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11.12.11

Budwig Cancer Treatment



डॉ. योहाना बडविग का कैंसररोधी आहार–विहार
क्रूर, कुटिल, कपटी, कठिन, कष्टप्रद कर्करोग   का
सस्ता, सरल, सुलभ, संपूर्ण और सुरक्षित समाधान

Dr. O.P.Verma

M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
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+919460816360
                                                                                                    

डॉ योहाना बडविग का परिचय और उनकी महान खोज


डॉ योहाना बडविग (जन्म 30 सितम्बर, 1908 – मृत्यु 19 मई 2003) विश्व विख्यात जर्मन जीव रसायन विशेषज्ञ और चिकित्सक थी। उन्होंने भौतिक, जीवरसायन तथा भेषज विज्ञान में मास्टर की डिग्री हासिल की थी और प्राकृतिक-चिकित्सा विज्ञान में पी.एच.डी. भी की थी। वे जर्मन सरकार के खाद्य और भेषज विभाग में सर्वोच्च पद पर कार्यरत थीं तथा वे जर्मनी व यूरोप की विख्यात वसा और तेल विशेषज्ञ मानी जाती थी। उन्होंने वसा, तेल तथा कैंसर के उपचार के लिए बहुत शोध-कार्य किये थे। वे आजीवन शाकाहारी रहीं और जीवन के अंतिम दिनों में भी सुंदर, स्वस्थ व अपनी आयु से काफी युवा लगती थी।

1923 में डॉ. ओटो वारबर्ग ने कैंसर के मुख्य कारण की खोज कर ली थी, जिसके लिये उन्हें 1931 में नोबल पुरस्कार दिया गया था।  उन्होंने कोशिकाओं की श्वसन क्रिया और चयापचय पर बहुत परीक्षण किये थे। उन्होंने पता लगाया था कि कैंसर का मुख्य कारण कोशिकाओं में होने वाली श्वसन क्रिया का बाधित होना है। सामान्य कोशिकाएं अपने चयापचय हेतु ऊर्जा ऑक्सीजन से ऊर्जा ग्रहण करती हैं। जबकि कैंसर कोशिकाऐं ऑक्सीजन के अभाव और अम्लीय माध्यम में ही फलती फूलती है। कैंसर कोशिकायें ऑक्सीजन द्वारा श्वसन क्रिया नहीं करती हैं तथा वे ग्लूकोज को फर्मेंट करके ऊर्जा प्राप्त करती है, जिसमें लेक्टिक एसिड बनता है और शरीर में अम्लता बढ़ती है। यदि सामान्य कोशिकाओं को ऑक्सीजन की आपूर्ति 48 घन्टे के लिए लगभग 35 प्रतिशत कम कर दी जाए तो वे कैंसर कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाती हैं। यदि कोशिकाओं को पर्याप्त ऑक्सीजन मिलती रहे तो कैंसर का अस्तित्व संभव ही नहीं है। वारबर्ग ने कैंसर कोशिकाओं में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई परीक्षण किये थे परन्तु वे असफल रहे।

बडविग ने डॉ. कॉफमेन के साथ मिल कर पहली बार जीवित ऊतक में आवश्यक वसा-अम्ल ओमेगा-3 व ओमेगा-6 को पहचानने की पेपर क्रोमेटोग्राफी तकनीक विकसित की थी। और ओमेगा-3 के हमारे शरीर पर होने वाले चमत्कारी प्रभावों का अध्ययन किया था। उन्होंने यह भी बतलाया था कि ओमेगा-3 किस प्रकार हमारे शरीर को विभिन्न बीमारियों से बचाते हैं और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए हमारे आहार में ओमेगा-3 व ओमेगा-6 का अनुपात 1:2 या 1:4 रहना चाहिये। इसीलिये उन्हें ओमेगा-3 लेडी के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने पूर्ण या आंशिक हाइड्रोजिनेटेड वसा मार्जरीन (वनस्पति घी), ट्रांसफैट व रिफाइण्ड तेलों के हमारे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले घातक दुष्प्रभावों का भी पता लगाया था। इसलिए वे मार्जरीन, हाइड्रोजिनेटेड वसा और रिफाइंड तेलों को प्रतिबंधित करना चाहती थी, जिसके कारण खाद्य तेल और मार्जरीन बनाने वाले संस्थान उनसे काफी नाराज थे और बहुत परेशानी में थे।
 
डॉ. योहाना ने वारबर्ग के शोध को जारी रखा। वर्षों तक खोज करके पता लगाया कि इलेक्ट्रोन युक्त, अत्यन्त असंतृप्त ओमेगा–3 वसा से भरपूर अलसी, जिसे अंग्रेजी में Linseed या Flaxseed कहते हैं, का तेल कोशिकाओं में नई ऊर्जा भरता है, उनकी स्वस्थ भित्तियों का निर्माण करता है और कोशिकाओं में ऑक्सीजन को आकर्षित करता है। परंतु इनके सामने मुख्य समस्या यह थी कि रक्त मे अघुलनशील अलसी के तेल को कोशिकाओं तक कैसे पहुँचाया जाये। कई परीक्षण करने के बाद डॉ. योहाना ने पाया कि अलसी के तेल को सल्फर युक्त प्रोटीन जैसे पनीर साथ मिलाने पर वह पानी में घुलनशील बन जाता है और तेल सीधा कोशिकाओं तक पहुँचता है। इसलिए  उन्होने सीधे बीमार लोगों के रक्त के नमूने लिये और उनको अलसी का तेल तथा पनीर मिला कर  देना शुरू कर दिया। तीन महीने बाद फिर उनके रक्त के नमूने लिये गये।  नतीजे चौंका देने वाले थे। डॉ. बडविग द्वारा एक महान खोज हो चुकी थी। कैंसर के इलाज में सफलता की पहली पताका लहराई जा चुकी थी। लोगों के रक्त में फोस्फेटाइड और लाइपोप्रोटीन की मात्रा काफी बढ़ गई थी और अस्वस्थ हरे पीले पदार्थ की जगह लाल हीमोग्लोबिन ने ले ली थी। कैंसर के रोगी ऊर्जावान और स्वस्थ दिख रहे थे,  उनकी गांठे छोटी हो गई थी, वे कैंसर को परास्त कर रहे थे। उन्होने अलसी के तेल और पनीर के जादुई और आश्चर्यजनक प्रभाव दुनिया के सामने सिद्ध कर दिये थे।
   
इस तरह 1952 में डॉ. योहाना ने ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल व पनीर के मिश्रण तथा कैंसर रोधी फलों व सब्जियों के साथ कैंसर के उपचार का तरीका विकसित किया था, जो बडविग प्रोटोकोल के नाम से विख्यात हुआ। नेता और नोबेल पुरस्कार समिति के सदस्य इन्हें नोबल पुरस्कार देना चाहते थे पर उन्हें डर था कि इस उपचार के प्रचलित होने और मान्यता मिलने से 200 बिलियन डालर का कैंसर व्यवसाय (कीमोथैरेपी  और विकिरण चिकित्सा उपकरण बनाने वाले बहुराष्ट्रीय संस्थान) रातों रात धराशाही हो जायेगा। इसलिए उन्हें कहा गया कि आपको कीमोथैरेपी  और रेडियोथैरेपी   को भी अपने उपचार में शामिल करना होगा। उन्होंने सशर्त दिये जाने वाले नोबल पुरस्कार को एक नहीं सात बार ठुकराया।

यह सब देखकर कैंसर व्यवसाय से जुड़े मंहगी कैंसररोधी दवाईयां और रेडियोथैरेपी   उपकरण बनाने वाले संस्थानों की नींद हराम हो रही थी। उन्हें डर  था कि यदि यह उपचार प्रचलित होता है तो उनकी कैंसररोधी दवाईयां और कीमोथेरिपी उपकरण कौन खरीदेगा ? इस कारण सभी बहुराष्ट्रीय संस्थानों ने उनके विरूद्ध कई षड़यन्त्र रचे। ये नेताओं और सरकारी संस्थाओं के उच्चाधिकारियों को रिश्वत देकर डॉ. योहाना को प्रताड़ित करने के लिए बाध्य करते रहे। फलस्वरूप इन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा, इनसे सरकारी प्रयोगशाला छीन ली गई और इनके शोध पत्रों के प्रकाशन पर भी रोक लगा दी गई।

विभिन्न बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने इन पर तीस से ज्यादा मुकदमें दाखिल किये थे। डॉ. बडविग ने अपने बचाव हेतु सारे दस्तावेज स्वंय तैयार किये और अन्तत: सारे मुकदमों मे जीत भी हासिल की। कई न्यायाधीशों ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लताड़ लगाई और कहा कि डॉ. बडविग द्वारा प्रस्तुत किये गये शोध पत्र सही हैं, इनके प्रयोग वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं, इनके द्वारा विकसित किया गया उपचार जनता के हित में है और आम जनता तक पहुंचना चाहिए। इन्हे व्यर्थ परेशान नहीं किया जाना चाहिए।

वे 1952 से 2002 तक कैंसर के हजारों रोगियों का उपचार करती रहीं। अलबर्ट आईन्स्टीन ने एक बार कहा था कि आधुनिक युग में भोजन ही दवा का काम करेगा और बडविग ने इस तथ्य को सिद्ध करके दिखलाया। कैंसर के अलावा इस उपचार से डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, आर्थ्राइटिस, हृदयाघात, अस्थमा, डिप्रेशन आदि बीमारियां भी ठीक हो जाती हैं। डॉ.योहाना के पास अमेरिका व अन्य देशों के डाक्टर मिलने आते थे, उनके उपचार की प्रसंशा भी करते थे पर उनके उपचार से व्यावसायिक लाभ अर्जित करने हेतु आर्थिक सौदे बाज़ी की इच्छा व्यक्त करते थे। वे भी पूरी दुनिया का भ्रमण करती थीं। अपनी खोज के बारे में व्याख्यान देती थी। उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी थी जिनमें फैट सिंड्रोम”, “डैथ आफ ए ट्यूमर”, “फ्लेक्स आयल अ ट्रू एड अगेन्स्ट आर्थाइटिस, हार्ट इन्फार्कशन, कैंसर एण्ड अदर डिजीज़ेज”, “आयल प्रोटीन कुक बुक”, “कैंसर द प्रोबलम एण्ड सोल्यूशनआदि मुख्य हैं। उन्होंने अपनी आखिरी पुस्तक 2002 में लिखी थी।

