30.11.12
जाल में शिकारी फंस जायेंगे
Posted by todaychhattisgarh 0 comments
मनमोहन पर भारी “M”
deepaktiwari555@gmail.com
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बैठना भाइयों का चाहे बैर क्यूँ ना हो......
Posted by गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर 0 comments
29.11.12
सुनो सचिन...ये आलोचक नहीं प्रशंसक हैं
Posted by Unknown 0 comments
अफसोस...फिर हंगामे की भेंट चढ़ेंगे करोड़ों !
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सचिन बनाम शेन वार्न
विशेषज्ञ मानते हैं कि सचिन तेंदुलकर एक ऐसा नाम हैं जिन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम को नई दिशा दी है. आज कुछ पारियों के खराब प्रदर्शन की वजह से लोग उनकी आलोचना कर रहे हैं लेकिन क्या यह लोग उस सचिन को भूल गए हैं जिन्होंने भारत को ना जानें कितनी यादगार यादें प्रदान की है. ऐसी ही एक यादगार शाम वह थी जब भारत और आस्ट्रेलिया शारजहां के मैदान में आमने-सामने थे और लोग भारत की हार को लगभग तय मान रहे थे.
और वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करे:
http://videos.jagranjunction.com/2012/11/29/sachin-best-inning-video-%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%A1%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B/
Posted by manojsah 0 comments
Labels: Sachin Tendulkar vs shane warne, Sachin Tendulkar vs shane warne (1998) 134 runs Australia sharjah
हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
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फेसबुक पर यह पेज है हम सभी हिंदी ब्लोगर्स के लिए .लाइक करें और इस पर साझा करें अपनी पोस्ट ताकि ज्यादा से ज्यादा हिंदी ब्लोगर पढ़ सकें आपकी पोस्ट !शिखा कौशिक 'नूतन '
Posted by Shikha Kaushik 0 comments
नस पकडिये और दबाइये!!
नस पकडिये और दबाइये!!
नस पकड़ना भी एक विद्या है ,यह कला स्कुल या कॉलेज में नहीं पढाई जाती है।इसको सिखने
के लिए कई शातिर या घाघ लोगों के चरित्र पर PHD करनी पडती है।नस दबाने से जीवन
में सफलता बिना कुछ करे कराये मिल जाती है।जो लोग कहते हैं कि सफलता का बाई पास
नहीं होता उसे नस पकड़ने और उचित समय पर दबाना सीखना चाहिए।
हमारे पहचान वाले एक दुस्साहसी ने एक आम आदमी की नस पकड़ी।बेचारा आम
आदमी उसके चरण पखारने लगा और उसकी चरण रज को माथे चढाने लगा।दुस्साहसी को
आम आदमी धीरे-धीरे भेंट चढाने लगा अब तो द्स्साह्सी के मजे हो गए।उसके मजे एक कोतवाल
की आँखों की किरकिरी बन गये और कोतवाल ने उस दुस्साह्सी की नस पकड ली और दबाई।
नस दबाते ही दुस्साहसी घबराया और टें -टें करने लगा।अब कोतवाल के भी मजे हो गए।जब
मन करा नस दबा दी और सेवा पूजा कराने लगता।
कोतवाल की नस विद्या अफसर को समझ पड़ी तो अफसर ने भी विद्या सिख ली और
कोतवाल की नस दबा दी।कोतवाल इशारे पर नाचने लगा और अफसर के मजे हो गये।अफसर की
राजाशाही से उपरी अफसर जल उठा ,मैं बडासाहेब होकर भी मजे नहीं और ये अफसर मजे लूट
रहा है ,बड़े अफसर ने खोज की , नस विद्या की जानकारी हासिल की तो उसका प्रयोग भी कर
दिया छोटे अफसर पर।विद्या ने असर दिखाया और बड़े साहेब के भी ऐश हो गयी।
बड़े साहेब की ऐश नेताजी को मालुम पड़ी तो नेताजी ने जांच बैठा दी।जांच से जो रिपोर्ट
आई उसे पढ़कर नेताजी भोंच्चके रह गए।उन्होंने भी जन सेवा का काम दूर करके नस पकड़ने की
विद्या सिख ली,अब तो सब कुछ व्यवस्थित हो गया,सब एक दूजे की नस पकडे थे।सबके मौज थी.
सबको मजे में देख पराये पक्ष के नेता का पेट दर्द करने लगा उन्होंने सबको मस्त देखा तो गहन
छानबीन में लग गए और नस विद्या के कोर्स को सिख गए।अब तो वो भी नस पकड के दबाते रहते
हैं और सुख भोग रहे हैं।
नोट:- इस विद्या में सज्जन कहलाने वाले सरल लोग नापास होते रहे हैं और होते रहेंगे।
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Labels: vyangya
कोशिश- इक नई सुबह.....
