माफ़ कीजियेगा साथियों हम दिमाग लगाकर गले में अटकी भड़ास नही उगल सकते।
भड़ास पर एक नई बहस को जन्म लेते देखा। साहित्य, पत्रकारिता, गंभीरता, अश्लीलता, गंदगी, बचकानापन, छपास के आसपास घूमती इस बहस पर सबकी राय पढी। इसके बाद बरी आई अपनी भडास निकालने की। इस बहस मी कूदने की। आप सब भाडासी साथियों जिनको भाषा को लेकर आपत्ति है मैं आपसे एक सवाल का जवाब चाहता हूँ। आख़िर मन की बात कहने का हक़ हमे है की नही। क्या जो बातें हम आपस में बोल बतिया सकते हैं तो उसे एक मंच क्यों नही दे सकते। कोई ये कैसे कह सकता है की यह एक फूहड़ता है या गलत है। हम कोई हब्द आसमान से लेकर तो नही आ रहे। यह वही शब्द हैं जो आप और हम प्रयोग करते हैं। जो आपके और हमारे द्वारा बनाये गए हैं। और जहाँ तक रही छपास की बात तो यशवंत भाई की बात का मैं १०० फीसदी समर्थन करता हूँ। पहले बच्चा हकलाता है, तुत्लाता है तब जाकर कहीं बोल पता है। इसलिए जो हकला रहा है उसे हकलाने दे जो तुतला रहा है उसे तुत्लाने दे। आप बड़े हैं तो उस हिसाब से अपनी बात रखें। हम तो नही कह रहे की आप हमे ज्ञान्वानी क्यों दे रहे हैं। हमने अपनी बात को रखना यहीं सिखा है। आगे भी यहीं हम अपनी भड़ास निकालेंगे।
इंकलाब भडास
अबरार अहमद
18.2.08
मत बांधो हमे
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2 comments:
ABRAR BHAI ......THANK YOU VERY MUCH FIR BHI INKEE AANKHE KHULE TAB NA.......
अबरार भाईजान,अस्सलाम अलैकुम
भड़ास पर यह बहस पुरानी है और चलती रहेगी अलग अलग रूपों में । लेकिन क्या भड़ास में भी फ़िरके बनने लगे हैं,नरम दल और गरम दल ?
भड़ास ज़िन्दाबाद
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