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24.12.11

लोकपाल से नहीं...खुद से खत्म होगा भ्रष्टाचार


लोकपाल से नहीं...खुद से खत्म होगा भ्रष्टाचार

अन्ना कहते हैं कि सशक्त लोकपाल से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी...भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे होंगे...जबकि संसद में सरकार द्वारा पेश लोकपाल कमजोर है औऱ इसमें भ्रष्टाचारियों के बच निकलने का रास्ता है। सरकार कहती है संसद में पेश लोकपाल को सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद तैयार किया गया है...औऱ ये भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में कारगर साबित होगा...वहीं मुख्य विपक्षी दल भाजपा समेत दूसरी पार्टियां अपने – अपने तर्क देकर संसद में पेश लोकपाल का विरोध कर रहे हैं...लेकिन इस बीच जनमानस के मन में क्या चल रहा है...वो क्या चाहता है...इसका इल्म किसी को नहीं है...लोगों के मन में अभी भी इसको लेकर संशय बरकरार है...कुछ लोग सोचते हैं कि सशक्त लोकपाल बन जाने से भ्रष्टाचार एकदम से खत्म हो जाएगा...जबकि कुछ लोग मानते हैं कि सशक्त लोकपाल आने के बाद भी भ्रष्टाचार पर बहुत ज्यादा लगाम नहीं लग पाएगी। कुल मिलाकर देखा जाए तो चाहे अन्ना जैसा चाहते हैं वैसा लोकपाल आए या फिर सरकारी लोकपाल...आमजन को इससे बहुत ज्यादा सरोकार नहीं है...इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकपाल के समर्थन में अन्ना कि मुहिम को देशभर में व्यापक जनसमर्थन मिला...लेकिन सवाल ये भी उठता है कि महज़ लोकपाल बिल पास हो जाने भऱ से भ्रष्टाचार हिंदुस्तान से खत्म हो जाएगा...भ्रष्टाचारी सलाखों के पीछे पहुंच जाएंगे...इसका जवाब देना आपके लिए भी हो सकता है थोडा मुश्किल हो...लेकिन अगर मुझसे इसका जवाब पूछा जाए तो मेरा जवाब होगा...नहीं। निश्चित तौर पर हर कोई चाहता है कि भ्रष्टाचार रूपी रावण का दहन हो...औऱ भ्रष्टाचारियों को सजा मिले...हर कोई चाहता है कि सरकारी दफ्तर में बिना रिश्वत दिए उसका काम हो जाए...अपने किसी काम के लिए सरकारी दफ्तर में उसे अपनी चप्पलें न घिसनी पडे...लेकिन यहां पर मुझे ये कहने में बिल्कुल भी हिचक नहीं होगी कि जिस भ्रष्टाचार से वह निजात पाना चाहता है...असल में उसकी सबसे बडी वजह भी तो वही है...क्योंकि जब आप सरकारी दफ्तर में अपने किसी काम के लिए जाते हैं तो आप चाहते हैं कि आपका काम आसानी से हो जाए...जल्दी हो जाए...इसके लिए आपको ज्यादा परेशानी न उठाना पडे...औऱ वह आप ही तो हैं जो इसके लिए सामने बैठे कर्मचारी – अधिकारी से जल्दी काम करवाने के तरीके पूछते हैं और मिठाई के नाम पर लेनदेन की बात करते हैं। जब तक जनमानस खुद नहीं ठान लेगा कि वह अपने काम को पूरी ईमानदारी से करेगा औऱ अपने किसी काम के लिए किसी भी तरह के भ्रष्टाचार का सहारा नहीं लेगा...किसी सरकारी कर्मचारी – अधिकारी को रिश्वत नहीं देगा...तब तक एक प्रतिशत भ्रष्टाचार भी देश से कम नहीं होने वाला...फिर चाहे अन्ना का लोकपाल आए या फिर सरकारी लोकपाल...तस्वीर नहीं बदलने वाली। अरे साहब भ्रष्टाचार के खिलाफ महज शुरूआत तो कीजिए...बदलाव आएगा...किसी लोकपाल का इंतजार मत कीजिए...ये कोई जादू कि छडी नहीं है जो किसी पर चले औऱ वह ईमानदार हो जाए...और वैसे भी जिन लोगों के कंधे पर लोकपाल के माध्यम से भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई का जिम्मा रहेगा वे भी तो इंसान ही है...हो सकता है कहीं उनका ईमान भी डगमगा जाए...जैसा कहते हैं ना – अगर गल ही रूलाती है...तो राहें भी दिखाती है...मनुज गलती का पुतला है...जो अक्सर हो ही जाती है...। अब तक जो गलतियां हुई उन्हें पीछे छोडो...औऱ भ्रष्टाचार औऱ भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज बुलंद करो...निश्चित तौर पर तस्वीर बदलेगी...एक कदम तो आगे बढ़ाईये।

दीपक तिवारी
8800994612



3 comments:

तेजवानी गिरधर said...
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तेजवानी गिरधर said...

आप बिलकुल सही कह रहे हैं, आम आदमी खुद के स्तर पर तो बेईमान ही रहना चाहता है और नेताओं से आशा अपेक्षा करता है कि वे बेईमान न हों, अन्ना के साथ नारे लगाने वाले भी निजी जिंदगी में बेईमान ही हैं

Ashish Jain said...

तेजवानी जी आप के कमेन्ट को पढ़ा आप का यह कहना की "अन्ना के साथ नारे लगाने वाले भी निजी जिंदगी में बेईमान ही हैं" से मन को बहुत पीढ़ा हुई अन्ना हजारे जी के प्रति आप की कुंठा साफ़ जाहिर हो रही है