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6.5.11

रेल अफसरों की कारगुजारी : गन्दा और असुरक्षित पानी!

रेल अफसरों की कारगुजारी : गन्दा और असुरक्षित पानी!

जयपुर, दिल्ली और आगरा कैण्ट के खानपान विभाग से सम्बन्धित रेल कर्मचारियों का साफ शब्दों में कहना है कि रेलवे स्टेशन का मुखिया चोर होगा तो रेलवे स्टेशन पर नकली और
असुरक्षित
पानी तो बिकेगा ही| सूत्रों का कहना है कि इन स्टेशनों पर जब भी किसी अधिकारी को मुखिया के तौर पर नियुक्त किया जाता है तो उसे नियुक्तिकर्ता अधिकारी को कथित तौर पर मौटा सुविधा शुल्क अदा करना पड़ता है| जिसकी वसूली करने के लिये अन्य अनेक तरीकों के साथ-साथ पानी का कारोबार प्रमुख जरिया बन गया है| गर्मी के मौसम में तो स्टेशन प्रभारियों की चांदी हो रही है!

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

देश की राजधानी नयी दिल्ली सहित देश के हर हिस्से में रेलवे स्टेशनों और तकरीबन सभी मेल-एक्सप्रेस गाड़ियों में रेलवे द्वारा अधिकृत तौर पर बेचे जाने वाने रेल नीर के स्थान पर सरेआम नकली और
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बोतलबन्द पानी की आपूर्ति और बिक्री की जा रही है| रेलवे अधिकारियों की मिलीभगत से राजधानी, दूरन्तो, शताब्दी जैसी नामी-गिरामी रेल गाड़ियों में भी रेल नीर की बोबलों में पैंकिंग करके नकली पानी पहुंचाया और बेचा जा रहा है| यात्रियों द्वारा शिकायत करने पर या मीडिया द्वारा खबर प्रकाशित करने के बाद कुछ दिनों तक मामला शान्त रहता है और कुछ दिन बाद फिर से सबकुछ यथावत जारी कर दिया जाता है|

रेल नीर की जगह सरेआम से बेचे जा रहे नकली बोतल बन्द पानी को दिल्ली, जयपुर, गाजियाबाद, इलाहबाद, लखनऊ, मुम्बई सहित सभी छोटे बड़े शहरों में पानी को फिल्टर करने वाली छोटी-छोटी मशीनों से साफ करके बोतल में सीलबन्द या पैक किया जाता है और रेलवे स्टेशनों पर बेचने के लिये भेज दिया जाता है| इसके अलावा कुछ लोकल कम्पनियों के घटिया और
असुरक्षित
पानी की भी आपूर्ति की जाती है| लोकल
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पानी पर मिलने वाले ऊंचे कमीशन की वजह से पानी विक्रेता इसी को बेचना चाहते हैं|
रेलवे अधिकारियों की सहमति से और उनकी सह पर उनके सामने ट्रक के ट्रक पानी के कार्टून रेलवे स्टेशनों पर उतारे और बेचे जा रहे हैं| रेल नीर की तुलना में लोकल पानी की बिक्री से 50 फीसदी से अधिक का मुनाफा होता है, जिसकी वजह से ऊपर से नीचे तक सभी रेल अफसरों की अच्छी तरह से जेबें गर्म होती रहती हैं| यही वजह है कि रेल अधिकारियों द्वारा न तो नकली पानी पर रोक लगायी जाती है और न हीं रेल नीर को बेचने पर जोर दिया जाता है|