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सचित्र बडविग कैंसर उपचार ई-बुक


स्टुटगर्ट रेडियो पर डॉ. बडविग का साक्षात्कार
एकबार स्टुटगर्ट के साउथ जर्मन रेडियो स्टेशन पर 9 नवम्बर, 1967 (सोमवार) को रात्रि के पौने नौ बजे प्रसारित साक्षात्कार में डॉ. बडविग ने सिर उठा  कर गर्व से कहा था और जिसे पूरी दुनिया ने सुना था कि यह अचरज की बात है  कि मेरे उपचार द्वारा कैंसर कितनी जल्दी ठीक होता है। 84 वर्ष की एक महिला को आँत का कैंसर था, जिसके कारण आंत में रुकावट आ गई थी और आपातकालीन शल्यक्रिया होनी थी। मैंने उसका उपचार किया जिससे कुछ ही दिनों में उसके कैंसर की गाँठ पूरी तरह खत्म हो गई, ऑपरेशन भी नहीं करना पड़ा और वह  स्वस्थ हो गई। इसका जिक्र मैंने मेरी पुस्तक द डैथ ऑफ ए ट्यूमर  की पृष्ठ संख्या 193-194 में किया है।  अस्पताल कैंसर के वे रोगी जिन्हें रेडियोथैरेपी और कीमोथैरेपी से कोई लाभ नहीं होता है और जिन्हें से यह कह कर छुट्टी दे दी जाती है कि अब उनका कोई इलाज संभव नहीं है,  भी मेरे उपचार से ठीक हो जाते हैं और इन रोगियों में भी मेरी सफलता की दर 90% है। 
सौर ऊर्जा, इलेक्ट्रोन और लिनोलेनिक एसिड का अलौकिक संबंध
प्रकाश सबसे तेज चलता है। क्वांटम भौतिकी के अनुसार सूर्य की किरणों के सबसे छोटे घटक या कण को क्वांटम या फोटोन कहते हैं जो अनंत हैं, शाश्वत हैं, सक्रिय हैं, सदैव हैं, ऊर्जावान हैं और गतिशील हैं। इन्हें कोई नहीं रोक सकता है। ये ऊर्जा का सबसे परिष्कृत रूप हैं, ये सबसे निर्मल लहर हैं। इनमें ब्रह्मांड के सारे रंग है। ये अपना रंग, प्रकृति और आवृत्ति बदल सकते हैं।

इलेक्ट्रोन परमाणु का घटक है और न्यूक्लियस के चारों ओर अपने निश्चित कक्ष में निश्चित आवृत्ति में सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, सदैव गतिशील रहते हैं। इलेक्ट्रोन का चुम्बकीय क्षेत्र अत्यन्त गतिशील फोटोन को अपनी ओर आकर्षित करता है, जब भी कोई विद्युत आवेश गतिशील होता है तो एक चुम्बकीय क्षेत्र बनता है। गतिशील फोटोन का भी चुम्बकीय क्षेत्र होता है। जब इलेक्ट्रोन और फोटोन के चुम्बकीय क्षेत्र समान आवृत्ति पर गुंजन करते हैं तो ये एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

फोटोन सूर्य से निकलकर, जो 9.3 अरब मील दूर है, असीम ऊर्जा लेकर, जीवन की आस लेकर, प्यार की बहार लेकर, खुशियों की सौगात लेकर आते हैं, अपनी लय, ताल व आवृत्ति बदल कर इलेक्ट्रोन, जो अपने कक्ष में सदैव परिक्रमा करते रहते हैं, की ओर आकर्षित होते हैं, साथ मिल कर नृत्य करते हैं और तब पूरा कक्ष समान आवृत्ति में दिव्य गुंजन करता है और असीम सौर ऊर्जा का प्रवाह होता है। यही है जीवन का असली फलसफा, प्रेम का उत्सव, यही है प्रकृति का संगीत। यही है फोटोन रूपी सूर्य और इलेक्ट्रोन रूपी चंद्र का पारलौकिक गंधर्व विवाह, यही है शिव और पार्वति का ताण्डव नृत्य, यही है विष्णु और लक्ष्मी की रति क्रीड़ा, यही है कृष्ण और राधा का अनंत, असीम प्रेम।

हमें सूर्य से बहुत प्रेम है और यह मात्र संयोग नहीं है। हमारे शरीर की लय सूर्य की लय से इतनी मिलती है कि हम सूर्य की ऊर्जा का सबसे ज्यादा अवशोषण करते हैं। इसलिए क्वांटम वैज्ञानिक कहते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड में सबसे ज्यादा सौर ऊर्जा या फोटोन मनुष्य के शरीर में ही होते हैं। यह क्षमता और बढ़ जाती है जब हम इलेक्ट्रोन से भरपूर अत्यंत असंतृप्त वसा-अम्ल (अलसी जिनका भरपूर स्रोत है) का सेवन करते हैं। विख्यात क्वांटम भौतिकशास्त्री डेसौर ने कहा है कि यदि हम मानव शरीर में सौर फोटोन्स की संख्या दस गुना कर दें तो मनुष्य की उम्र 10,000 वर्ष हो जायेगी।  
              
जीवनशक्ति और अल्फा-लिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए)

अलसी के तेल में अल्फालिनोलेनिक एसिड (ए.एल.ए.) नामक ओमेगा–3 वसा-अम्ल होता है। डॉ. बडविग ने ए.एल.ए. की अद्भुत संरचना का गूढ़ अध्ययन किया था। ए.एल.ए. में 18 कार्बन के परमाणुओं की लड़ी या श्रंखला होती है जिसके एक सिरे से, जिसे ओमेगा सिरा कहते हैं, मिथाइल (CH3) ग्रुप जुड़ा रहता है और दूसरे से, जिसे डेल्टा सिरा कहते हैं, कार्बोक्सिल (COOH) जुड़ा रहता है। ए.एल.ए. में 3 द्वि-बंध ओमेगा सिरे से क्रमशः तीसरे, छठे और नवें कार्बन परमाणु के बाद होते हैं चूंकि पहला द्वि-बंध तीसरे कार्बन के बाद होता है इसीलिए इसको ओमेगा–3 वसा अम्ल (N-3) कहते हैं। ए.एल.ए. हमारे शरीर में नहीं बन सकते हैं, इसलिए इनको आवश्यक वसा अम्ल कहते हैं। अत: इनको भोजन द्वारा लेना अतिआवश्यकहै। ए.एल.ए की कार्बन श्रंखला में जहां द्वि-बंध बनता है और दो हाइड्रोजन के परमाणु अलग होते हैं, वहां इलेक्ट्रोन्स का बडा झुण्ड या बादल सा, जिसे  पाईइलेक्ट्रोन्स भी कहते हैं, बन जाता है और इस जगह ए.एल.ए. की लड़ मुड़ जाती है। इलेक्ट्रोन के इस बादल में अपार विद्युत आवेश रहता है जो सूर्य ही नहीं बल्कि संपूर्ण ब्रह्मांड से आने वाले प्रकाश की किरणों के सबसे छोटे घटक फोटोन्स को आकर्षित करते हैं, अवशोषण करते हैं। ओमेगा-3 ऑक्सीजन को कोशिका में खींचते हैं, प्रोटीन को आकर्षित करते हैं। ये पाईइलेक्ट्रोन ऊर्जा का संग्रहण करते हैं और एक एन्टीना की तरह काम करते हैं। यही है जीवन-शक्ति जो हमारे पूरे शरीर विशेष तौर पर मस्तिष्क, ऑखों, हृदय, मांसपेशियां, नाड़ीतंत्र, कोशिका की भित्तियों आदि को भरपूर ऊर्जा देती है।

कैंसररोधी योहाना बडविग आहार विहार

डॉ. बडविग आहार में प्रयुक्त खाद्य पदार्थ ताजा, इलेक्ट्रोन युक्त और जैविक होने चाहिए। इस आहार में अधिकांश खाद्य पदार्थ सलाद और रसों के रूप में लिये जाते है, जिन्हें ताजा तैयार किया जाना चाहिए ताकि रोगी को भरपूर इलेक्ट्रोन्स मिले। डॉ. बडविग ने इलेक्ट्रोन्स पर बहुत जोर दिया है। अलसी के तेल में भरपूर इलेक्ट्रोन्स होते हैं और डॉ. बडविग ने अन्य इलेक्ट्रोन्स युक्त और एंजाइम्स से भरपूर खाद्य-पदार्थ भी ज्यादा से ज्यादा लेने की सलाह दी है।

