Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

24.2.08

एक अदद खूंटा चाहिए

जब हम दिमाग रूपी इतनी बडी भैंस लेकर घूम रहे हैं तो उसे बांधने के लिए एक अदद खूंटे की जरूरत तो पडेगी ही.
हम भारत वासी टांग अडाने में तो माहिर ही हैं और हम बराबर फटा हुआ ढुढते रहते हैं ताकि उसमें अपनी टांग फंसाकर मजा लेते रहें.विवाद से तो हमारा गहरा लगाव है.इसके बिना तो हम रह ही नहीं सकते. जरूरत है तो बस चिंगारी उडाने की बाकी आग कैसे लगानी है उसकी चिंता आप छोड दीजिए. अब जनता को कौन समझाए कि अब अकबर कया कब्र से यह बताने आएंगे कि उनकी बीवी का नाम जोधा था या हीरा कुमारी. अभी जितने लोग जोधा के पीछे पडे हैं उनमें से 99 फीसदी लोगों को अपने परदादा, परदादी के नाम तक याद नहीं होंगे. मैं कहता हूं अकबर की बीवी का नाम जोधा था या जो भी था आपकी सेहत कहां से घट गई. लेकिन नहीं हम जबतक अकबर की बीवी का नाम नहीं पता लगाएंगे हमारी रोटी हजम कैसे होगी. और सबसे बडी बात कि मजा कैसे आएगा.
जोधा अकबर के मामले से पहले राज ठाकरे के मामले का विवाद हमारे सामने था. उससे पहले परमाणु करार को हम घसीट रहे थे. उससे पहले मंगल पांडे, भगत सिंह और न जाने कितने विवादों में हम अपनी टांग अडा चुके हैं. और तो और कुछ पारटियों ने तो बाकायदा इसके लिए अपनी छोटी शाखाएं बना रखी हैं. जो इन मुददों को हाइप देते हैं और इनके पास भी पुतलों के थोक भंडार होता है. बस उनपर नए विवाद का नाम चिपकाना होता है. चार लोग चौराहे पर जमा हुए और दे दिया विवाद को तूल. दूर कहां जाते हैं अभी कुछ दिन पहले ही भंडास पर एक मोहतरमा ने फटा टांग दिया तो लगे सभी भडासी उसमें अपनी टांग अडाने और खामखाह मामले को तूल देने. खैर हम तो ठहरे आदमी और वह भी देशी हिंदुसतानी और हम अपनी फितरत रहे छोडने से. अब जोधा अकबर का मामला भी पुराना पडता जा रहा है लिहाजा देश का एक नए विवाद की तलाश है. अब देखिए यह विवाद आपको और हमको कब मिलता है.
अबरार अहमद

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अबरार भाईजान,मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं ,शब्दशः ,अक्षरशः । तो फिर क्या हमसब निर्णय ले चुके हैं कि जैसा बदहाल मुल्क हमें हमारी पिछली पीढ़ी देकर गयी है हम उससे भी बदतर करके इसे अपनी आने वाली पीढ़ी को सौंप दें और जाते समय उनमें से कोई अगर हमसे पूछेगा तो हम उसे क्या जवाब देंगे ,यही कि बेटा क्या करें हमने तो पुरज़ोर कोसा था लेकिन जरा भी बदलाव नहीं आया इस ढीठ मुल्क में ;उसने कहा है कि अगर मेरा देश महान नहीं है तो यह मेरा दोष है । क्या हम में इतना साहस है कि हम अपना दोष स्वीकार सकें या वह भी किसी दूसरे के ऊपर मढ़ दें.............
जय जय भड़ास

Unknown said...

sahi kaha guru