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20.2.08

गालियां भीतर न रखें, गाली देकर ऊर्जा व्यय न करें

डा.रुपेश साहब के एक पुराने परिचित मुझसे मिलने आए। उन्होंने एक किस्सा सुनाया। एक सच्ची घटना। उन्होंने बताया कि एक बार ग्रामीण लोगों के बीच हुए झगड़े को सुलझाने गए डा. रूपेश को एक पक्ष के बहुत ही बदतमीज किस्म के आदमी ने कहा कि ,"ए डाक्टर तू चुप रह ,तेरी मां की चूत.....।

इस बात पर जो झगड़ा था उसका मुद्दा ही बदल गया कि उस आदमी ने जनाब को गाली दी । आप सोच भी नहीं सकते कि जनाब डा. रूपेश ने क्या बोला होगा; मुझे डा.साहब के मित्र ने बताया कि ये गम्भीर मुद्रा में बोले,... देखिए आप लोग बात बिलकुल मत बदलिए इस आदमी ने कुछ गलत नही कहा यह तो शाश्वत सत्य है जैसे सूरज पूरब से निकलता है इसबात पर सन्नाटा हो गया डा.साहब ये क्या कह रहे हैं । वे बोले कि इसने जो भी कहा क्या कोई भी उस बात से इत्तेफ़ाक नहीं रखता कि मेरी मां की चूत है तो क्या मैं पेड़ से टपका हूं ? मेरी ही क्या आप सबकी मांओ की चूत है इस बात को पलटिए मत और जिस बात पर विवाद है उस पर चर्चा करिए ।

यकीन जानिए जिस आदमी ने ऐसा बोला था उसी के ग्रुप के लोग उसे मारने उठ पड़े थे लेकिन डा.साहब की इस बात से सब न सिर्फ़ शान्त हो गए बल्कि पहला विवाद भी खत्म हो गया । वो आदमी आज डा.साहब का मुरीद है । ऐसे हैं हमारे डा.साहब । मनीष भाई ने कहा कि डा.साहब खुद गाली देते हैं और हमें मना करते हैं ,पूजा की बात की प्रशंसा करते हैं । मनीष भाई इस दुनिया में एटम से लेकर पूरी कायनात में सय्यारे तक द्विध्रुवी हैं । दरअसल आप समझ नहीं पा रहे हैं कि यशवंत भाईसाहब और डा.साहब अलग हैं ही नहीं बल्कि वे दोनो भड़ास नामक चुम्बक के दो ध्रुव हैं और आपको पता है कि चुम्बक के दोनो ध्रुव समान रूप से लोहे को अपनी ओर खींचते हैं ,विपरीत ध्रुव एकदूसरे को अपनी ओर खींचते हैं समान ध्रुव तो एकदूसरे परे धकेलते हैं । ठीक ऐसे ही यशवंत भाईसाहब और डा.साहब भी भड़ास के दो ध्रुव हैं जिन्होंने इसे वजूद दिया है अगर यशवंत भाईसाहब "भड़ास" के भारी-भरकम ,भुनभुनाते ,भन्नाए हुए ,भदेस भाषाई "भ" है तो सौफ़्ट ,सिल्की ,सनसनाते हुए ,संजीदा भाषाई "स" हैं डा.साहब बाकी हम लोग तो बीच के "ड़ा" हैं जिससे कोई सार्थक शब्द तक नहीं शुरू हो पाता है शायद । भड़ास पर लामबन्दी ठीक नही जान पड़ती ये कोई राजनीतिक मंच नहीं है कि किसी को अपनी प्रभुता सिद्ध करना हो ।
डा.साहब कहते हैं कि गाली दे देने से आपकी ऊर्जा व्यय हो जाती है ,कोई भी कार्य मन वचन और कर्म से करा जा सकता है तो अगर कार्य करना है तो सौ प्रतिशत ऊर्जा प्रयोग करो गाली देकर उसे ज़ाया मत करो बल्कि उद्देश्य की पूर्ति में लगाओ तो काम बन जाएगा । जैसे कि मार्शल आर्ट्स के माहिर हुंकार का हर हमले में इस्तेमाल नहीं करते ,जब प्रतिद्वन्दी बहुत सारे हों तब ऊर्जा एकाग्र करके आक्रमण किया जाता है "की या" में नहीं बांटी जाती । गाली वहां दीजिए जहां आपको लगता हो कि आपका विरोध वहां घूंसे की शक्ल में नहीं जा सकता जैसे बुश या मुशर्रफ़ या फिर दाउद या ओसामा तो गाली देकर ही विरोध जताना ठीक है ऐसे में तो इतनी गालियां और इतनी गन्दी-गन्दी गालियां दीजिए कि अगर उन गालियों में से एक भी उस तक पहुंच जाए तो वो शर्म से खुद ही मर जाए तब गाली की सार्थकता होती है ।
यशवंत भाईसाहब और डा.साहब जैसे लोग ही मिलकर समाज और मुल्क को तरक्की की दिशा देते हैं । पूजा से इल्तजा है कि वे भड़ास पर साहित्यिक कंटेंट न तलाशें ,अगर कोई गाली देना चाहता है तो देने दीजिए उससे वह मेरी तरह रोगमुक्त हो जाएगा लेकिन अगर गालियां भीतर रह गयीं तो उसे ही खा लेंगी ।
भड़ास ज़िन्दाबाद

3 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

धन्य हैं माते आप!!!...चरण किधर हैं, छूना चाहता हूं। हेडिंग बदलने के लिए माफ करियेगा लेकिन कोई स्त्री इतने तेवर के साथ लिख सकती है, मुझे कतई कल्पना नहीं थी पर आप तो साक्षात भड़ास हैं......
डाग्डर साहब, देखिए, मुनव्वर जी ने क्या शानदार पीस लिखा है। और, आप तो कमाल के आदमी हैं डाक्टर साहब। मजा आया पढ़ने में, थोड़ा डर भी रहा था पढ़ते वक्त, मुनव्वर जी के अंदाज बयां के तेवर को देखकर.....जय जय
जय भड़ास
यशवंत

Unknown said...

sahi hai sahi guru. ab bahas bnd ho...holi j aa rhi hain...

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,क्या हेडिंग थी मैं तो निशाचरी में था पढ़ ही नहीं सका । रही बात मुनव्वर आपा की तो वो टीचर हैं उन्हें आता है कि बच्चों को कैसे सम्हालना है .....