एक पल के लिए तो अंदर काफ़ी कुछ कौंध गया लेकिन जो हो रहा है वह तो मानव अस्तित्त्व में सभ्यता की शुरूआत के साथ ही शुरू हो गया था तो जब जब कोई सहज सरल सा आदमी सत्य को अपनी अनगढ़ सधुक्कड़ी भाषा में अभिव्यक्त करेगा तो स्वयंभू सभ्यजन उस पर पत्थर फेंकेंगे ही और अब तो ये लोग गनीमत है कि सूली पर नहीं चढ़ा देते । रही बात गालियों कि तो क्या गालियां इनकी विकसित होती सभ्यता के साथ ही नहीं चल रही हैं ? यकीन है कि भाषा का विकास जिस दिन हुआ होगा उस दिन ही सबसे पहली गाली दी गयी होगी । मैंने सोचा था कि यदि कभी ब्लागर मीट हुआ तो मनीषा दीदी को साथ लेकर आउंगा और आप सबसे प्रत्यक्ष ही परिचय करवाउंगा पर अब मैं सोच रहा हूं कि ऐसा सोच कर मैंने कदाचित गलती करी क्योंकि लोग अभी इतने सरल सहज नहीं हुए कि मनीषा दीदी जो कि इनके ही मानसिक षंढत्व को आइना दिखाने जा रही थीं ये लोग उन्हें ब्लागर मीट में ही पेटीकोट उठा कर चढ्ढी उतारने को कहते कि हम लोग तभी मानेंगे जब खुद हाथों से गुप्तांग छूकर देखेंगे या आखों से देखेंगे । लेकिन सच तो ये है कि इन सबको अपने अपने भीतर में एक मनीषा दीदी दिखने लगीं हैं तो ये हरकत इनकी हड़बड़ाहट का परिणाम है । मनीषराज तो औघड़ साधुओं वाली भाषा प्रयोग करते हैं उसमें कुछ बुरा नहीं है बल्कि कथित शीर्षस्थ ब्लागरो का सिंहासन हिलने लगा तो उन्हें इस पर आपत्ति होने लगी । जिसए जितने पत्थर मारने हैं मार ले हम विचार हैं मरते नहीं वरना इन लोगों ने तो कब का हमें समाप्त कर दिया होता लेकिन ये नहीं जानते कि जब तक हम कथित बुरे लोग हैं तभी तक इनके पास खुद को अच्छा कहने का पैमाना है वरना इन्हें कौन अच्छा कहेगा ? एक दूसरे की प्रशंसा ही करते जिंदगी बीतेगी । मनीषा दीदी का अस्तित्त्व अब ब्लाग से निकल कर इन सब में समा गया है अब उन्हें किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है । और एक खुला चैलेंज कि अगर जिसे मनीषा दीदी के अस्तित्त्व पर संदेह है वह मुझसे मिले लेकिन एक शर्त है कि उसे या तो मनीषा दीदी को पत्नी का दर्जा कानूनी तौर पर देना होगा या आजीवन २०,००० हजार रुपए प्रतिमाह देने होंगे या अगर ये मंजूर न हो तो स्वयं को सर्जरी करवा कर उनके जैसा बनवाना होगा इसमें उन्हें कोई कानूनी दिक्कत नहीं आएगी इसकी जिम्मेदारी मेरी है यह आपरेशन मैं वेल्लूर मेडिकल हास्पीटल ,तमिलनाडु से कानूनी तौर पर करवा दूंगा अगर कानूनी दिक्कत आयी तो मैं आजीवन उस व्यक्ति का दास बन कर रहूंगा । इन बातों से कोई ये न सोचे कि मैं यह सब खीझ कर कह रहा हूं बल्कि ये तो मेरा विश्वास है और मेरे कर्म हैं जिन्हें मैंने अपनी गुरूशक्तियों की ताकत व आशीर्वाद से सामाजिक जीवन में जिया है । जिस भी सभ्य व्यक्ति को मनीषा दीदी से मिलना हो वो मुझसे तत्काल सम्पर्क करे लेकिन ध्यान रखिए कि हर बात की कीमत होती है तो आप भी अपने संदेह के निवारण के लिए कीमत चुकाइए मैं तो ताल ठोंक कर खड़ा हूं ;सांच को आंच नहीं दो और दो पांच नहीं । जिसमें साहस हो वो आगे आए दूर खड़ा रह कर आरोप न लगाएं । अश्लीलता या श्लीलता के बीच की सीमारेखा का निर्धारण का ठेका प्रगतिशील लोगों ने ही ले रखा है क्या कि जिसे चाहा सराहा जिसे चाहा तिरस्कार कर दिया ,बस इन सभी आरोप लगाने वालों से एक बार हिम्मत जुटा कर खुद के भीतर झांकने की अपील है..............
जय जय भड़ास
29.2.08
मनीषा दीदी का अस्तित्त्व का खौफ़ सता रहा है शीर्षस्थ ब्लागरों को
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
Labels: अश्लीलता, मनीषा दीदी, सधुक्कड़ी भाषा, हिजड़ा
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