यहॉं यह उल्लेखनीय है कि रेल गाड़ियों में यात्रियों के लिये और रेलवे स्टेशनों पर यात्रियों के लिये शुद्ध पेयजल की आपूर्ति के लिए रेलवे द्वारा रेल नीर का उत्पादन किया जा रहा है| सूत्र बताते हैं कि रेल नीर रेलवे की सरकारी कम्पनी होने के कारण से रेलवे स्टेशन के स्टॉल संचालकों को रेल नीर में केवल 10 फीसदी ही कमीशन मिलता है| दिल्ली के स्टेशनों पर आपूर्ति होने वाले माउण्ट कैलाश का 12 बोतल का एक कार्टून ठेकेदार को 54 रुपए में और आइसलाइंस का एक
कार्टून
52 रुपए में मिलता है| ठेकेदार इसे स्टेशन के अन्दर स्थित आईआरसीटीसी के स्टॉल संचालकों को 70 रुपये में देता है| यानी एक बोतल बन्द पानी की कीमत स्टॉल संचालकों को छह रुपए पड़ती है| वह यात्रियों को पानी का एक बोतल 12 से 15 रुपये में बेचा जाता है| अर्थात् स्टॉल संचालक को इस पर 50 फीसदी से भी अधिक का मुनाफा होता है, जो रेल नीर की अपेक्षा 40 फीसदी अधिक है|
बड़े रेलवे स्टेशनों पर जिस समय गाड़ियों की अधिक भीड़ होती है, अधिकतर उसी वक्त इन बोतलों को खपाया (बेचा) जाता है| यात्री जल्दबाजी में होते हैं, इसलिए उसे रेल नीर की जगह लोकल बोतल में बन्द
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पानी थमा दिया जाता है| रेल गाड़ियों में भी शुरुआत में तो रेल नीर दिया जाता है, लेकिन बाद में लोकल पानी की आपूर्ति होने लगती है|

सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर प्रति दिन सुबह-शाम में चार-चार ट्रक लोकल बोतल बन्द
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पानी आता है| इसी तरह नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर सुबह चार ट्रक और शाम को पांच ट्रक नकली पानी आता है| भारत की राजधानी नयी दिल्ली का सबरबन कहलाने वाले गुलाबी नगर जयपुर के रेलवे स्टेशन के हालात इससे भी खराब हैं| जयपुर में तो पानी की यूज की गयी बोतलों में पैक करके पानी बेचे जाने की शिकायत करते यात्री देखे गये हैं, लेकिन रेल में उनकी न तो कोई सुनने वाला है और न हीं किसी रेल अधिकारी को इसकी परवाह है|

नकली पानी का कारोबार करने वालों का रेलवे स्टेशन प्रबन्धक से लेकर, मण्डल रेलवे रेलवे अधिकारियों और मुख्यालय के रेल अधिकारियों तक सांठ-गांठ है, जिसके चलते किसी प्रकार की औपचारिक चैकिंग होने पर मोबाइल फोन के जरिये नकली पानी विक्रेताओं को पहले ही सतर्क कर दिया जाता है|

नाम नहीं छापने की शर्त पर जयपुर, दिल्ली और आगरा कैण्ट के खानपान विभाग से सम्बन्धित रेल कर्मचारियों का साफ शब्दों में कहना है कि रेलवे स्टेशन का मुखिया चोर होगा तो रेलवे स्टेशन पर नकली और
असुरक्षित
पानी तो बिकेगा ही| सूत्रों का कहना है कि इन स्टेशनों पर जब भी किसी अधिकारी को मुखिया के तौर पर नियुक्त किया जाता है तो उसे नियुक्तिकर्ता अधिकारी को कथित तौर पर मौटा सुविधा शुल्क अदा करना पड़ता है| जिसकी वसूली करने के लिये अन्य अनेक तरीकों के साथ-साथ पानी का कारोबार प्रमुख जरिया बन गया है| गर्मी के मौसम में तो स्टेशन प्रभारियों की चांदी हो रही है!

इसी प्रकार से इस बात को भी सहज ही समझा जा सकता है कि रेलवे के वाणिज्य विभाग के मण्डल से मुख्यालय तक के उच्च अधिकारियों को हिस्सा दिये बिना चलती रेल में और विशेषकर उच्च श्रेणी की रेल गाड़ियों में नकली तथा
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पानी बेचा जाना असम्भव है| कुछ दिनों पूर्व की बात है कि जयपुर से दिल्ली के लिये यात्रा के दौरान रेलवे के चीफ इंजीनियर ने जब रेल नीर के बजाय रेल में, नकली और
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पानी बिकते देखा तो वे भी कहे बिना नहीं रह सके कि ‘‘आखिर वाणिज्य विभाग के अफसरों को हो क्या गया है?’’

1 comment:

जीवन और जगत said...

बिल्‍कुल सही कहा आपने। इन्‍हीं सब अव्‍यवस्‍थाओं और भ्रष्‍टाचार की वजह से लखनऊ के आई आर सी टी सी आफिसर के0एम0 त्रिपाठी जी नप चुके हैं। फिर भी अधिकारियों को सबक नहीं मिला।