अंतरिम या ट्रांजीशन आहार

कई रोगी विशेष तौर पर जिन्हें यकृत और अग्न्याशय का कैंसर होता है,  शुरू में सम्पूर्ण बडविग आहार पचा नहीं पाते हैं। ऐसी स्थिति में डॉ. बडविग कुछ दिनों तक रोगियों को अंतरिम या ट्रांजीशन आहार लेने की सलाह देती थी। अंतरिम आहार में रोज 250 ग्राम अलसी दी जाती है। कुछ दिनों तक रोगी को ओटमील (जई का दलिया) के सूप में ताजा पिसी हुई अलसी मिला कर दिन में कई बार दी जाती है। इस सूप को बनाने के लिए एक पतीली में 250 एम एल पानी लें और तीन बड़ी चम्मच ओटमीन डाल कर पकायें। ओट पक जाने पर उसमें बड़ी तीन चम्मच ताजा पिसी अलसी मिलायें और एक उबाल आने दें। फिर गैस बंद कर दे और दस मिनट तक ढक कर रख दें।  अलसी मिले इस सूप को खूब चबा-चबा कर लार में अच्छी तरह मिला कर खाना चाहिये क्योंकि पाचन क्रिया मुंह में ही शुरू हो जाती है। इस सूप में दूध या संतरा, चेरी, अंगूर, ब्लूबेरी आदि फलों के रस भी मिलाये जा सकते हैं, जो पाचन-शक्ति बढ़ाते हैं। इसके के डेढ़-दो घंटे बाद पपीते का रस, दिन में तीन बार हरी या हर्बल चाय और अन्य फलों के रस दिये जाते हैं। अंतरिम आहार में पपीता खूब खिलाना चाहिये। जैसे ही रोगी की पाचन शक्ति ठीक होने लगती है उसे अलसी के तेल और पनीर से बने ओम-खण्ड की कम मात्रा देना शुरू करते हैं। और धीरे-धीरे मात्रा बढ़ा कर सम्पूर्ण बडविग आहार शुरू कर दिया जाता है।  

प्रातः

इस उपचार में सुबह सबसे पहले एक ग्लास सॉवरक्रॉट (खमीर की हुई पत्ता गोभी) का रस लेना चाहिये। ­इसमें भरपूर एंजाइम्स और विटामिन-सी होते हैं। इसमें कई कैंसररोधी तत्व भी होते हैं जिनमें आइसोथायोसाइनेट,  लेक्टोबेसीलाई जैसे लेक्टोबेसिलाई प्लेन्टेरम आदि प्रमुख है।  लेक्टोबेसिलाई प्लेन्टेरम बहुत महत्वपूर्ण और हितकारी जीवाणु है, जो ग्लुटाथायोन तथा सुपरऑक्साइड डिसम्युटेज जैसे उत्कृष्ट एन्टीऑक्सीडेंट बनाने में मदद करता है। यह बहुत कम खाद्य-पदार्थों में मिलता है। लेक्टोबेसिलाई जटिल शर्करा (जैसे लेक्टोज) तथा प्रोटीन के पाचन में मदद करते हैं, आहारतंत्र में हितकारी प्रोबायोटिक जीवाणुओं का विकास करते हैं और आंतों को स्वस्थ रखते हैं। सॉवरक्रॉट हमारे देश में उपलब्ध नहीं है परन्तु इसे घर पर पत्ता गोभी को ख़मीर करके बनाया जा सकता है। हां इसे घर बनाना थोड़ा मुश्किल अवश्य है। इसलिए डॉ. बडविग ने भी लिखा है कि सॉवरक्रॉट उपलब्ध न हो तो रोगी एक ग्लास छाछ पी सकता है। छाछ भी घर पर मलाई-रहित दूध से बननी चाहिये। यह अवश्य ध्यान में रखें कि छाछ सॉवरक्रॉट जितनी गुणकारी नहीं है। इसके थोड़ी देर बाद कुछ रोगी गैंहूं के ज्वारे का रस भी पीते हैं। 

नाश्ता

नाश्ते से आधा घंटा पहले बिना चीनी की गर्म हर्बल या हरी चाय लें। मीठा करने के लिए एक चम्मच शहद या स्टेविया (जो डॉ. स्वीट के नाम से बाजार में उपलब्ध है) का प्रयोग कर सकते हैं। यह नाश्ते में दिये जाने वाले अलसी मिले ओम-खण्ड के फूलने हेतु गर्म और तरल माध्यम प्रदान करती है।
                                    
ओम-खण्ड

इस आहार का सबसे मुख्य व्जंजन सूर्य की अपार ऊर्जा और इलेक्ट्रोन्स से भरपूर ओम-खंड है जो अलसी के तेल और घर पर बने वसा रहित पनीर या दही से बने पनीर को मिला कर बनाया जाता है । पनीर बनाने के लिए गाय या बकरी का दूध सर्वोत्तम रहता है। इसे एकदम ताज़ा बनायें और ध्यान रखें कि बनने के 15 मिनट के भीतर रोगी खूब चबा चबा कर आनंद लेते हुए इसका सेवन करें।  ओम-खण्ड बनाने की विधि इस प्रकार है।

       3 बड़ी चम्मच यानी 45 एम.एल. अलसी का तेल और 6 बड़ी चम्मच यानी लगभग 100 ग्राम पनीर को बिजली से चलने वाले हेन्ड ब्लेंडर द्वारा एक मिनट तक अच्छी तरह मिक्स करें। तेल और पनीर का मिश्रण क्रीम की तरह हो जाना चाहिये और तेल दिखाई देना नहीं चाहिये। तेल और पनीर को ब्लेंड करते समय यदि मिश्रण गाढ़ा लगे तो पतला करने के लिए 1 या 2 चम्मच दूध मिला लें। पानी या किसी फल का रस नहीं मिलायें।

       अब मिश्रण में 2 बड़ी चम्मच अलसी ताज़ा मोटी-मोटी पीस कर मिलायें।

       इसके बाद मिश्रण में आधा या एक कप कटे हुए स्ट्रॉबेरी, रसबेरी, ब्लूबेरी, चेरी, जामुन आदि फल मिलायें। बेरों में शक्तिशाली कैंसररोधी में एलेजिक एसिड होता है। ये फल हमारे देश में हमेशा उपलब्ध नहीं होते हैं। इस स्थिति में आप अपने शहर में मिलने वाले अन्य फलों का प्रयोग कर सकते हैं।  

       इस ओम-खण्ड को आप कटे हुए मेवे जैसे खुबानी, बादाम, अखरोट, काजू, किशमिश, मुनक्के आदि सूखे मेवों से सजायें। ध्यान रहे मूंगफली वर्जित है। मेवों में सल्फर युक्त प्रोटीन, आवश्यक वसा और विटामिन होते हैं। रोगी को खुबानी के 6-8 बीज रोज खाना ही चाहिये। इसमें महान विटामिन बी-17 और बी-15 होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। स्वाद के लिए काली मिर्च, सैंधा नमक, ताजा वनीला, दाल चीनी, ताजा काकाओ, कसा नारियल, सेब का सिरका या नींबू का रस मिला सकते हैं।  मसालों और फलों को बदल-बदल कर आप स्वाद में विविधता और नवीनता ला सकते हैं।

       डॉ. बडविग ने चाय और ओम-खण्ड को मीठा करने के लिए प्राकृतिक और मिलावट रहित शहद को प्रयोग करने की सलाह दी है। लेकिन ध्यान रहे कि प्रोसेस्ड यानी डिब्बा बन्द शहद प्रयोग कभी नहीं करें और यह भी सुनिश्चित करलें कि बेचने वाले ने शहद में चाशनी की मिलावट तो नहीं की है। दिन भर में 5 चम्मच शहद लिया जा सकता है। ओम खण्ड को बनाने के दस मिनट के भीतर रोगी को ग्रहण कर लेना चाहिए।

       सामान्यतः ओम-खण्ड लेने के बाद रोगी को कुछ और लेने की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन यदि रोगी चाहे तो फल, सलाद, सूप, एक या दो मिश्रित आटे की रोटी, ओट मील या का दलिया ले सकता है।   

10 बजे

नाश्ते के एक घंटे बाद रोगी को गाजर, मूली, लौकी, मेथी, पालक, करेला, टमाटर, करेला, शलगम, चुकंदर आदि सब्जियों का रस ताजा निकाल कर पिलायें। सब्जियों को पहले साफ करें, अच्छी तरह धोयें, छीलें फिर घर पर ही अच्छे ज्यूसर से रस निकालें। गाजर और चुकंदर यकृत को ताकत देते हैं और अत्यंत कैंसर रोधी होते हैं। चुकंदर का रस हमेशा किसी दूसरे रस में मिला कर देना चाहिये। ज्यूसर खरीदते समय  ध्यान रखें कि ज्यूसर चर्वण (masticating) विधि द्वारा रस निकाले न कि अपकेंद्री (Centrifugal) विधि द्वारा।  

दोपहर का खाना

नाश्ते की तरह दोपहर के खाने के आधा घंटा पहले भी एक गर्म हर्बल चाय लें। दिन भर में रोगी पांच हर्बल चाय पी सकता है। कच्ची या भाप में पकी सब्जियां जैसे चुकंदर, शलगम, खीरा, ककड़ी, मूली, पालक, भिंडी, बैंगन, गाजर, बंद गोभी, गोभी, मटर, शिमला मिर्च, ब्रोकोली, हाथीचाक, प्याज, टमाटर, शतावर आदि के सलाद को घर पर बनी सलाद ड्रेसिंग,  ऑलियोलक्स या सिर्फ  अलसी के तेल  के साथ लें। हरा धनिया, करी पत्ता, जीरा, हरी मिर्च, दालचीनी, कलौंजी, अजवायन, तेजपत्ता, सैंधा नमक और अन्य मसाले डाले जा सकते हैं। ड्रेसिंग बनाने के लिए 2 चम्मच अलसी के तेल व 2 चम्मच पनीर के मिश्रण में एक चम्मच सेब का सिरका या नीबू के रस और मसाले डाल कर अच्छी तरह ब्लैंडर से मिलायें।  विविधता बनाये रखने के लिए आप कई तरह से ड्रेसिंग बना सकते हैं। हर बार पनीर मिलाना भी जरूरी नहीं है। दही या ठंडी विधि से निकला सूर्यमुखी का तेल भी काम में लिया जा सकता है। अलसी के तेल में अंगूर, संतरे या सेब का रस या शहद मिला कर मीठी सलाद ड्रेसिंग बनाई जा सकती है।

साथ में चटनी (हरा धनिया, पुदीना या नारियल की), भूरे चावल, दलिया, खिचड़ी, इडली, सांभर, कढ़ी, उपमा या मिश्रित आटे की रोटी ली जा सकती है। रोटी चुपड़ने के लिए ऑलियोलक्स प्रयोग करें। मसाले, सब्जियां और फल बदलबदलकर प्रयोग करें। रोज एक चम्मच कलौंजी का तेल भी लें। भोजन तनाव रहित होकर खूब चबा-चबा कर करें।

