो सकते हैं जिनके ऊपर विश्व-विद्यालय अनुदान आयोग के पैसों का दुरूपयोग करने का मामला हो,वो भरष्टाचार में स्वयम लिप्त हैं.? डॉ क़ाज़ी रवेंषा विश्विद्यालय भुबनेश्वर के वाईस चांसलर के लिए सर्च कमिटी में शामिल थे,
डॉ क़ाज़ी जामिया हमदर्द के वाईस चांसलर होते हुए भी जामिया हमदर्द के कानून कि धज्जियाँ उड़ाते हैं,जैसे किसी फेकल्टी में कोई प्रोफ़ेसर है तो वही डीन होगा मगर फेकल्टी ऑफ़ मैनेजमेंट और इन्फार्मेशन टेक्नालोजी में दो- दो प्रोफेसर्स हैं मगर इन संकायों के डीन कोचिंग सेंटर के निदेशक हैं.इसी तरह डीन और विभागाध्यक्ष को सही समय पर नियुक्ति नहीं कि जाती है बल्कि कानून कि धज्जियाँ बिखेरते हुए वाईस चांसलर जब जिसे चाहते हैं डीन बनाते हैं और जिसे विभागाध्यक्ष और अपनी मर्ज़ी के अनुसार उन्हें उस पद पर रखते और हटाते हैं.
अंत में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि इस देश में कोई अन्ना हजारे आजाये मगरजब तक खुद इन्सान ना चाहे कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लडेगा तब तक येबीमारी का समापन संभव नहीं है.
श्रवण कुमार शुक्ल
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