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15.2.08

कल भी नही मरा मैं

पता नही कल क्या था , मुझे हर वक्त लग रहा था कि मैं मर जाऊँगा । सुबह से ही । सोकर उठा तो लगा कि अभी ही मर जाऊँगा , तो बिना मुंह धोये ही थोडी सी पी ली , फ़िर भी लगा कि मर जाऊँगा, सोचा मरना है तो पहले अख़बार पढ़ लूँ । अख़बार पढ़ते-पढ़ते लगा कि बस अभी ही मर जाऊँगा , तो जल्दी -जल्दी अख़बार की न्गी -अधनंगी तस्वीरे देख ली , फ़िर भी लगा की ब्चुन्गा नही तो सोचा मुंह धो लूँ , मुंह धोने पर भी राहत नही रे भाई , तो ठंडे पानी से नहाया , कोई फायदा नही , दौड़कर एक प्रेमिका के घर गया कि मरने के पहले एक पुन्य काम कर लूँ , किया लेकिन कोई फायदा नही लगा कि बस आज ही भर है दाना-पानी । सोचा मरने के पहले बड़े बुजुर्गों को प्रनाम ही कर लूँ , माता पिता यहा थे नही सवाल था किसे प्रनाम करूं , सोचा फोन कर प्रनाम करूं , पर लगा कि चला-चली की बेला है , फोन से काम बनेगा नही और माँ मेरी हालत जानकर रोने लगे तो ठीक से मर भी नही पाउँगा , पिताजी तो खैर खुश ही होते , चलो जान छूता , दस बवाल का जड़ था , सोचा ऐसे आदमी को प्रनाम करूं जो मेरे मरने पर न बहुत खुशी हो न बहुत दुखी , दुआ करे किचलो मर रहे तो कोई अच्छी बात नही लेकिन जो कर रहे तुमने अपना कुछ सोचा ही होगा / मैं बिना पुन्य काम किए मर नही सकता था , बस लग रहा था कि यह काम करूं कि जान निकले , रोड पर आप अन्यास किसी को प्रनाम कर नही सकते , पागल बुझ के कुछ कर बैठे तो ? सोचा दफ्तर जाकर बॉस को प्रनाम करूं , जो रोटी देता है पुन्य भी देगा । लेकिन दफ्तर जाकर विचार और मन बदल गया , लगा कि शाम को पिए बगैर मर नही सकता , शाम को पिया तो सब भूल गया , आज नशा उतरा ये सब याद आया तो हसी आ रही है , पागलों की तरह हँसता जा रहा हूँ । कल तो मुहब्बत में मरने का दिन था कहाँ मुझे सचमुच में मरने का ख्याल आ गया था, बचा हूँ बचा रहूँ -दुआ करे ।


हरे प्रकाश उपाध्याय

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

महाराज,जब तक आप यमराज की नहीं मार लेंगे तब तक नहीं मरने वाले ,छक कर पिए जाइए और जिए जाइए....

यशवंत सिंह yashwant singh said...

शानदार भड़ास है, शानदार कमेंट है, शानदार रचना है...बधाई
यशवंत