ओम-खंड की दूसरी खुराक

रोगी को नाश्ते की तरह ही ओम-खण्ड की एक खुराक दिन के भोजन के साथ देना अत्यंत आवश्यक है। यदि रोगी को शुरू में  अलसी के तेल की इतनी ज्यादा मात्रा पचाने में दिक्कत हो तो कम मात्रा से शुरू करें और धीरे-धीरे बढ़ा कर पूरी मात्रा देने लगें।  

दोपहर बाद

दोपहर बाद अन्नानास, संतरा, मौसम्मी, अनार, चीकू, नाशपाती, चेरी या अंगूर के ताजा निकले रस में एक या दो चम्मच अलसी को ताजा पीस कर मिलायें और रोगी को पिलायें। यदि रस ज्यादा बन जाये और रोगी उसे पीना चाहे तो पिला दें।  रोगी चाहें तो आधा घंटे बाद एक गिलास रस और पी सकता है।

तीसरे पहर

पपीते के एक ग्लास रस में एक या दो चम्मच अलसी को ताजा पीस कर डालें और रोगी को पिलायें। पपीता और अन्नानास के ताजा रस में भरपूर एंज़ाइम होते हैं जो पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।

सायंकालीन भोजन

शाम के भोजन के आधा घन्टा पहले भी रोगी को एक कप हरी या हर्बल चाय पिलायें। सब्जियों का शोरबा या सूप, दालें, मसूर, राजमा, चावल, कूटू, मिश्रित और साबुत आटे की रोटी शायंकालीन भोजन का मुख्य आकर्षण है। सब्जियों का शोरबा, सूप, दालें, राजमा या पुलाव बिना तेल डाले बनायें। मसाले, प्याज, लहसुन, हरा धनिया, करी पत्ता आदि का प्रयोग कर सकते हैं। पकने के बाद ईस्ट फ्लेक्स और ऑलियोलक्स डाल सकते हैं। ईस्ट फ्लेक्स में विटामिन-बी होते हैं जो शरीर को ताकत देते हैं। टमाटर, गाजर, चुकंदर, प्याज, शतावर, शिमला मिर्च, पालक, पत्ता गोभी, गोभी, आलू, अरबी, ब्रोकोली आदि सभी सब्जियों का सेवन कर सकते हैं। दालें और चावल बिना पॉलिश वाले काम में लें। डॉ. बडविग ने सबसे अच्छा अन्न कूटू (buckwheat) का माना है। इसके बाद बाजरा, रागी, भूरे चावल, गैहूं आते हैं। मक्का खाने के लिए उन्होंने मना किया है।

बडविग प्रोटोकोल के परहेज
बडविग ने निम्न चीजों और खाद्य पदार्थों का सेवन करने के लिए कठोरता पूर्वक मना किया है।

चीनी
कैंसर के रोगी को किसी भी तरह की चीनी, गुड़, मिश्री, कृत्रिम शर्करा (एस्पार्टेम, जाइलिटोल आदि), चाकलेट, मिठाई, डिब्बाबंद फलों के रस या सॉफ्ट ड्रिंक कभी भी नहीं लेना चाहिये। चीनी कैंसर कोशिकाओं को पोषण देती है।

ट्रांस फैट, हाइड्रोजनीकृत फैट और रिफाइंड तेल 
तात्पर्य यह है कि आपको मिष्ठान और नमकीन भंडार, फास्ट फूड रेस्टोरेन्ट, बेकरी, जनरल स्टोर और सुपरमार्केट में मिलने वाले सभी खुले या पैकेट बंद बने-बनाये खाद्य पदार्थों से पूरी तरह परहेज करना है। बाजार और फेक्ट्रियों में बनने वाले सभी खाद्य पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, पेस्ट्री, कुकीज, बिस्कुट, मिठाइयां, नमकीन, कचौरी, समोसे, बर्गर, पिज्जा, भटूरे आदि (लिस्ट बहुत लंबी है) कैंसरकारी ट्रांसफैट  से भरपूर रिफाइंड तेल या वनस्पति घी से ही बनाये जाते हैं।  मार्जरीन, शोर्टनिंग, वेजीटेबल ऑयल या रिफाइंड ऑयल सभी हाइड्रोजनीकृत वनस्पति घी के ही मुखौटे है। हाइड्रोजनीकरण बहुत ही घातक प्रक्रिया है जो तेलों और वसा की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए की जाती है, जिससे उनमें ट्रांसफैट बनते हैं, जैविक तथा पोषक गुण खत्म हो जाते हैं और शेष बचता है मृत, कैंसरकारी और पोषणहीन तरल प्लास्टिक।

तड़का लगाना और तलना बिलकुल बन्द करना होगा
यह बिन्दु बहुत महत्वपूर्ण है। कैंसर के रोगी का खाना पकाने के लिए एक्स्ट्रा वर्जिन नारियल या जैतून का तेल या ऑलियोलक्स ही प्रयोग किया जा सकता है। कैंसर के रोगी के लिए आपको भोजन पकाने के तरीके में बदलाव लाना ही होगा। छौंक या तड़का लगाना और तलना बन्द करना होगा, उबालना और भाप में पकाना खाना बनाने के अच्छे तरीके हैं। नारियल के तेल और ऑलियोलक्स को छोड़ कर आप कोई भी तेल गर्म नहीं करें। गर्म करने से तेलों के सारे ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स और पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और खतरनाक कैंसरकारी रसायन जैसे एक्रिलेमाइड आदि बन जाते हैं। सब्जियां, शोरबे, सूप और अन्य व्यंजन बनाने के लिए आप प्याज, लहसुन, हरी मिर्च, मसाले आदि को पानी में तलें और जब खाना पक जाये तो बाद में ऊपर से नारियल का तेल या ऑलियोलक्स डाल सकते हैं। लेकिन कभी-कभी नारियल का तेल या ऑलियोलक्स एक या दो मिनट के लिए धीमी आंच पर गर्म किया जा सकता है।  

मांसाहार
बडविग ने हर तरह का मांस, मछली और अंडा खाने को मना किया है। प्रिजर्व किया हुआ मीट तो विष के समान है। मीट को प्रिजर्व करने के लिए उसे गर्म किया जाता है, घातक एंटीबायोटिक, परिरक्षण रसायन (Priservatives), रंग और कृत्रिम स्वादवर्धक रसायन मिलाये जाते हैं। 

रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट
कैंसर के रोगी को विटामिन और रेशा रहित रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट जैसे मैदा, पॉलिश्ड चावल या धुली दालों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। बाजार में उपलब्ध ब्रेड, बन, पाव, बिस्कुट, केक, पास्ता, भटूरा, समोसा, कचौड़ी आदि सभी मैदा से ही बनाये जाते हैं।

बाजार में उपलब्ध सोयाबीन और दुग्ध उत्पाद
कैंसर के रोगी को घी, मक्खन, पैकेटबंद दुग्ध उत्पाद और सोयाबीन उत्पाद प्रयोग नहीं करना चाहिये। हां खमीरीकृत सोयासॉस का प्रयोग किया जा सकता है।

माइक्रोवेव और अल्युमीनियम
भोजन पकाने के लिए माइक्रोवेव का प्रयोग कभी भी नहीं करे। माइक्रोवेव खाने को विषैला और विकृत कर देती है और तुरन्त प्रतिबंधित हो जानी चाहिये। यदि आपके घर में माइक्रोवेव ऑवन है तो उसे पैक करके आपके किसी बड़े दुश्मन को भैंट कर दें। टेफ्लोन कोटेड, एल्युमीनियम, हिंडोलियम और प्लास्टिक के बर्तन तथा एल्युमीनियम फोइल कभी भी काम में न लें। स्टेनलेस स्टील, लोहा, एनामेल, चीनी या कांच के  बर्तन उपयुक्त रहते हैं।

कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी
डॉ. बडविग कीमोथैरेपी और रेडियोथैरेपी के सख्त खिलाफ थी और कहती थी कि यह कैंसर के मूल कारण पर प्रहार नहीं करती है। उनके अनुसार तो यह एक निरर्थक, दिशाहीन, कष्टदायक और मारक उपचार है, जो कैंसर कोशिकाओं को मारने के साथ साथ शरीर की बाकी स्वस्थ कोशिकाओं को भी भारी क्षति पहुँचाता है। जिससे शरीर की कैंसर को त्रस्त और ध्वस्त करने की क्षमता (Immunity) भी घटती है। इन सबके बाद भी अधिकतर मामलों में एलोपैथी नाकामयाब ही रहती है। डॉ. बडविग कड़े और स्पष्ट शब्दों में गर्व से कहा करती थी कि मेरा उपचार कैंसर के मुख्य कारण (कोशिका में ऑक्सीजन की कमी) पर प्रहार करता है, कैंसर कोशिकाओं में ऊर्जावान इलेक्ट्रोन्स का संचार करता है, कोशिका को प्राणवायु (ऑक्सीजन) से भर देता है तथा कैंसर कोशिका खमीरीकरण (ऑक्सीजन के अभाव में ऊर्जा उत्पादन का जुगाड़ू तरीका) छोड़ कर वायवीय सामान्य श्वसन (Normal Aerobic Respiration) द्वारा भर पूर ऊर्जा बनाने लगती है और कैंसर का अस्तित्व खत्म होने लगता है। और उन्होंने इसे सिद्ध भी किया। वे तो एलोपैथी की दर्दनाशक व अन्य दवाओं और सिंथेटिक विटामिन्स की जगह प्राकृतिक, आयुर्वेद और होमयोपैथी उपचार की अनुशंसा करती थी।

