आदतों की दाल
फ़ितरतों के चावल
अच्छाइयों का अदहन
कुछ कंकरीले संबंध
परिस्थितियों की बटलोई
बुराइयों की आग
धमक-धमक रोना
आहट-आहट मुस्कराहट
उनींदे से जागना
खुली आंखों से सोना
हर आस विरोधाभास
रोज़ खुद को ही खाती हूं
पेट भर निवाला दर निवाला
मैं रबड़ी नहीं मीठी सी
फ़ीकी खिचड़ी बन गई हूं
भड़ास ने मुझे खुद से मिला दिया डा.रूपेश के द्वारा......
भड़ास ज़िन्दाबाद
19.2.08
फ़ीकी खिचड़ी बन गई हूं
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment