मनीष राज जी,
बेगूसराय वाले....
आपने जो ये वाली पोस्ट डाली है, जिसे हटाकर मैं ये सब बातें लिख रहा हूं, वो हम भड़ासियों के बीच ही विवाद पैदा करने वाली है। इसीलिए बतौर माडरेटर व एडमिन, मैं इसे हटा कर आपके नाम एक प्यारा से ये खत लिख रहा हूं।
आपसे आज फोन पर बतियाकर अच्छा लगा। इतने दूर होकर भी आप भड़ास से जिस कदर जुड़े हुए हैं, जितने उत्साह व आत्मा से अपनी बात रखते हैं, मैं उसका कायल हूं। बात करते हैं भड़ास की दशा-दिशा संबंधी विवाद पर, जिसके एक पक्ष को मैं और आप आवाज देते हैं और दूसरे पक्ष का डा. रुपेश, पूजा समेत ढेर सारे साथी प्रतिनिधित्व करते हैं।
मैं और आप न तो पूजा की बात के खिलाफ हैं, न डा. रुपेश जी के। दरअसल, देखा जाए तो ये विवाद कोई विवाद नहीं बल्कि भड़ास को सार्थक बनाने की पहल का है। और इसी तरह के अनवरत मंथन से अमृत निकलेगा। हम सब अलग-अलग सोच, बैकग्राउंड, शहर, मजबह, पेशे....के होने के बावजूद आत्मा से भड़ासी हैं। सरल सहज लोग हैं। और ये गुण सारे भड़ासियों में है, तभी वो भड़ास के सदस्य हैं। ये अलग बात है कि मात्रा किसी में कम या ज्यादा हो सकती है।
अगर मंजिल एक है तो रास्ते अलग अलग भी हों तो क्या दिक्कत है। आत्मा एक है और शरीर अलग अलग है तो क्या दिक्कत है। पूजा ने जो कहा है, और उनके समर्थन में जो साथी हैं, वो भी उतने ही सच्चे भड़ासी हैं, जितने कि मैं और आप जो भड़ास पर अपने तरीके से लिखना जीना चाहते हैं। और ये जो एकता में विभिन्नता है, यही तो रंग बिरंगे फूलों के गुलशन की नींव है। अगर सब एक तरह के हो जाएं, एक तरह से सोचें, एक जैसा ही लिखें तो फिर मामला एक रस नहीं हो जाएगा?
डा. रुपेश जी हम लोगों से काफी बड़े हैं, काफी अनुभवी हैं, वो सच्चे मायने में भड़ासी हैं क्योंकि हम लोग तो नौकरी वौकरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं, वो तो झोला उठा कर झुग्गी झोपड़ियों और गरीबों के बीच घूम कर उन्हें न सिर्फ मुफ्त इलाज देते हैं बल्कि उन्हें संगठित करने उनके हक के लिए लड़ते हैं। वो सच्चे अर्थों में सच्चे मनुष्य हैं। वो एक तरह से हम भड़ासियों के गार्जियन भी हैं। अगर वो किसी भड़ासी का कान उमेठते हैं तो ये उसे-हमें अपना सौभाग्य मानना चाहिए।
मनीष जी, मुझे ये पोस्ट हटाने के लिए माफ करेंगे क्योंकि दरअसल इस पोस्ट में पूजा की पोस्ट के कमेंट थे और आपने बस उपर एक लाइन और नीचे एक लाइन लिखा था, जो मेरे हिसाब से इसलिए आपत्तिजनक है क्योंकि इससे भड़ासियों की एकता में दरार पैदा हो सकती थी, ऐसी मेरी आशंका थी। हो सकता है मेरी आशंका गलत रही हो लेकिन मुझे इस पोस्ट को हटाने का निर्णय लेना पड़ा।
मनीष जी, भड़ास को अभी लंबा रास्ता तय करना है सो एकता बहुत जरूरी है। यह एक बड़ा परिवार है, औघड़ों का परिवार है, बंजारों का परिवार है, सच्ते दिलों का कुनबा है। और जब इतने बंजारे, आवारे, औघड़ एक जगह इकट्ठे हों तो वहां हंगामा तो बरपेगा ही। तो इसमें जरूरी यह है कि हम हर स्थिति में मुस्कराते रहें और एक दूजे को सम्मान देते रहें।
आपका भड़ासी साथी
यशवंत सिंह
18.2.08
साथी मनीष राज, बेगूसराय वाले.....हम हार के जीतेंगे !!!
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1 comment:
दादा, आपने सही लिखा कि ये तो मंथन चल रहा है आप लोग देवता बन जाओ हम लोग राक्षस ही सही पर भड़ास से अमिय निकालने में हमारा भी योगदान है लेकिन पूजा को रस्सी क्यों बना रहे हैं लोग उसे भी भूतनी बनी रहने दीजिए ,रस्सी किसी दूसरे मुद्दे को बना लेते हैं....
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