अन्य निषेध
बडविग उपचार में कीटनाशक, रसायन, सिंथेटिक कपड़ों, मच्छर मारने के स्प्रे, घातक रसायनों से बने सौदर्य प्रसाधन, सनस्क्रीन लोशन, धूप के चश्में, बीड़ी, सिगरेट, तम्बाखू, गुटका, सिंथेटिक (नायलोन, एक्रिलिक, पॉलीएस्टर आदि) कपड़े, फोम के गद्दे-तकिये आदि भी वर्जित हैं। सी.आर.टी. टीवी, मोबाइल फोन से भी कैंसरकारी खतरनाक विकिरण निकलता है। एल.सी.डी. या प्लाज्मा टीवी सुरक्षित माने गये हैं। कैंसर के रोगी को तनाव, अवसाद और क्रोध छोड़ कर संतुष्ट, शांत और प्रसन्न रहने की आदत डाल लेनी चाहिये। 

बासी कुछ न लें
बडविग आहार में रोगी को कोई भी बासी व्यंजन नहीं  देना चाहिये। हर व्यंजन ताजा बनना चाहिये। 

बडविग आहार के महत्वपूर्ण बिन्दु

प्राकृतिक मिठास
स्टेविया, प्राकृतिक शहद, खजूर, अंजीर, बेरी प्रजाति और अन्य फलों के रस से आप अपने भोजन और जीवन में मिठास ला सकते हैं।  लेकिन ध्यान रहे कि प्रोसेस्ड यानी डिब्बा बन्द शहद कभी प्रयोग नहीं करें और यह भी सुनिश्चित करलें कि बेचने वाले ने शहद में चाशनी की मिलावट तो नहीं की है।

मसाले
सभी प्राकृतिक मसाले और हर्ब्स ली जा सकती हैं।

मेवे
मूंगफली के अलावा सारे मेवे या सूखे फल खाना चाहिये। कैंसर के रोगी को मेवे खूब खाने चाहिये। मेवों में अच्छे आवश्यक वसा-अम्ल, विटामिन्स और सल्फरयुक्त प्रोटीन होते हैं। मेवों को कभी भी सेकना, भूनना या पकाना नहीं चाहिये। गर्म करने से इनके बहुमूल्य पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। खुबानी के छोटी सी बादाम जैसे दिखने वाले बीजों में महान विटामिन बी-17 और बी-15 होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को मारते हैं। कद्दू और सूर्यमुखी के बीज भी बहुत लाभदायक हैं।


जैविक भोजन 
डॉ. बडविग ने स्पष्ट निर्देश दिये हैं कि कैंसर के रोगी को जैविक खाद्य पदार्थ ही प्रयोग करने चाहिये। लेकिन कई बार हमारे देश में जैविक खाद्य पदार्थ हर जगह नहीं मिलते हैं। मंहगे होने के कारण भी कई रोगी जैविक खाद्य पदार्थ खरीद भी नहीं पाते हैं। कुछ ठोस और कड़ी सब्जियां जैसे गाजर, मूली आदि में कीटनाशक और रसायन इनके गूदे या रेशों में होते हैं। यदि हमें इनका रस ही काम में लेना है तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि ज्यूसर गूदे और रेशों को तो बाहर फैंक देता है। दूसरी तरफ कुछ सब्जियां और फल जैसे पालक, हरी मटर, शिमला मिर्च, हरी बीन्स, हरा प्याज, आलू, सेब, आड़ू, नाशपाती, चेरी, स्ट्रॉबेरी, ब्लेकबेरी, रसभरी आदि हमेशा जैविक ही प्रयोग करना चाहिये क्योंकि इन पर कीटनाशक और प्रिजरवेटिव्स का छिड़काव  बहुत होता है।

जो फल और सब्जियां आपको जैविक नहीं मिल पाते हैं, तो आप उन्हें निम्न तरीके से धोकर भी कुछ हद तक कीटनाशक और रसायनों से मुक्त कर सकते हैं। पहले आप फल और सब्जियों को सादा पानी से अच्छी तरह धोयें। फिर  एक पानी से भरे बड़े बरतन में 3 प्रतिशत हाइड्रोजन-परऑक्साइड का चौथाई ग्लास और 3 टेबल स्पून खाने का सोडा  डाल कर अच्छी तरह हिला लें। इस बर्तन में फल और सब्जियों को डाल दें। दस मिनट बाद इन्हें साफ पानी से अच्छी तरह धोकर काम में ले सकते हैं।   


निर्मल जल
रोगी के पीने और भोजन बनाने के लिए पानी स्वच्छ और निर्मल जल प्रयोग करना चाहिये। निर्मल जल के लिए आप रिवर्स ओस्मोसिस तकनीक पर काम करने वाला एक अच्छा वॉटर प्युरीफायर खरीद लें।


धूप-सेवन
रोज सूर्य की धूप का सेवन करना अनिवार्य है। जब रोगी बडविग का आवश्यक वसा से भरपूर आहार लेना शुरू करता है, तो दो या तीन दिन बाद ही उसको धूप में बैठना सुहाना लगने लगता है, सूर्य जीवन की शक्तियों को जादू की तरह उत्प्रेरित करने लगता है और शरीर दिव्य ऊर्जा से भर जाता है। इससे विटामिन-डी प्राप्त होता है। रोजाना दस-दस मिनट के लिए दो बार कपड़े उतार कर धूप में लेटना आवश्यक है। पांच मिनट सीधा लेटे और करवट बदलकर पांच मिनट उल्टे लेट जायें ताकि शरीर के हर हिस्से को सूर्य के प्रकाश का लाभ मिले। धूप में लेटते समय कोई सन लोशन प्रयोग नहीं करें।


अलसी और उसका तेल
अलसी को जब आवश्यकता हो तभी ताजा पीसना चाहिये। पीसने के लिए आप एक छोटा कॉफी ग्राइंडर खरीद लें, इसमें एक या दो चम्मच अलसी भी आसानी से पिस जाती है। ध्यान रहे पीसने के बीस मिनट बाद अलसी के कैंसररोधी गुण नष्ट हो जाते हैं। इसलिए अलसी को पीसने के तुरन्त बाद व्यंजन में मिला कर रोगी को खिला दें।  पीसने के बाद ग्राइंडर के जार को अच्छी तरह साफ करने के बाद धोकर रखें।  अलसी का तेल ठंडी विधि (Cold pressed) द्वारा निकला हुआ ही प्रयोग करें। भारत में दो या तीन कंपनियां ही अच्छा तेल बनाती हैं। अलसी का तेल 42 डिग्री सेल्सियस पर खराब हो जाता है, इसलिए इसे कभी भी गर्म नहीं करना चाहिये और हमेशा  फ्रीज या डीप-फ्रीजर में ही रखना चाहिये। फ्रीज में यह 4-5 महीने तक खराब नहीं होता है और डीप-फ्रीजर में रखा जाये तो इसकी गुणवत्ता 9 महीने तक बनी रहती है। यह तेल गर्मी, प्रकाश व वायु के संपर्क में आने पर खराब हो जाता है। इसलिए कंपनियां तेल को गहरे रंग की शीशियों में नाइट्रोजन भर कर पैक करती हैं।


बडविग प्रोटोकोल कब तक लेना है
जो रोगी इस उपचार को श्रद्धा, विश्वास, भावना और पूर्णता से लेते हैं, उन्हें लगभग तीन महीने बाद स्वास्थ्य लाभ मिलने लगता है। और लगभग एक वर्ष में रोगी का कैंसर ठीक हो जाता है। लेकिन कैंसर ठीक होने के बाद भी कम से कम पांच वर्ष तक रोगी को बडविग प्रोटोकोल लेते रहना चाहिये और आहार विहार भी सात्विक रखना चाहिये। उसके बाद भी दिन में एक बार ओम खंड तो आजीवन लेना ही चाहिये। इस उपचार के बारे में कहा जाता है कि छोटी-छोटी बातें भी महत्वपूर्ण हैं। और जरा सी असावधानी इस उपचार के संतुलन को बिगाड़ सकती है। डॉ. बडविग ने स्पष्ट लिखा है कि यदि आपको मेरे उपचार से फायदा नहीं हो तो आप इस उपचार को दोष देने के बजाये यह देखें कि कहीं आप उपचार लेने में कोई गलती तो नहीं कर रहे हैं।


शांत और तनावमुक्त रहिये
बडविग ने मनुष्य को शरीर, आत्मा और मन के समन्वय से बनी एक इकाई माना है और स्पष्ट लिखा है कि कैंसर को परास्त करने के लिए जरूरी है कि हम इन तीनों को निरामय रखें। उन्होंने यह भी कहा है कि साक्षात्कार के समय कैंसर के अधिकांश रोगी बतलाते हैं कि वे पिछले कुछ वर्षों में बड़े संताप से गुजरे हैं जैसे गहरा मानसिक या आर्थिक आघात, परिवार में किसी प्रिय सदस्य जैसे पति, पत्नि, औलाद या मित्र की मृत्यु, जीवन साथी या परिवार में किसी से कटु सम्बंध या अलगाव आदि। अवसाद और तनाव भी कैंसर का एक महत्वपूर्ण  कारण है। रोगी को प्राणायाम, ध्यान व जितना संभव हो हल्का फुल्का व्यायाम या योगा करना है। 10-15 मिनट तक आंखें बंद करके गहरी सांस लेना और सांस पर ध्यान स्थिर करना भी मन को बहुत शान्ति और सुकून देता है। थोड़ा बहुत सुबह या शाम को टहलने निकलें। घर का वातावरण तनाव मुक्त, खुशनुमा, प्रेममय, आध्यात्मिक व सकारात्मक रहना चाहिये। आप मधुर संगीत सुनें, नाचें-गाएं,  खूब हंसें, खेलें कूदें। क्रोध न करें।

सप्ताह में दो-तीन बार इप्सम-स्नान, वाष्प-स्नान या सोना-बाथ लेना चाहिए। जादू की थप्पी (Emotional Freedom Technique) से नकारात्मक भावनाओं, दर्द या अन्य तकलीफें दूर हो सकती हैं। 


