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17.2.08

डॉक्टर साहब बुश अंकल और मुशर्रफ चाचाजान अगर नही तो हम पत्रकार ही क्या कर रहे हैं...

गाली गलौज की तीखी बहस, पूजा बहन का गुस्सा और उस पर मिली प्रतिक्रिया के बाद मैं डॉक्टर साहब से कुछ शेयर करना चाहता हुं क्योंकि उन्होंने कमेन्ट दिया था की मनीष भाई इस देश को बिल अंकल या मुशर्रफ चचाजान संवारने आनेवाले नही हैं,हम सभी पत्रकारों को एकजुट होकर प्रयास करने की जरुरत है।
लेकिन डॉक्टर साहेब कैसे? मैं जिस कसबे से हुं वहाँ ऐसा सम्भव तो नहीं दीखता है। क्योंकि यहाँ के पत्रकार की क्या बताऊ मामू ,एकजुट होने के नाम पर जैसे करेंट मारता है इन्हे। हाँ, दारू-वरु का उपाय हो तो जम जायेंगे फ़िर कल से वही मच- मच। एक छोटी बात बताता हुं सर। शायद आप अनंत सिंह का नाम जानते होंगे । वही अनंत सिंह जो कभी ऐ के ४७ तो कभी गले में अजगर लटकाकर और अब लालू का घोडा खरीद कर चर्चा में आए हैं। सत्ता धारी दल के विधायक हैं, अकूत धन के स्वामी हैं ,पिछले दिनों मूड बमक गया एक पत्रकार और एक फोटोग्राफर को धो दिया। ब्वावाल चालू हो गया लोकतंत्र के चौथे अस्ताम्भ पर हमला ,जगह जगह प्रदर्शन चालू हो गया, रोड जाम ,रेल का चक्का जाम बाज़ार बंद ,बैनर तख्तिआं लेकर हाय हाय चालू... जिला पत्रकार संघ ने एक बैठक बुलाई ,तय हुआ की सारे पत्रकार नेताओं की माफिक बैनर लेकर सड़क पर आ जाओ ...हल्ला बोलो.... सरकार को गरिअओं ,सरकार फरियाद सुन लेगी ......मानो आज के बाद पत्रकार पर हमला बंद। निर्धारित समय पर सभी पत्रकार जिनमें अधिकांश मुफ्फसिल या लोकल रिपोर्टर थे बैनर तख्ती लेकर शहर का भ्रमण करने लगे। मैं भी उस विरोध मार्च में शामिल था लेकिन जानते हैं पत्रकारों की एकजुटता का नमूना देखिये,जिले के एक्का दुक्का को छोड़ कर सारे बिउरो चीफ गायब थे। हमलोग भी दिनभर शहर के फेरे लगाकर रह गए और फ़िर वही.........
थोरी देर और रुकिए डॉक्टर साहब । बिहार के सीमा वर्ती झारखंड के देवघर के निर्भीक पत्रकार प्रमोद कुमाएकी हत्या हो गयी,परिजनों ने सत्ताधारी दल के विधायक और सांसद पर आरोप लगाए क्योंकि प्रमोद उनकी बखिया उधेर चुका था। लेकिन शोक और श्रधान्जली से इतर विरोध इतना प्रबल नही हो सका ,एकजुटता प्रदर्शित नही हो पाई फलतः यह मामला अधर में लटक कर रह गया।अगर हर अखबार और चैनल के सारे पत्रकार सामुहिक प्रतिरोध करते टू दो दिनों में उन नरम लौरों की पैदाइश का गार गरम हो गया होता। अब मेरा यह कहना है की दूसरों की माँ चो ........ने वाला हमारा पत्रकार समुदाय मुन्ना के मौत के कारणों को जानना टू दूर की बात कुछ ऐसा भी नही कर सके जिससे क्षनांश आशा जगे की हम पत्रकार एक हैं। साले.... इन नेताओं दलालों के जूठन को अपना इन्कम समझ कर मीडिया गिरी कराने वाले चुतियापों को कोई भी कही भी ..........मार सकता है। मैंने थोरी विरोध का भडास एस्ताइल चालू करना चाहा टू सीनिअर ने हड़काया की चुप कर चल अपने काम से मतलब रख। टू क्या अब अकेले बैनर लेकड़ सड़क की धुल फान्कू डॉक्टर साहेब...
आख़िर क्यों, आख़िर कब तक यह असहयोग का दौर चलता रहेगा। ये मुशर्रफ चाचा जान या बिल अंकल बेशक कुछ नही करेंगे ये मुझे भी पता है,टू आख़िर शुरू कौन करेगा। मान लीजिये सारे भादासी ही शुभारम्भ करें टू
आप मुम्बई में नाजायज का विरोध करें ,मैं बेगुसराय में ,यशवंत दादा दिल्ली में......मतलब जो जहाँ है वही से विरोध चालू कर दो परसों पता चलेगा की मनीष भाई खल्लास....जैसे मुन्ना को किया। आप भी शब्दों के दो फूल चढ़ा दोगे,सरकार २-४ लाख रुपये देकर मस्त हो जायेगी .......फ़िर उसके बाद क्या होगा।?
बस इतना ही डॉक्टर साहेब। कन्फयूजिया रहा हुं ....थोडा सीरिअस विचार कीजिएगा .......

3 comments:

Arun Arora said...

बेकार मे रेट मत बढाईये,लाख रुपये सरकारी घोषणा ही बडी बात हो जाती है ,सरकार को देना वेना नही होता.वैसे पत्रकारो के घर वालो को मिल जाते हो तो ये अलग बात है...:)

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ said...

मनीष जी,शहादत के एवज़ में कितने लाख रुपए और कितने शब्दों के फूल चढ़वाना चाहते हैं अपनी मज़ार पर ? बात करी न कौड़ी भर की । पैसा मिले तो क्या मरने में जज़्बात आ जाएंगे ?

Unknown said...

aapka swal sch men aasan nhi mnish j, ek rsta yhi hai sare bhadasi arajk dhng se galeeyan bkna shuroo kr den ...aur rsta ho skta hai thoda hlke-fulke treeke se sochna hoga...