एक विशालकाय वृक्ष कटा जा रहा था । एक लकडहारा दनादन उसके मूल पर आघात कर रहा था और विषम वेदना का मारा वह वृक्ष हर बार चीख पड़ता था और उसकी पत्ती -पत्ती कांप उठती थी । उसकी आवाज़ सुनकर व्योमचारी नारदजी उसके पास आ उसकी कोमल हरी पर दर्दभरी टहनियों के नीचे खड़े हो गए । संहार में लिप्त अज्ञानी लकडहारे को कुछ पता नहीं चल सका । वह वार पर वार करता ही रहा ।
नारद ने पूछा , '' आप इतने विशाल हैं फिर यह तुच्छ कुल्हाड़ी आपको काट कैसे पा रही है ?''
वृक्ष ने कहा , " मुनिवर , यह मुझे नहीं काट पाती पर इसके अन्दर जो एक हाथ लम्बा बेंट लगा है वह मेरी ही टहनी थी , मेरी ही लकड़ी है वह ।"
क्या ऐसी ही स्थिति हमारे हिन्दू परिवार की नहीं है ?
16.6.11
हिन्दुओं के मुख्य शत्रु हिदुओं के अन्दर
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2 comments:
यही इस देश का इतिहास है
phir ham itihaas se sabak kyon naheen lete .
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