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17.2.08

हजारवां सन्देस...भड़ास पर

मनीष भाई,आप बेगुसराय में जान देने को तैयार हो जाइए मैं तो मुंबई में हर वक्त जो नहीं जमता है उसके खिलाफ़ मोर्चा खोले हुए हूं, मार खाना या वाहन क्षतिग्रस्त करवा लेना नयी बात नहीं है । अगर खिसियानी बिल्ली की तरह हम भड़ास का खम्भा नोचें तो क्या लाभ क्योंकि आपको पता है कि यशवंत दादा के अनुसार चूतियापे का न तो कोई स्तर होता है न ही कोई स्टाइल । मैं तो खुद को वांछित बदलाव के हवन में एक समिधा मान चुका हूं ,किसी भी व्यक्ति की शहादत बेकार नहीं जाती लेकिन वक्त लगता है । आपका थोड़ा ध्यान चाहूंगा मेरे और यशवंत दादा के बीच हुए संवाद पर आप प्रतिक्रिया करें पर उसके लिये आपको पुरानी पोस्ट्स टटोलनी पड़ेंगी । कौन कहता है कि क्रांति नहीं होती खून सफ़ेद हो गया है पर क्या हम खुद अगुवाई करने से डरते नहीं हैं ,सुना है मैने हमेशा कि अकेले होती है हर नयी शुरूआत अगर शक्ति है पास तुम्हारे तो जमाना देगा साथ । मैं अपनी नजर से भड़ास की सत्त्यता देखता हूं तो नजर आता है कि यही एक मंच है जिस पर आप सार्थक बात मज़ाहिया अंदाज में कर सकते हैं ठीक वैसे ही जैसे शहीद राजगुरू ने कहा था कि बस एक बार फ़ांसी चढ़ जाने दो पंडित जी फ़िर देखता हूं इन साले फ़िरगियों का हाल ,क्या अर्थ निकालेंगे आप इस बात का ?
भड़ास के मंच का हाल तो ऐसा है कि जहां एक ओर यशवंत दादा मोडरेटर हैं वहीं दूसरी ओर मैं भी हूं तो क्या आपको नहीं लगता कि यहां तो उल्टी करने आने वाले लोगों के लिये उगालदान है ,एडमीशन के लिए बेड है,पैथालाजी है और अगर चाहेंगे तो इलाज भी होगा । अंत में कि हम अपनी मजबूरियां बता कर कहां तक भागेंगे कि फलनवा हमारे साथ नहीं है तो हम क्यों मरें अकेले हमें तो सबके संग ही मरना है ( शायद मरना भी नहीं है बस साथ के लोग मर जाएं और लाभ हमें मिल जाए ऐसी अपेक्षा है क्या ?) बदलाव या बेहतरी की उम्मीद सिर्फ़ पत्रकारों की बपौती नही है आप पत्रकार हों न हॊं कोई फ़र्क नहीं पड़ता है शहादत के मुद्दे पर...........
I am designed to die by the hands of GOD.
जय जय भड़ास

1 comment:

Unknown said...

shi dr sab, bilkul shi...aur kya bilkul shi