शैम्पेन और रेड वाइन
बडविग ने फैट सिंड्राम नामक पुस्तक के पृष्ठ संख्या 150 पर लिखा है कि कैंसर की अन्तिम अवस्था से जूझ रहे रोगी दिन में दो बार तक शैम्पेन के एक ग्लास में अलसी मिला कर पी सकते हैं। उन्होंने शाम को रेड वाइन में पिसी अलसी मिला कर पिलाने की बात भी कही है। हालांकि उन्होंने इसे प्रोटोकोल का आवश्यक हिस्सा नहीं माना है। उन्होंने कहा है कि मैं इसे बहुत ही अहम कारण से प्रयोग करती हूँ। यह गंभीर रोगी के बिगड़े हुए हाजमें को ठीक करती है और कैंसर की गहरी पीड़ा, तनाव और संताप में मरहम का काम करती है। मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि आप कैंसर के रोगी को शैम्पेन और रेड वाइन के अलावा किसी भी तरह की कोई अन्य मदिरा नहीं पिलायें। उन्होंने यह भी कहा है कि ध्यान रहे कि शैम्पेन प्राकृतिक तथा जैविक हो और उनमें कोई भी रसायन मिला हुआ नहीं हो। लेकिन ये बहुत मंहगी होती है और भारत में तो क्या विदेशों में भी मिलना मुश्किल है।   
दांत रखें स्वस्थ
अपने दांतो की पूरी देखभाल रखना है। दांतो को इंफेक्शन से बचाना चाहिये।

ऑलियोलक्स

ऑलियोलक्स की रचना डॉ. बडविग ने बड़ी सूझबूझ से की है। ऑलियोलक्स का मतलब (Oleolux – Oleo = oil & Lux  = Light) सूर्य की ऊर्जा से भरपूर तेल है । प्याज और लहसुन में सल्फर युक्त प्रोटीन होते हैं जो अलसी के तेल को खराब होने से बचाते हैं। नारियल के तेल में संत्रप्त वसा अम्ल होते हैं, जिनमें मध्यम लंबाई की कार्बन की लड़ होती है। नारियल का तेल स्वास्थ्यवर्धक, कैंसररोधी और वायरसरोधी होता है और कॉलेस्ट्रोल नहीं बढ़ाता है। इसे हृदय रोग के लिए भी कल्याणकारी माना गया है। इसे एड्स के उपचार में भी प्रयोग किया जाता है। नारियल का तेल गर्म करने पर खराब नहीं होता है। पकाने, भूनने, तलने और तड़का लगाने के लिए सर्वश्रेष्ठ तेल माना गया है। ऑलियोलक्स मक्खन का अच्छा विकल्प है। डॉ. बडविग ने अपनी बेस्ट-सेलर ऑयल प्रोटीन कुक बुक में ऑलियोलक्स का खूब प्रयोग किया है। इसे दो-चार मिनट तक गर्म किया जा सकता है। इसे आप रोटी चुपड़ने, सब्जी या शोरबा बनाने, सलाद में डालने या हल्का-फुल्का तलने या तड़का लगाने के काम में ले सकते हैं।

 सामग्री –

एक्स्ट्रा-वर्जिन नारियल का तेल                           
अलसी के तेल                                        
मध्यम आकार के प्याज   लगभग 100 ग्राम               
लहसुन की छिली हुई कलियां                             
फ्राइंग पेन या पतीली                                    
चौड़े मुंह वाली कांच की शीशी                            
250 ग्राम
125 ग्राम
एक 
दस 
एक 
एक    
         
 बनाने की विधि -

ऑलियोलक्स बनाने के लिए एक फ्राइंग पेन या पतीली में 250 ग्राम एक्स्ट्रा-वर्जिन नारियल का तेल डाल कर चूल्हे पर रखें और गर्म करें। एक मध्यम आकार के प्याज के चार टुकड़े काट करके तेल में डाल दें और धीमी आंच पर तलें। 2-3 मिनट बाद उसमें 10 लहसुन की छिली कलियां भी डाल कर भूनना जारी रखें। 10-12 मिनट बाद जब प्याज और लहसुन अच्छी तरह भुन जाये और भूरा हो जाये तो गैस बंद कर दें और प्याज लहसुन को अलग कर दें। नारियल का तेल ठंडा होने पर 125 ग्राम अलसी के तेल में मिला लें और किसी चौड़े मुंह वाली कांच की शीशी में डाल कर फ्रीज में रख दें।  इसे आप 15-20 दिन तक काम में ले सकते हैं।

लिनोमेल

लिनोमेल भी डॉ. बडविग की वैज्ञानिक परिकल्पना है। लिनोमेल का मतलब (Linomel – Linum = Linseed & Mel = Honey) शहद में लिपटी अलसी है। डॉ. बडविग ने पिसी अलसी की जगह लिनोमेल प्रयोग करने की सलाह दी है। लिनोमेल बनाने के लिए अलसी को पीस कर उसके हर दाने या कण के चारों तरफ प्राकृतिक शहद की एक पतली सी परत चढ़ा दी जाती है। जिससे अलसी लंबे समय तक खराब नहीं होती है। इसमें थोड़ा सा दूध का पावडर भी मिलाया जाता है और वह भी अलसी को सुरक्षित रखता है।  लिनोमेल सिर्फ जर्मनी में ही मिलता है। लेकिन आप चाहें तो इसे घर पर भी बना सकते हैं।  इसे बनाने के लिए आप 6 चम्मच अलसी के पॉवडर में 1 चम्मच शहद डाल कर चम्मच द्वारा  अच्छी तरह मिलाते रहे, जब तक आप आश्वस्त न हो जायें कि अलसी के हर कण पर शहद की परत चढ़ चुकी है। यह शहद की परत अलसी को हवा के संपर्क में नहीं आने देती है, जिससे वह खराब नहीं होती है। कम पड़े तो थोड़ा सा शहद और मिला सकते हैं। इसमें आप थोड़ा दूध का पावडर भी मिला सकते हैं।

बडविग का जादुई एलडी तेल


डॉ. बडविग ने कैंसर के उपचार के लिए ओम खंड के साथ साथ एक 1968 में एक विशेष तरह का इलेक्ट्रोन डिफ्रेन्शियल तेल  भी विकसित किया था, जिसे अंग्रेजी में वे ELDI Oil या एलडी तेल कहती थी। डॉ. बडविग का मानना है कि मानव का जीवन बीजों में सूर्य से प्राप्त हुई भरपूर इलेक्ट्रोन्स ऊर्जा पर निर्भर करता है। इसका जिक्र उन्होंने कैंसर-द प्रोब्लम एन्ड द सोल्युशन और अन्य पुस्तकों में किया है। उन्होंने लिखा है कि, कैंसर सम्पूर्ण शरीर का रोग है, न कि किसी अंग विशेष का। सम्पूर्ण शरीर और कैंसर के मुख्य कारण का उपचार करके ही हम इस रोग से मुक्ति पा सकते हैं। अलसी तेल और पनीर कैंसर की गांठों और मेटास्टेसिस (स्थलांतर) को शरीर की रक्षा-प्रणाली को बढ़ा कर ही ठीक करता है। इस प्रक्रिया को और गति देने के लिए मैंने मालिश एवं बाहरी लेप (external application) हेतु इलेक्ट्रोन से भरपूर सक्रिय और प्रभावी फैटी एसिड युक्त एलडी तेल विकसित किया है। इलेक्ट्रोन हमारी कोशिकाओं की श्वसन क्रिया और हिमोग्लोबिन के निर्माण को बढ़ाते हैं। अमेरिका के पेन इन्स्टिट्यूट ने मेरे बारे कहीं लिखा है कि ये क्रेजी वूमन पता नहीं इस तेल में क्या मिलाती है, जो जादुई काम ये तेल करता है वो हमारी दर्द-नाशक दवाएं नहीं कर पाती हैं। जो रोगी मंहगा एलडी तेल नहीं खरीद सकते या जिन्हें उपलब्ध नहीं हो पाता, वे इसकी जगह अलसी का तेल प्रयोग कर सकते हैं।

मालिश के फायदे

प्राचीनकाल से ही मालिश कैंसर के उपचार का एक हिस्सा रहा है। शमां जल रही हो, हल्का संगीत बज रहा हो, अगरबत्ती की खुशबू से फिज़ा महक रही हो, ऐसे में अलसी या एल डी तेल से मालिश करवाना शरीर, मन और आत्मा को शान्ति और सुकून देता है। लेकिन मालिश करते समय यह जरूर ध्यान रखें कि जहां तकलीफ हो या दर्द हो उस जगह ताकत लगा कर नहीं मलना करना चाहिये। कैंसर के रोगी को अलसी या एल डी तेल की मालिश से कई फायदे होते हैं।

       मालिश से नकारात्मक भावना बाहर निकलती हैं, मन तनावमुक्त होता है और शरीर में ऊर्जा का संचार  होता है। 

       प्रतिरक्षा प्रणाली सशक्त होती है और दर्द में राहत मिलती है क्योंकि मालिश से शरीर में लिम्फोसाइट्स, प्राकृतिक दर्द निवारक एन्डोर्फिन्स का स्राव बढ़ता है है।

       मालिश से शरीर का लसिका तंत्र या लिम्फेटिक सिस्टम उत्प्रेरित होता है, जिससे शरीर से दूषित पदार्थ बाहर निकलते हैं। लिम्फेटिक सिस्टम पूरे शरीर में फैला लसिका ग्रंथियों और महीन वाहिकाओं का एक जाल है जो कोशिकाओं को पोषक तत्व पहुंचाता है और दूषित पदार्थ बाहर निकालता है। यह एक प्रकार से हमारे शरीर के कचरे को बाहर फैंकने का काम करता है। इस तंत्र में हृदय भांति की कोई पंप जैसी संरचना नहीं होती है, बल्कि इसमें द्रव्य का परिवहन श्वसन या मांस-पेशियों की हरकत पर निर्भर करता है। मालिश से शरीर के दूषित पदार्थ बाहर निकलते हैं।

