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22.12.11

पहिए सी चलती ये जिंदगी

तब धूप कंबल से भी रास्ता बनाकर आंखों के धो डालती, गाय रंभाकर बछड़े को पुकारने लगती, छाछ बनाती दादी दो रस्सियों को पकड़ नाचती सी। दातून के लिए बबूल की डालियों से झूलते ग्रामीण। सार (गौशाला) में घुसकर हरवाया जैसे गायों को गालियों से गुडमॉर्निंग कहता। सूं..सूं.. की आवाज और फिर ढिर..ढिर जैसे दूध लगना शुरू हुआ और जब पतीला पूरा भरने को है, तो आई आवाज। सुबह रामायण के पाठ की गूंज, दाज्जी (ताऊ) का जेहि सुमरत सिद्ध होई.. आगे कुछ न समझ आता। और फिर बारी होती स्कूल की तैयारी होती। मंजन, बस्ता, बस्ती, नहाना धोना, किताब कापी और स्लेट बत्ती रखने में हो जाता टाइम। जल्दी से खाना खाना रोज लेट होना दौडक़र घंटी बजने से पहले स्कूल में पहुंचना। टन-टन की आवाज और प्रार्थना वह शक्ति हमें दो दान कर्तव्य मार्ग पर डट जावें.. और फिर वही स्कूल, स्लेट, बत्ती, ब्लैक बोर्ड, मास्टर, कुंजी, कापी, फट्टी, किवाड़ और कुर्सी जैसे बार-बार आंखों को छूकर निकलते से हैं। रोटी खाने की छुट्टी (लंच) फिर मास्टसाब के लिए चाय। फिर दो अन्य विषयों भूगोल और सामाजिक अध्ययन की पढ़ाई और बस फिर छुट्टी। 4 बजे घर खेल, खलिहान, खेत और गलियारा। गुल्ली, गोली, गोवर और मिट्टी के खिलौने। बस यही जीवन। एक दम असली सा।



अब कोलगेट, वेस्टर्न टॉयलेट, यूरोपियन बाथरूम, म्यूजिक, गीजर, वाशिंग मशीन, बड़ा सा आइना और झम-झम करके बरसता शॉवर। कपड़े, टाई, बेल्ट, कोट, जूते न जाने कितने बंधन। नाश्ता, डायनिंग। न जाने क्या-क्या। अटैची, कागज, मोबाइल, आईपैड, लैपटॉप, चश्मा और फिर कार। सीट बेल्ट, लाइसेंस, कार के कागज और सरपट तारकोल को रौंदते टायर। ऑफिस, नमस्ते, सलाम साब, लेट, अरे इतने जल्दी, तुम्हारा कल का काम, आज यह नहीं वह, कल फिर से वही। साहिब चाय। फोन, ट्रिन. ट्रिन। मेल का क्या हुआ, जवाब दो। मुझे आज के आज सब कुछ चाहिए। जमीन। महत्वाकांक्षाएं, स्पर्धा, सर्वश्रेष्ठ, पिछड़ापन आदि। चंदना, वंदना, शीला, मुन्नी, मोहन, रोहन, सोहन न जाने कितने कौन, क्या उनका काम, कैसा अच्छा बुरा, खराब, नया पुराना और बस लैपटॉप बंद फिर वही शाम के 8 बजे। घर से फोन कब, कहां डिनर में क्या लोगे। घर, बेटा, बीवी, टीवी, ऑफिस की फाइलें, सुबह की प्लानिंग, एडमिशन, स्कूल, परेशान बेटा, चिंतित पत्नी। वीडियो गेम और न्यूज चैनल, सास बहु साजिश, दिल्ली में दो हत्या मुंबई में बलात्कार, विधायक एक करोड़ का, बाबू के पास 10 कारें, सोने के हार, अंधेरे को चीरती कुछ सनसनी सी, हीरा, हार, मोती, ज्योतिष मंगाए, खुश हो जाएं। मंगल को व्रत रखें, अंगूठी पहनें दांयी उंगली में ऑफर के साथ और न जाने कब आंख लग सी गई। बस यही जिंदगी। एक दम नकली सी।
- वरुण के सखाजी, चीफ रिपोर्टर, रायपुर दैनिक भास्कर

1 comment:

S.N SHUKLA said...

सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, आभार .

पधारें मेरे ब्लॉग पर भी, आभारी होऊंगा.