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19.2.08

डंके की चोट पर कहता हूं, देता रहूंगा गाली तब तक...

कच्छा,
गमछा,
लूंगी,
लोटा,
खटिया,
गेंदा,
गोबर,
अलान,
दालान,
मचान,
झोपडा,
टोकरा,
अल्हुआ,
सुथनी,
सुरती,
सुआ,
डोरा,
पगहा,
खुट्टा,
छान,
छिम्री,
ताड़ी,
आदी,
बालू,
डेरा,
पानी,
सूप,
सुपती,
धकिया,
सिल्हा,
लोधी,
ओढ़ना,
विछौना,
घूरा,
नुरा,
नौरी,
अधन,
चुल्ही,
तीनही
लोटा,
हुक्का,
बीडी
......
......
......

..को पल पल जीने वाला,
शिद्दत से महसूस करने वाला
अगर कोई आपकी भाषा में

गंवई
हो और खुद आप
परिष्कृत, और वो गंवई आपके कथित समुदाय में
दस्तक देकर कुछ कहना चाहता है तो
स्वीकारना या अस्वीकारना आपके विवेक की बात होगी
लेकिन मत रोको हमें, बांधने की थोरी कोशिश भी मत करो,
खुल जाने दो हमारे अंतस की सदियों से बंद खिड़कियाँ,
उगल देने दो हमारे विकार, निर्विकार हो जाने दो हमें ...
गंभीरता की उमस भरी मकान खाली कर खुली हवा में साँस तो लेने दो.....
क्योंकि कहीं न कहीं, यहीं कहीं सुकून मिलता है हमें...

मेरी गाली तुम्हारे लिए गाली हो सकती है
लेकिन मेरे लिए वेदो की रिचाए हैं
मेरी गाली तुम्हारे लिए अभिशाप है
तो मेरे लिए क्रांति की सुलगती मशाल है
तुम्हारे लिए मेरी गाली यौन कुंठित होने का पर्याय है तो
मेरे लिए तुम नपुन्सकों, नामर्दों का शर्तिया इलाज
तुम्हारे लिए मेरी गाली सीमा का अतिक्रमण है तो
हाँ...डंके की चोट पर कहता हूं
देता रहूंगा गाली तब तक जब तक तुम्हारी
आदतों में बदलाव न आ जाए ....
कुत्तों कलयुगी नेताओं की औलादों..
सुनो, ये नंगे भूखे अभागे मजबूरियों की पैदाइश
इन बच्चों को देखों,
इनके उघ्रे बदन को देखो,
अपनी निगाहें टिकाओ इन पर,
इनको छुओ, इनको एहसास करो.......

लेकिन तुम लाइफ्बोय तुरंत मांगोगे क्योंकि
इनका संक्रमण तुम्हारे स्वास्थ्य को बिगाड़ देगा
नगरों के चकाचौंध में बीतने वाली तुम्हारी हर सुबह और शाम को
असली भारत की पीडा से क्या वास्ता ...

एसी में बैठ कर नीतिआं बनाने वाले,
हवाई जहाज से बाढ़ का सर्वेक्षण करने वालों,
मंच पर लैंड करने वाले, हिलाने वालों कुत्तों,
कमीनों तुम रोज़ लंबे चौड़े भाषण झाड़ते हो,
लेकिन जब इन्हे सच्ची सहानुभूति, संबल और आश्रय की जरुरत होती है तो
खड़े खड़े गांड़ खजुवाने लगते हो....

उन मजदूरों, मजबूरो, जिनको ट्रैक्टर पर बिठाकर हाथ में झंडा देकर
अपना गुणगान करवाते हो,
कभी यह देखने या समझने की कोशिश करते हो कि
वह इतना बेबस क्यों है,
उनकी कारुणिक, दारुण व्यथा के प्रति कितने गंभीर हुए हो अब तक ...???


...व्यवस्था को रंडी बना कर रख दिए हो तो तुम सालों को गाली नही तो गाल में चुम्मा लें हम पतित भड़ासी
सत्ता में आने के पहले बोतू बियाते थे, आज बोलेरो कुआलिस की क्वालिटी दिखाते हो सालों.......दलालों..... इन गरीबों के नाम पर आने वाली योजनाओं की राशी को हराम की कमाई समझने वाले हरामिओं तुम लोगों को गली दिया तो कौन बुरा किया तुम्हे तो खोजकर बांस करना चाहिए था हमें.....