अलसी के तेल की मालिश एवं पेक लगाने के निर्देश

एलडी-आर तेल से दिन में दो बार पूरे शरीर पर मालिश करें। कंधों, छाती, जांघ के ऊपरी हिस्से, कांख, संवेदनशील जगह जैसे आमाशय, यकृत आदि पर ज्यादा अच्छी तरह मालिश करें। तेल लगाने के बाद 15-20 मिनट तक लेटे रहें। इसके बाद बिना साबुन के गर्म पानी से शावर लें, यह गर्म पानी त्वचा के छिद्र खोल देगा और त्वचा में गहराई तक तेल का अवशोषण होगा।  इसके 10 मिनट बाद साबुन लगा कर दूसरी बार शावर लें और 15-20 मिनट तक विश्राम करें। लम्बे समय में आपको बहुत अच्छे परिणाम मिलेंगे।
आयल पेक लगाने के निर्देश

साफ सूती कपड़ा लें। उसे अंग के नाप के अनुसार काटें। इसे तेल में गीला करके अंग पर रखें, इसे ऊपर से पतले प्लास्टिक से ढकें और क्रेप बेन्डेज से बांध दें। रात भर बंधा रखे, सुबह खोल कर धोलें। आयल पेक का प्रयोग हफ्तों तक करें। इसके लिए भी  एलडी-आर तेल ही काम में लें। ऑयल पेक लगाने से स्थानीय तकलीफ जैसे दर्द में बहुत फायदा होता है।    
अलसी के तेल का एनीमा के लिए निर्देश

कैंसर के गंभीर रोगियों को शुरू में अलसी के तेल का एनीमा रोज देना चाहिये। डॉ. बडविग ने एनीमा के लिए स्पष्ट निर्देश नहीं दिये हैं। अतः रोगी की गंभीरता के अनुसार अपने विवेक से निर्णय लें। एनीमा लेने के लिए टॉयलेट या टॉयलेट के पास का कोई कमरा ही उचित रहता है। एनीमा केन रोगी के शरीर से एक या डेढ़ फुट ऊँची होनी चाहिये। ट्यूब के नोजल पर कोई चिकनाई जैसे वेसलीन या या अलसी का तेल लगाना चाहिये ताकि वह बिना किसी तकलीफ के मलद्वार में घुस सके। तेल का एनीमा लेने के पहले 2 से 4 कप स्वच्छ हल्के गुनगुने या ठंडे पानी का एनीमा देना चाहिये, जिससे आंतें साफ हो जाये। पानी डिस्टिल्ड या अक्वा-गार्ड का प्रयोग करें। यदि एनीमा लेने समय दर्द हो तो थोड़ी देर के लिए ट्यूब की घुन्डी बंद कर दें और दर्द बंद होने पर पुनः खोल दें। पानी के एनीमा को ज्यादा देर रोकने की जरूरत नहीं होती है। पूरा पानी अन्दर जाने के बाद आप कोमोड पर दस मिनट शान्ति से बैठे रहें। आंतों को खाली होने में समय लगता है। 

इसके बाद लगभग 200 से 250  ml तेल एनीमा केन  में भर कर मल द्वार में डालें। ट्यूब में मौजूद हवा को निकलने में भी लगभग पांच मिनट का समय लग जाता है। रोगी को कोहनियों और घुटनें के बल उलटा करें और कूल्हे उठे हुए रहें। जब सारा तेल अंदर चला  जाये तो रोगी को 15 मिनट तक दांई तरफ से, फिर 15 मिनट तक बांई तरफ से लेटा दें। इस समय रोगी तनावमुक्त भाव में लेटा रहे और संगीत, टीवी या अखबार पढ़ने में स्वयं को व्यस्त रखे। शुरू में तेल को इतनी देर रोकना आसान नहीं होता है। लेकिन कुछ दिनों में रोगी को अभ्यास हो जाता है। तेल गाढ़ा होता है इसलिए कभी-कभी एनीमा केन को थोड़ा ऊपर लटकाना पड़ता है। इसके बाद रोगी गुदा को खाली करें और अच्छे से धोले। तेल का एनीमा बड़ी सीरिंज से भी दिया जा सकता है और सीरिंज की टिप रबर की उपयुक्त रहती है। अन्त में रोगी कोमोड पर 15 मिनट तक शान्ति से बैठ जाये और फिर मल-द्वार को स्वच्छ करले।

कॉफी एनीमा

बडविग आहार में वैसे तो कैंसर के रोगी को कॉफी नहीं पीनी चाहिये लेकिन कॉफी एनीमा दर्द-निवारण और यकृत के निर्विषिकरण (Detoxification) हेतु प्रमुख उपचार है। इसे सर्व प्रथम 1930 में डॉ. मेक्स जरसन ने  कैंसर के उपचार के लिए विकसित किया था। इस एनीमा में कॉफी के घोल की थोड़ी मात्रा लगभग 2 या तीन कप ही मलद्वार में डाली जाती है, सिगमॉयड कोलोन तक ही पहुंचती है। कॉफी एनीमा से खनिज-लवण और विद्युत अपघट्य का नुकसान नहीं होता है, क्योंकि मल से इनका पुनरअवशोषण सिगमॉयड कोलोन से पहले ही हो जाता है। यह एनीमा उनके लिए भी सुरक्षित है जिन्हें कॉफी से ऐलर्जी होती है क्योंकि सामान्य परित्थितियों में इसका रक्त में अवशोषण नहीं होता है।

कॉफी में मौजूद केफीन यकृत और पित्ताशय को ज्यादा पित्त स्राव करने के लिए प्रेरित करता है। यकृत और छोटी आंत शरीर के टॉक्सिन, पोलीएमीन, अमोनिया और मुक्त कणों को निष्क्रिय करते हैं।  कॉफी में थियोफाइलीन और थियोब्रोमीन होते हैं जो पित्त वाहिकाओं का विस्तारण कर दूषित कैंसर-कारी तत्वों का विसर्जन सहज बनाते हैं और प्रदाह (Inflammation) को शांत करते है।  कॉफी में विद्यमान कावियोल और केफेस्टोल यकृत में पामिटेट एन्जाइम ग्लुटाथायोन एस-ट्रांसफरेज़  तंत्र को उत्साहित करते हैं। यह तंत्र यकृत में ग्लुटाथायोन का निर्माण करता है जो महान एन्टीऑक्सीडेन्ट है और  कैंसर-कारक मुक्त कणों और दूषित पदार्थों को निष्क्रिय करता है।  कॉफी एनीमा इस तंत्र की गतिविधि में 600% -700% तक की वृद्धि करता है। सामान्यतः एनीमा को 15 मिनट तक रोका जाता है। इस दौरान यकृत की वाहिकाओं में रक्त तीन बार  चक्कर लगा लेता है अतः रक्त का बढ़िया शोधन भी हो जाता है।  

सामान्यतः कॉफी एनीमा पहले सप्ताह रोजाना लेना चाहिये। यदि दर्द हमेशा बना रहता हो तो दिन में एक से ज्यादा बार भी ले सकते हैं। दूसरे सप्ताह हर दूसरे दिन एनीमा लेना चाहिये, तीसरे सप्ताह दो या तीन बार ले सकते हैं। बाद में सप्ताह में एक बार तो एनीमा लेना ही चाहिये।

कॉफी एनीमा की विधि
आवश्यक  सामग्री
1- एनीमा उपकरण - प्लास्टिक, स्टील  या एनामेल का ठीक रहेगा। 2- कॉफी उबालने के लिए स्टील की पतीली और चलनी। 3- जैविक कॉफी बीन्स जिन्हें ताज़ा पीस कर प्रयाग करें। 4- चार कप निर्मल जल - क्लोरीन युक्त पानी को 10 मिनट तक उबाल कर प्रयोग किया जा सकता है।

विधि
1.         कॉफी एनीमा देने के पहले रोगी को 2 या 3 कप पानी ठंडे और स्वच्छ पानी का एनीमा देना चाहिये। पानी को ज्यादा देर तक रोकना की जरूरत नहीं होती है। इस एनीमा का उद्देश्य आंतों की शुद्धि करना है।

2.         पतीली में आधा लीटर साफ पानी उबलने के लिए गैस पर रख दें। उबाल आने पर पतीली में 2 बड़ी चम्मच जैविक कॉफी डाल कर पांच मिनट तक उबालें और गैस बंद कर दें। अब इसे तक ठंडा होने दें और अंगुली डाल कर सुनिश्चित कर लें कि यह गर्म तो नहीं है।

3.         अब कॉफी को स्टील की चलनी से छान कर एनीमा केन में भर लें। फर्श या पलंग पर पुराना तौलिया बिछा लें। तौलिये के नीचे प्लास्टिक की शीट बिछाई जा सकता है ताकि फर्श या पलंग पर कॉफी के निशान न लगें।  कॉफी के निशान बड़ी मुश्किल से छूटते हैं। एक या दो पुराने तौलियों  को गोल लपेट कर सर के नीचे भी रख सकते हैं। अब एनीमा केन के नोजल की घुन्डी खोल कर ट्यूब की हवा को निकाल कर पुनः घुन्डी बंद कर दें। 

4.         अब कोट के हैंगर से एनीमा केन को ढाई या तीन फुट की ऊंचाई पर दरवाजे के हैंडल या टॉवल स्टैंड से लटका दें।  ज्यादा  उंचाई पर लटकाने से कॉफी के बहाव का प्रेशर ज्यादा रहेगा और ट्यूब भी छोटी पड़ सकती है। 

