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20.2.08

पीटें प्रेत थपोरी

खेलें मसाने में होरी दिगंबर
खेलें मसाने में होरी

भूत पिशाच बटोरी दिगंबर
खेलें मसाने में होरी

लखि सुंदर फागुनी छटा के
मन से रंग गुलाल हटा के
चिता भस्म भरी झोरी दिगंबर
खेलें मसाने में होरी

गोप न गोपी श्याम न राधा
ना कोई रोक न कउनो बाधा
ना साजन ना गोरी दिगंबर
खेलें मसाने में होरी

नाचत गावत डमरूधारी
छोड़े सर्प गरल पिचकारी
पीटें प्रेत थपोरी दिगंबर
खेलें मसाने में होरी

भूतनाथ की मंगल होरी
देखि सिहायें बिरिज के छोरी
धनधन नाथ अघोरी दिगंबर
खेलें मसाने में होरी

खेलें मसाने में होरी दिगंबर
खेलें मसाने में होरी


((गाया है पंडित छन्नू मिसिर ने, रचनाकार का नाम नहीं मालूम))

2 comments:

Unknown said...

yh gana aaj subah se mai ga rha hoon

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दादा,पंडित जी सुबह से गा रहे थे और आप टाइप कर रहे थे इसे कहते हैं दिल से दिल मिला होना ,एकदम सही हार्मोनी है हम सबकी...
सुन्दर रचना है जाहिर सी बात है कोई आदिभड़ासी होगा रचनाकार भी....