Posted by Nai Kalam 0 comments
28.11.12
"जय बोलो बेईमान की"
आप ने मुहम्मद रफी का एक गीत सुना होगा-
"तुमसे इज़हारे हाल कर बैठे।
बेखुदी में कमाल कर बैठे रे.....।"
अब आजकल गुनगुनाइए- "तेरे नैना बड़े दगाबाज़ रे।"
बीच की धुन में आप को रफी के ही एक मशहूर गीत-"हर फ़िक्र को धुएं में उड़ाता चला गया" की झलक दिखाई देगी।
अन्तरा का भी लगभग यही हाल है, मगर ये खोज आपको करनी है।
मगर साथ में आप मुकेश का ये जरूर गाइयेगा "जय बोलो बेईमान की।"
एक प्रश्न का उत्तर मुझे नहीं मिलता- क्या वास्तव मे पूरे भारत में मौलिक रचनात्मक व्यक्तित्वों का लोप हो गया है ?
( और कोई नहीं मिलता तो मुझे ही याद कर लेते.........हा...हा...हा...)
Posted by प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' 0 comments
मौत पर जश्न सही या गलत ???
Posted by Unknown 0 comments
कमांडो और कंडोम-ब्रज की दुनिया
मित्रों,गत 23 नवंबर को एन.एस.जी. के घायल कमांडो सुरेन्द्र ने आरोप लगाया है कि उन्हें सरकार की ओर से आज तक मदद के नाम पर एक रुपया भी नहीं मिला। सरकार ने उनके इलाज के लिए भी कोई पैसा नहीं दिया। उसे 13 महीनों से कोई पेंशन भी नहीं मिली है। इस बीच सुरेन्द्र सिंह के आरोप का जवाब देते हुए सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने इस आरोप को झूठा बताते हुए कहा कि सरकार द्वारा सुरेंद्र सिंह को 31 लाख रुपए दिए जा चुके हैं और हर माह 25 हजार रुपए पैंशन के तौर पर दिए जा रहे हैं। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने साफ किया है कि कमांडो का मामला रक्षा मंत्रालय से जुड़ा है और वह इस मामले की जांच करेंगे। रक्षा मंत्रालय ने भी एनएसजी कमांडो की शिकायतों पर गौर करने की बात कही है। मंत्रालय के सूत्रों ने कहा है कि कमांडो सुरेंद्र सिंह को इसी 16 नवम्बर को ही सूचित कर दिया था उनकी 31 लाख रुपए की पैंशन राशि उनके खाते में जमा हो रही है और 25 रुपए प्रतिमाह पैंशन भी स्वीकृत हो गई है। ऑपरेशन को अंजाम देते वक्त आतंकियों के ग्रेनेड से सुरेन्द्र बुरी तरह से घायल हो गए। धमाके की वजह से वह दोनों कानों से बहरे हो गए। साथ ही उनके कंधे और पांव में भी गहरी चोटें आईं। इसके बाद सुरेन्द्र को पता चला कि सेना के अफसरों ने अपने बहादुर सिपाहियों के हिस्से की आर्थिक मदद को डकार लिया है। सुरेन्द्र सिंह के मुताबिक ऑपरेशन मुंबई हमले में आतंकियों से मुकाबला करने वाले एनएसजी कमांडोज़ को 26 जनवरी, 2009 को वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया जाना था, लेकिन इसमें उनका और 8 ऐसे कमांडोज़ का नाम नहीं था, जो ऑपरेशन के दौरान गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस बारे में जब इन 9 कमांडोज़ ने सीनियर ऑफिसर्स से पूछा कि अवॉर्ड लिस्ट में उनका नाम शामिल क्यों नहीं है, तो अधिकारियों ने बताया कि आपने आर-पार की लड़ाई में हिस्सा लिया है। इसलिए आपको बाद में बड़े अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। उन्हें बताया गया कि 15 अगस्त, 2009 को राष्ट्रपति के हाथों उन्हें अवॉर्ड मिलेगा। ये कमांडो इंतजार करते रहे, 15 अगस्त को भी इन्हें अवॉर्ड नहीं मिला। दोबारा पूछने बताया गया कि अगले साल जनवरी में सम्मान दिया जाएगा, लेकिन उन्हें तब भी नहीं मिला। सुरेन्द्र का कहना है कि इसके बाद जब उनके एक साथी ने आरटीआई के माध्यम से अवॉर्ड्स के बारे में जानकारी ली, तो