5.         अब तौलिये पर पीठ के बल या दांई बगल से लेट कर एनीमा के नोजल पर वेसलीन  या के-वाई जैली लगा कर धीरे से मलद्वार में घुसा कर घुन्डी खोल दें और लगभग दो कप कॉफी अंदर जाने के बाद घुन्डी पुनः बंद कर दें।  यदि ज्यादा तकलीफ या दर्द हो तो भी घुन्डी तुरंत बंद कर दें। अब चुपचाप बिना हिले-डुले लेटे रहें।  कॉफी को कम से कम 12 मिनट तक रोकें और फिर गुदा को खाली  कर लें। अब एक बार फिर से बचे हुए कॉफी के घोल का एनीमा लें और कम से कम 12 मिनट तक  रोकें।  पुनः गुदा को खाली करें और अच्छे से धोवें। यदि एनीमा को 12 मिनट तक रोकने में बहुत कष्ट या पीड़ा होने लगे तो ज्यादा ताकत लगा कर उसे रोकने से बेहतर है आप कोमोड पर बैठें और मल को विसर्जित कर दें। यदि एनीमा लेने पर दिल की धड़कन बढ़ना या हृदयगति अनियमित होना जैसी कोई विशेष तकलीफ हो तो अगली बार कॉफी की मात्रा आधी कर दें।

6.         तात्पर्य यह हे कि आपको दो बार एनीमा लेना है। हर बार लगभग दो कप घोल अंदर लें और  लगभग 12 मिनट तक रोकें। पूरी प्रक्रिया समाप्त होने पर सारे उपकरणों को गर्म पानी या एन्टी-सेप्टिक द्रव से अच्छी तरह घोकर सूखने के लिए रख दें।

निर्विषीकरण स्नान

आयुर्वेद और प्राकृतिक चिकित्सा में शरीर के निर्विषीकरण के लिए कई तरह के स्नान करवाये जाते हैं। त्वचा को हमारा तीसरा गुर्दा  कहा जाता है।  शरीर में जमा विषैले और दूषित पदार्थों को पसीनें के माध्यyम से विसर्जन किया जाता है। कैंसर के रोगियों के लिए इप्सम बाथ (Magnesium sulphate Bath) बहुत अच्छा माना गया है। इसे रोगी अपने घर पर स्नानघर में बने बाथटब में सहजता से ले सकता है। इससे दर्द और तनाव दूर होता है। इसे शुरू में सप्ताह में एक बार और बाद में महीने में एक बार लेना चाहिये। 
इप्सम बाथ लेने में 40 मिनट का समय लगता है। पहले 20 मिनट में शरीर के टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं और बाद के 20 मिनटों में खनिज लवण शरीर में अवशोषित होते हैं। पहले आप टब में गर्म पानी भर लें। संभव हो तो पानी की टोंटी में क्लोरीन फिल्टर लगा लेना चाहिये। अब टब में दो कप या ज्यादा इप्सम साल्ट और दो या ज्यादा खाने का सोडा (Sodium bicarbonate) अच्छी तरह मिला लें। सोडा पानी को मृदु करता है, शरीर में मेग्नीशियम का अवशोषण बढ़ाता है और क्लोरीन को निष्क्रिय करता है। आप इसमें एक बड़ी चम्मच से तिहाई कप पिसी हुई सौंठ भी मिला सकते हैं। इससे पसीना बहुत आता है। यह शरीर को गर्मी देती है और कभी-कभी त्वचा लाल तक हो जाती है। ऐसी स्थिति में सौंठ की मात्रा कम कर दें। स्नान को सुखद और खुशनुमा बनाने के लिए आप इसमें 20 बूंद लेवेन्डर, चाय के पेड़ या यूकेलिप्टिस का तेल भी सुगंध भी मिला सकते हैं।  चाय के पेड़ या यूकेलिप्टिस का तेल टॉक्सिन्स के  विसर्जन में भी मदद करता है। टब में लेटने के कुछ मिनटों में आपको पसीना आयेगा। जितनी ज्यादा देर पसीना आये उतना ही अच्छा है। लगभग 20 मिनट बाद या जब बहुत गर्मी लगने लगे तो आप टब में ठंडा पानी मिलायें और पानी को धीरे-धीरे ठंडा करें और बाकी 20 मिनट ठंडे पानी में लेटे रहें। ध्यान रहे टब से सावधानीपूर्वक बाहर निकलें क्योंकि पसीना आने के कारण आप कमजोरी महसूस करेंगे और हल्के से चक्कर भी आ सकते हैं। इस स्नान के बाद नींद आती है। बेहतर होगा आप टब से बाहर निकल कर  कंबल ओढ़ कर बिस्तर में विश्राम करें ताकि आपको थोड़ी समय पसीना और आता रहे। 

 अजवाइन की चाय (OREGANO TEA)

यह लसिका-तंत्र के निर्विषीकरण के लिए बढ़िया समाधान है। कम से कम तीन सप्ताह तक इसके सूखे पत्तों की तीन कप चाय रोज पीना चाहिये। इसे बनाने के लिए तीन चाय-चम्मच अजवायन के पत्ते साढ़े तीन कप पानी में डाल कर 10-12 मिनट तक धीमी आंच पर गर्म करें और छान कर पीयें। ध्यान रखिये जिन्हें उच्च-रक्तचाप है वे रोज एक कप से ज्यादा नहीं पीयें और रक्तचाप को नियंत्रित रखें।

उलटी या जी घबराने का प्राकृतिक उपचार

कुछ रोगियों को प्रारंभ में सुबह-सुबह ओम-खंड लेने पर उलटी या जी घबराने की शिकायत होती है। इस स्थिति में वे सुबह के ओम-खंड को शाम के भी ले सकते हैं। उलटी और जी घबराये तो ओम-खंड लेने के ठीक बाद नीबू का रस या एक कप पपीता बहुत प्रभावकारी होता है। चौथाई चाय-चम्मच इप्सम सॉल्ट को एक ग्लास पानी में मिला लें और दिन भर थोड़ा-थोड़ा पीते रहने से भी उलटी में आराम मिलता है। लौंग, अदरक की चाय, होम्योपैथिक दवा PSN 6X या ओ.आर.एस. भी उलटी में राहत देता है।

 रिबाउन्डर

कैंसर के रोगियों के लिए रोज 2 या 3 मिनट के लिए रिबाउन्डर या मिनिट्रेम्पोलाइन पर उछलने से भी शरीर के दूषित पदार्थ  बाहर निकलते हैं। जब आप रिबाउन्डर पर उछलते हैं तो कुछ क्षण के लिए आप हवा में तैर रहे होते हैं तब आपकी कोशिकाओं में जल का दबाव कम हो जाता है और कोशिकाओं में पोषक तत्व प्रवाश करते हैं और दूषित पदार्थ बाहर आते हैं। इस तरह शरीर की हर कोशिका का व्यायाम हो जाता है। उछलने पर लिम्फेटिक तंत्र में गुरुत्वाकर्षण का खिंचाव 2 से 4 गुना हो जाता है जिससे वे शरीर का चयापचय कचरा और दूषित तत्व जैसे टॉक्सिन्स, मृत कोशिकाएं, कैंसर कोशिकाएँ, नाइट्रोजनयुक्त दूषित पदार्थ, निरर्थक प्रोटीन  के अवशेष, वसा के कण, कीटाणु, विषाणु, भारी धातु के अणु आदि उत्सर्जित कर देते हैं। स्तन कैंसर से पीड़ित स्त्रियों के लिए रस्सी कूदना भी रिबाउन्डर का अच्छा विकल्प है।  

प्राकृतिक दर्द निवारक उपाय

कैंसर का एक कष्टप्रद लक्षण दर्द भी है, जिसके लिए बुडविग अलसी या एलडी तेल का एनीमा, ऑयल पैक और मालिश, कॉफी एनीमा, होम्योपैथी, केस्टर ऑयल पैक, धूप सेवन, गर्म और ठंडे पानी से स्नान, इप्सम सॉल्ट बाथ, रेड वाइन और शैम्पेन, खूब सारा पानी, हर्बल चाय, प्राणायाम, मेडीटेशन, इमोशनल फ्रीडम टेकनीक आदि का प्रयोग करती थी।

हड्डियों में होने वाले दर्द के लिए खुबानी के बीज (शरीर के 10 पॉन्ड वजन के लिए एक बीज के हिसाब से प्रयोग करें) और सूर्यमुखी के बीजों (जिंक) को ग्राइंडर में पीस कर पानी के साथ लेना चाहिये। इसके साथ यह बहुत जरूरी है कि आप रोग पपीता और अन्नानास का रस पियें। साथ में खूब पानी पियें।

 उपसंहार

आप सोच रहे होगें कि डॉ. योहाना की उपचार पद्धति इतनी असरदायक व चमत्कारी है तो यह इतनी प्रचलित क्यों नहीं है। यह वास्तव में इंसानी लालच की पराकाष्ठा है। सोचिये यदि कैंसर के सारे रोगी अलसी के तेल व पनीर से ही ठीक होने लगें तो कैंसर की मंहगी दवाईया व रेडियोथैरेपी   उपकरण बनाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कितना बड़ा आर्थिक नुकसान होता। इसलिए उन्होंने किसी भी हद तक जाकर डॉ. योहाना के उपचार को आम आदमी तक नहीं पहुंचने दिया। मेडीकल पाठ्यक्रम में उनके उपचार को कभी भी शामिल नहीं होने दिया।

यह हम पृथ्वी वासियों का दुर्भाग्य है कि हमारे यहां शरीर के लिए घातक व बीमारियां पैदा करने वाले वनस्पति घी बनाने वालों पॉल सेबेटियर और विक्टर ग्रिगनार्ड को 1912 में नोबेल पुरस्कार दे दिया गया था और कैंसर जैसी जान लेवा बीमारी के इलाज की खोज करने वाली डॉ. योहाना नोबेल पुरस्कार से वंचित रह गई। क्या कैंसर के उन करोड़ों रोगियों, जो इस उपचार से ठीक हो सकते थे, की आत्माएँ इन लालची बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कभी क्षमा कर पायेगी ??? लेकिन आज यह जानकारी हमारे पास है और हम इसे कैंसर के हर रोगी तक पहुँचाने का संकल्प लेते हैं। डॉ. योहाना का उपचार श्री कृष्ण भगवान का वो  सुदर्शन चक्र है जिससे किसी भी कैंसर का बच पाना मुश्किल है।  
  
 भारत में ठंडी विधि से निकले अलसी के तेल निर्माता
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