अमेरिका, पाकिस्तान,चीन रोज धौंस दे रहा है तो कोई असर नही लेकिन अपने भूखे,नंगे भाई लोग दो रोटी की तलाश अपने घर में भी करता है तो बेचारों को सामूहिक मौगत देते हो और ''अनेकता में एकता'' का कव्वाली गा गा कर देश को गान्र मार रहे हो ........और अपेक्षा रखते हो की तुम्हे फूलों की माला पहनाएं, तो भौन्सरी के....तू जब मरे न तो तेरे लिए एक फूल नसीब नही हो..........

मॉल्स और सिक्स पैब्स एब के दर्पण में जिस भारत का सेंसेक्स तिन्गता,सुतुकता है अगर वह तुम्हारा भारत है तो ''गाँव में बसते हैं प्राण यहाँ पर'' की आहों को देखने तक की जहमत नही उठाने वाले अंग्रेजों के जूठन पर कुत्तों की माफिक ठुथ्ना लड़ाने वाले कुत्तों-कमीनों तुम्हारे लिए गाली नही तो तू ही बता क्या दूँ तुम्हे...........

कोई गोली लेकर आगे आता है हम गाली लेकर ही आए हैं....देखते हैं कब तक मुकाबला करते हैं तुम्हारे साम्राज्य का?
ख़ुद २४ घंटे बिजली में रहने वाले बंदरों, तू क्या जाने की कैसे गेहूं बेच कर ४० रुपए लीटर किरासन तेल खरीदने वाली विश्नी चाची अपने आंखों में बच्चे के उज्जवल भविष्य को संजोये तेल बचाने के लिए आठ बजे तक सवेर सकाल सो जाती है, भले ही तुम्हारी औलादें रात के बारह बजे तक लेस्बीँ रंदिओं के साथ नेट पर चैटिंग करता रहता हो..... , जिन बेबसों, मजबूरों के कन्धों पर तू मौज कर रहा है, वह अंधकार से लड़ रहा है तो सालों तुम्हे गायत्री मन्त्र सुनाऊं, ..कमीनों, हिज़ड़ों, पीतारिया थरिया में कूम कूम सज़ा कर तेरी आरती उतारुण क्या?

मुन्ना भाई ने गुलाब के फूल बाँट बाँट कर लोगों को बताया की थाने में दरोगा अगर रिश्वत मांगे तो फूल दो... मैं कहता हुं की गालिओं के गुलदस्ते दो, घिन-घिन, भिन्न-भिन्न प्रकारों, आकारों, लम्बाई, चौडाई, मोटाई, हर किस्म, देशी विदेशी, हाइब्रिड हर किस्म की गालिओं से नवाज़ दो उन्हें.... फ़िर देखो ''गालीगिरी'' का कमाल................


हमे नेधिया कुत्ता ने नही काटा है जो भोकर रहे हैं तुमसभ्य कहे जाने वाले कमीनों के दालान पड़ खड़े होकर॥
क्योंकि बचपन से ही देखते आ रहे हैं तुम सबों की भोथाराई ,वही वादों का पिटारा,जोड़तोड़, जात-पात, धर्म, आरक्षण,और विकास का नारा लगाकर देश को ठुक लगा कर गान्र मार रहे हो तो यह सीमा का अतिक्रमण नही है....मैंने थोड़ी ''भडास'' निकाली तो झांट में आग लग गयी.........


नही कर सकोगे मुंह बंद मेरा
भले ही मान लो गालिओं का पर्याय मुझे
या संस्कारहीनता की उपज कह कर वेधो मुझे.....
हम ''भड़ासी'' पतित, काहिल, जाहिल, निर्लज्ज और परित्यक्त ही सही
कम से कम तुम्हारे अस्तित्व, तुम्हारे वास्तविक स्वरुप और तुम्हे होने का एहसास तो दिलाते ही हैं न...


जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय

4 comments:

Unknown said...

lge rhe RAJA,lage rho...

हरिमोहन सिंह said...

हरे राम राम राम हरे राम

हरिमोहन सिंह said...

हरे राम राम राम हरे राम

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मनीष भाई,हुई सुबह तू जल गया ,शाम को क्या सूरज निगल गया ? इसी तरह से लगे रहो खबरदार जो धार कुन्द हुई तो....
जय भड़ास
जय यशवंत
जय मनीषराज
जय क ख ग घ
जय च छ ज झ
..........
..........
जय क्ष त्र ज्ञ
जय A.....Z
लेकिन हर हाल में जय जय भड़ास