भ्रष्ट-व्यंग-दोहे ।
आज के हालात के अनुरूप, यथार्थ, भ्रष्टाचारी-व्यंगात्मक दोहे. .!!
(१)
* आदरणीय श्रीअण्णाजीके दल में घूसे हुए, तकसाधुओं को समर्पित...!!
अण्णा अण्णा सब जपे, देखत है सब ताल,
मौका जिसको जब मिले, एंठत है सब माल ।
(२)
* जेल के बजाय आज भी, जो नेता महलमें एश कर रहे हैं, उनको समर्पित..!!
भ्रष्टाचारी मत कहो, लेता कभी - कभार,
बकते हैं जो बकबकें, भरता उदर अपार ।
(३)
* भ्रष्टाचार के विरूद्ध आंदोलन कर रहे, कार्यकर्ता पर, हिंसक हमला करनेवालों को समर्पित..!!
बजरंग तो बदल गए, कलयुग गयो समाय,
लंकादहन को भूल ये, अवध को ही जलाय ।
(४)
* पार्टी फंड एंठनेवाले, राष्ट्रिय पक्षों के शिर्षस्थ नेताओं को समर्पित..!!
उजला - काला सब किया, कछु न दरद मन जान,
परम-धरम तो नक़द है, घूसखोरी करम सुजान ।
(५)
* ग़रीब जनता का लहु पीनेवाले, सभी राजनेताओं को समर्पित..!!
धन - दौलत की लत लगी, पूजत है दिन रात,
नेता बेचारा क्या करें, बिनु मांगे मिल जात ।
(६)
* हरदम दंभी प्रामाणिकता का राग रटनेवाले, सभी लोगों को समर्पित..!!
धन को काला मान के, जनता बहुत पीड़ाय,
सुख तो नेता-घर बसे, बैठा अलख जगाय ।
(७)
* जेल में बैठ कर, बिना ड़रे, मौज उड़ा रहे, सभी भ्रष्टाचारीओं को समर्पित..!!
लक्ष्मी की नाराजगी, घर खाली कर जाय,
भ्रष्टाचारी ना डरे, सब कुछ अपहर जाय ।
(८)
चुनाव के वक़्त घर बैठ कर, वोटिंग न करनेवाले, सभी नागरिको कों समर्पित..!!
टेबल - टेबल घूम के, बांटो तुम परसाद,
बच्चें भूखों जब मरे, मत करना अवसाद ।
(अवसाद = विषाद)
मार्कण्ड दवे । दिनांक- २१-१०-२०११.
MARKAND DAVE
http://mktvfilms.blogspot.com (Hindi Articles)
1 comment:
अति सुन्दर , बधाई स्वीकारें.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
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