गणेश शंकर विद्यार्थी की प्रताप उन दिनों कानपुर से निकला करती थी। आज़ादी आन्दोलन का दौर था। खास बात यह भी है की शहीद ऐ आज़म भगत सिंह ने भी प्रताप में काम किया था। वो दौर पत्रकारिता को profession नही मिशन समझता था। अख़बार निकालने वाले और उसमें काम करने वाले मुनाफे और मोटी तनख्वाह के लिए नही बल्कि एक उद्देश्य के लिए काम कर रहे थे। उद्देश्य था स्वतंत्रता आन्दोलन को और धार प्रदान करना। बर्तानिया हुकूमत किस तरह से भारत को लूट खसोट का अड्डा समझ कर अपनी सरकार चला रही है ,इन विचारों को लोगों के बीच ले जाना। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है की उस समय भारतीय पूंजीपति आज़ादी आन्दोलन को हर तरह से सहयोग कर रहा था। क्यूंकि भारतीय पूंजीपतियों का व्यापार ब्रिटिश शासन मे फल फूल नही सकता था। इसलिए स्वशासन उनके मुनाफे को बढ़ाने के लिए जरूरी था । पर आज़ादी मिलने के बाद उनका चरित्र badal गया । क्यूंकि आज़ादी के पीछे उनकी mansha कुछ और ही थी। हमारी सरकार ने tathakathit samajwaad की aad लेकर पूंजीपतियों को बढ़ने का मौका दिया । हमारी आज़ादी नए botal में purani sharab रही। goron के bajay हमारे कहे jane वालों ने ही शोषण करना शुरू कर दिया। इस नए माहौल में लोग vikshubdh होकर kahin bagawat न शुरू कर दे इसलिए unhe sanskriti (ku) की ghutti pilana जरूरी हो गया। bazar भी लोगों की aadat को अपने mutabik dhalne पर amada हो गया। देश नही pahle अपना सोचो , आप bhala to jag bhala , vyaktiwadi सोच को लोगों के दिल dimag में bhar दिया गया। sunami में आपको chanda bhejne पर आप की देश bhakti barkarar है ,kargil में javanon की tareef में tv channelon पर sms भेजना ही अपनी देश bhakti pradarshit करने के लिए kafi है।
लेकिन बीते कई saalon मे हम अपनी naitik girawat के karnon की खोज करें अगर हमने कह दिया की इसके zimmedar to हम ख़ुद ही हैं to आपकी wahwahi है आप समझदार करार दिए जायेंगे.अगर kahin आपने इसके लिए पूरी व्यवस्था को zimmedar thahraya to आप मूर्ख भी करार दिए ja सकते हैं।
वो कौन से karan थे जब लोग अपना सब कुछ छोड़ कर एक उद्देश्य के लिए पूरा jeewan kurban करने की राह पर badhe चले आ रहे थे। क्या आज़ादी मिलने के साथ ही वो karan khatm हो गए । javab है नही ।
गणेश शंकर विद्यार्थी कानपुर में हिंदू muslim dangon के बीच unhe samjhane निकल पड़े । हम pahle इंसान हैं बाद में हिंदू muslim । पर dharmandh लोगों को उनकी बात समझ नही आई । उन dangon में मारे जाने वालों में गणेश शंकर विद्यार्थी भी shamil हो गए। sampradayikta की aag आज भी जल रही है। गणेश शंकर balidan हो गए और आज भी dangon को होता देख लगता है हमने उनके balidan को व्यर्थ jane दिया है।
"आज़ादी का matlab है मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण का अंत और किसी भी तरह के शोषण का अंत " भगत सिंह कहा करते थे । पर शोषण badastoor jari है।
आज़ादी की ladai में हमने अपना दुश्मन pahchan लिया था। पर hame अब अपना दुश्मन pahchanne मे दिक्कत आ रही है। मुझे to लगता है हमारा दुश्मन poonjiwad है। जिसका उद्देश्य munafa kamana है यही उसकी naitikta है। और उसके kanoon ,उसकी sanskriti सब कुछ उसकी raksha के लिए उसके मुनाफे के लिए।
vyaktiwadi suvidhabhogi सोच रखते हुए , munafa khoron के नौकर (patrakar) bankar अगर हम सोचते हैं की हम गणेश शंकर विद्यार्थी की dikhayi राह पर चल सकेंगे , to या to हम बहुत bhole या फ़िर nire मूर्ख या aatmmodit makkar हैं।
18.2.08
अब kyun नही पैदा होते गणेश शंकर विद्यार्थी
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3 comments:
कौन कहता है कि अब नहीं पैदा हॊते। हां .....शायद अब उन्हे पहचानने वाली नजरें पैदा नहीं हॊती।
पूर्णेन्दु भाई। आप का यह आलेख पूरा यथार्थ है। लेकिन आज शत्रु केवल पूंजीवाद नहीं है, इसने सामंतवाद को समाप्त करने के ऐतिहासिक दायित्व को पूरा नहीं किया और उस के साथ समाजवाद की शक्तियों के भय से समझौता कर लिया। इस कमजोरी के कारण यह मजबूत नहीं हो सका और कमजोर ही रह गया। खुद को जीवित रखना फिर भी इस के लिए असंभव दिखाई दिया तो इस ने उसी साम्राज्यवाद से हाथ मिला लिया जिस के विरुद्ध जनता के विभिन्न हिस्सों के साथ आजादी आंदोलन में लड़ कर आजादी हासिल की थी। इस तरह आज सामंतवाद-पूंजीवाद-साम्राज्यवाद जनता का शत्रु है। जनता जब जब भी इस के विरुद्ध गोलबंद होना आरम्भ करती है और कुछ मजबूती आने लगती है यह मोर्चा जनता को साम्प्रदायिकता, जातिवाद, क्षेत्रीयता,आरक्षण आदि मिथ्या मुद्दों को छेड़ कर बाँट देता है।
कुल मिला कर आप की दृष्टि सही है। आप अपने विचार खुल कर अभिव्यक्त करते रहें।
लेकिन आप के आलेख में नागरी के साथ रोमन स्क्रिप्ट कहाँ से आ टपकती है। लगता है आप सीधे रोमन में टाइप करते हैं। अगर आप इस से छुटकारा पाना चाहते हैं तो मूल इन्स्क्रिप्ट की बोर्ड पर अभ्यास कर लें। इस का टाइपिंग ट्यूटर उपलब्ध है। मैं भी पहले रेमिंगटन की बोर्ड से टाइप करता था उस के अक्षर फायरफॉक्स में जा कर बिखर जाते थे। मैं ने मूल इन्स्क्रिप्ट की बोर्ड पर अभ्यास किया दो सप्ताह में लिखने लायक हो गया और अगले 15 दिनों में पुरानी गति पकड़ ली।
JABRDAST SOCH AUR TARK RAHTE HO GURU LAGE RAHO KYA PATA KAL KAHA PAHUCH JAOGE
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