मैंने अपनी बात कही थी, लोगों से प्रतिक्रियाएं नही मांगी थीं. मैंने जो कहा था उस पर कायम हूँ. भड़ास को अगर आप लोग इतना ही संकुचित बनाए रखना चाहते हैं तो यही सही. ज्यादातर लोग (bhadasi ) यहाँ आते तो हैं रेचन कराने लेकिन कर बैठते हैं विमोचन॥ आख़िर मैं भी तो अपनी भड़ास ही निकाल रही थी। उस पर इतना एतराज मामला कुछ जम नही रहा दोस्तों.ऐसा लग रहा है जैसे मैंने एक पोस्ट नही लिखी भड़ास के किले में सेंध लगा दी है.या की मैं कोई दुश्मन राजा की विषकन्या हूँ या मेनका जो औघड़ भादासियों का तप भंग कराने की साजिश में हिस्सेदार हूँ.यशवंत जी ---आप की बात से मैं सहमत हूँ, भड़ास को लेकर आप के अपने तर्क हैं, जोभी आप की योजनायें हैं उसे लेकर सब स्पष्ट हैं लेकिन मैं अपनी बातों पर कायम हूँ और मुझे अब तक उनका जवाब सही ढंग से नही मिला है. मुझे समझ में नही आ रहा है की इतना बवाल क्यों????? कहीं ये अनाधिकार चेष्टा का मामला तो नही लग रहा है आप सब को.......एक लड़की की ये जुर्रत हमें समझाने चली है.
माफ कीजियेगा ये वही सामंती सोच है........... हमारे गाँव में जब कोई दलित लड़का अच्छी पद-प्रतिष्ठा पाता है तो सवर्ण लोग यही कह के ख़ुद को दिलासा देते हैं "अरे जानत हैं एके, एकर बाप हमरे घर छापर छावत रहे और ई साहब बने हैं......."
दूसरी बात अगर भड़ास जेंट्स टॉयलेट है तो आप लोगों को इसका दरवाजा बंद रखना चाहिए वरना इसे मामले बार-बार सामने आ सकते हैं..... जिनकी वजह से २-३ दिन नींदें उडी रह सकती हैं और हाँ शमशान में पॉप म्युसिक बजाना ही तो सच्चे bhadasi काम होना चाहिए की नही।
माथुर जी -- आप ही की कमी रह गयी थी. बिल्कुल बजा फरमाया आप ने, आप को इन बातों से कोई फर्क नही पङता की इसमें कितनी लडकियां हैं या नही हैं क्योंकि जनाब फर्क पड़ने के लिए संवेदना चाहिए जो आप के पास नही दिखती. आप लोग तो बस गालियाँ दीजिये ताकि आप के भीतर बचीखुची सुन्दरता भी नष्ट हो जाए, और हाँ भड़ास को मुझ जैसे trp के दीवाने लोगों से खतरा हो गया लगता है . तो बचा लीजिये जनाब कहीं औघड़, सुघड़ भडासियों का शील भंग न कर दे ये लड़की...........
20.2.08
बचा लो भड़ास को खतरा आन पहुँचा है
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2 comments:
maf kijiega een bhadasiyon ka shil to hjar bar pahle hi bhng ho chuka hai, meri to khair...
lekin please aap n jana bhadas chhodkr, please
भड़ास कच्चा घड़ा है, इसे जैसा चाहें ढाले। और हर भड़ासी अपनी अपनी स्टाइल में यही कर रहे हैं। आपकी अपनी जो भी स्टाइल है, अंदाज है, शैली है, तेवर है....उसे जारी रखिए, उस पर अमल करिए...न तो हम आपको अपने तरीके से सोचने को कह रहे हैं और न हम आपके तरीके से सोचने के बारे में विचार कर रहे हैं। मुंडे मुंडे मर्तिभिन्ना...। क्यों सभी को एक तरह से सोचने व जीने को कहा जाय।
मेरे खयाल से इस प्रकरण को बंद कर दिया जाए। फागुन सिर पर है, मौसम बदल चुका है। अगर कुछ कविता वविता लिखें, पोस्ट करें तो बात बनें। उपर पढ़िए, मैंने आज होली पर एक बढ़िया वाला लोक गाना डाला है, उसे गुनगुनाइए...खेलें मसाने में होरी दिगंबर...
जय भड़ास
यशवंत
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