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20.2.08

ई क्या हो रिया है ?

अरे होली का टेम है । रंग-गुलाल उड़ना चाहिए । मस्ती-वस्ती होनी चाहिए । हंसी-मजाक होना चाहिए । छेड़-छाड़ होने चाहिए । ई बहस चल रिया है । सब बकवास है रे । कोई होली सुनाओ रे । बहस-तहस बहुत हो गिया रे । होली तुम सब का मन कैसे लग रिया रे ई बहस -फहस मे। पिचकारी लाओ रे । रंग डाल दो । रंग न हो पानी डाल दो । पानी न हो कीचड़ डाल दो । तेजाब काहे डाल रिया रे । होली मे भंग नही खाया क्या रे ? होली मे भौजी से लड़ लिया क्या रे ? तो साली से खेल लो रे । साली नही तो घरवाली से खेल लो रे । वो भी नही तो बगलवाली से देख लो रे । उससे डर लगता तो अपन भड़सी से ही खेल लो रे । होली के टोली ले के निकलो रे । डोरे डालो रे । कुछ करो रे । बहुत हो गया रे । भांग पीके आता हूँ तो और बताता हूँ रे ।

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी, जरा हो जाए जोरदार कुछ ऐसा जो जिन्दगी के बाद भी जब अपन सब नर्क के ग्राउन्ड फ़्लोर में मिलें तब तक चर्चा का विषय बना रहे...