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21.2.08

एलन पीज ने समझाया था...

ऑस्‍ट्रेलिया के चिंतक एलन पीज ने बीस सालों से अधिक समय तक शोध किया और सिद्ध कर दिया कि आदमी और औरत के सोचने का तरीका बिल्‍कुल अलग होता है। हमारे भडास गुरू यशंवत जब सब्‍जी मंडी में घूमते बैल की तरह कमसिन चोखेरबालीम में घुसे और वहां सजी तरकारियों को बुरी तरह झकझोर दिया।
इस प्रकरण में यशवंतजी अपनी जगह सही थे और चोखेरबालियां भी अपनी जगह सही है। अपनी पोस्‍ट देने से पहले एक बार यशवंतजी स्‍वप्‍नदर्शी का ब्‍लॉग देख लेते तो उन्‍हें पता चल जाता कि महिलाओं की सोच कैसे गति करती है। जब चोखेरबाली में पतन पर लिखा गया तो उससे जुडी महिलाओं ने पतन और उसके स्‍वरूप को बखूबी समझ लिया लेकिन पुरुष मानसिकता में यह बात घुस नहीं सकती। उसके मूल्‍य अलग हैं। उनके अनुसार कमर में बल डालकर उरोज झुका देने के साथ पतन की शुरूआत हो जाती है लेकिन महिलाओं के लिए उनके उरोज भी पेट और हाथों की तरह होते हैं। अगर सामाजिक मर्यादाएं न हो तो महिलाएं भी हम पुरुषों की तरह गर्मियों में टॉपलैस घूस सकती हैं। इसलिए नहीं कि वे मादक होती है बल्कि इसलिए कि उन्‍हें भी गर्मी उतनी ही लगती है जिनती हमें।
इस तरह मैं कह सकता हूं कि चोखेरबालियों का प्रतिरोध भी अपनी जगह सही है। जब यशवंतजी को पता नहीं था कि पतन का अर्थ क्‍या है तो मूल्‍य रहित पतनता की सलाह देना भी ठीक नहीं। जहां तक भडास की बात है मैं यही कहूंगा कि भडास को भी बहुत बडा कम्‍युनिटी ब्‍लॉग बनने के बाद तय करना होगा कि क्‍या और कैसे व्‍यक्‍त हो।
भडास के मूल्‍यों और मर्यादाओं पर बहस फिर कभी...

2 comments:

अबरार अहमद said...

joshi ji aapne bakhubi is pure masle ko samjha aur apni bat kahi. dhnyvad

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

जोशी जी,मूल्य और मर्यादाओं पर हर व्यक्ति की अपनी निजता है उसमें कौन होगा जो सामाजिक मूल्यों का निर्धारण करा जाएगा । विरोधाभास तो हर व्यक्ति के भीतर है तो सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ऐसा क्यों न होगा ? जीवन ऐसे ही गति करता आगे बढ़ता चला जाता है....