पता चला कि उन सभी 9 कमांडोज़ के नाम की सिफारिश ही नहीं की गई थी। साफ था कि सेना के ऑफिसर टाल-मटोल करके झूठे आश्वासन दे रहे थे। यही नहीं, इस दौरान यह भी पता चला कि जवानों के लिए आई आर्थिक मदद में भी हेराफेरी की गई है। कुछ रकम का हिसाब नहीं था, तो कुछ को 3-4 कमांडोज़ में ही आवंटित करके औपचारिकता निभा दी गई थी। सुरेन्द्र का आरोप है कि इन सब बातों का विरोध करने पर उन्हें मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर सेना में काम करने के लिए पूरी तरह से अयोग्य घोषित कर दिया गया। सुरेन्द्र का कहना है कि उन्हें जानबूझकर नौकरी के 15 साल पूरा करने से पहले ही रिटायर कर दिया गया। उन्हें तब सेवा मुक्त किया गया, जब उन्हें सर्विस में 14 साल, 3 महीने और 10 दिन हो चुके थे। रिटायरमेंट के बाद जब उन्होंने सेना के ग्रेनेडियर्स रेकॉर्ड्स में पेंशन के लिए अर्जी दी, तब तो उसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्होंने 15 साल की नौकरी पूरी नहीं की है। इस बात को 2 साल बीत गए हैं लेकिन अभी तक उन्हें पेंशन नहीं दी गई। वह अपनी जमा पूंजी से ही इलाज करा रहे हैं। अभी तक 1 लाख रुपये से ज्यादा खर्च कर चुके हैं। सुरेन्द्र का आरोप है कि उन्होंने अपने हक के लिए आवाज उठाई, इसीलिए उसे 15 साल पूरा करने से पहले ही नौकरी से निकाल दिया गया। सुरेन्द्र ने कहा कि जेल में बिरयानी खाने वाला कसाब लोगों को याद है, लेकिन अपनी जान दांव पर लगाने वाले NSG कमांडो किसी को याद नहीं। उनके मुताबिक ऑफिसर्स की गड़बड़ी और रवैये से नाराज कुछ लोगों ने या तो नौकरी छोड़ दी, या फिर उन्हें मजबूर कर दिया गया।
मित्रों,उसी आपरेशन 'ब्लैक टार्नेडो' में शामिल रहे कमांडो सुनील जोधा को आतंकियों से आमने-सामने की लड़ाई के दौरान सात गोलियां लगीं थी। यहाँ तक कि अब भी उसके सीने में एक गोली मौजूद है। डॉक्टरों की टीम ने उन्हें छह महीने और अपनी निगरानी में रखे जाने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद उन्हें एनएसजी से वापस मूल यूनिट में भेज दिया गया। इसी प्रकार कमांडो दिनेश साहू के पैर में कई गोलियां लगी थीं लेकिन सम्मान की बजाय उन्हें मीडिया में जाने पर गोली मार देने की धमकी दी गई। कमांडो सूबेदार फायरचंद को पैर में गोलियाँ लगीं। कोई सम्मान नहीं मिला तो हार कर वीआरएस ले लिया। कमांडो राजबीर गंभीर रूप से घायल हुए लेकिन जब उन्होंने पदक की बात की तो एनएसजी ने उन्हें भगोड़ा दिखा कर आठ-नौ महीने का वेतन रोक दिया और उनका सर्विस रिकार्ड भी खराब कर दिया गया। क्या देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देनेवालों के साथ दुनिया के किसी भी अन्य देश में ऐसा सलूक किया जाता है?
मित्रों,सवाल हजारों हैं और जवाब है कि है ही नहीं। अगर जवाब है भी तो इस सरकार के कहे पर यूँ तो विश्वास करना ही मुश्किल है फिर भी अगर यह विश्वास कर भी लिया जाए कि वह सच बोल रही है तो प्रश्न यह उठता है कि मुआवजा या अवकाश-प्राप्ति लाभ देने और पेंशन निर्धारित करने में इतनी देरी क्यों हुई? क्यों कुछ ही दिन या महीने के भीतर पैसा नहीं दे दिया गया? देश के लिए जान पर खेलने और अपंग हो गए इन जांबाजों को क्यों वीरता पुरस्कार नहीं दिए गए? क्या सरकार या सेना को इनकी वीरता पर संदेह था या है? क्या वीरता पुरस्कारों पर पहला हक इनका नहीं था या है? क्या इनकी वीरता सेना या सरकार द्वारा स्थापित वीरता की परिभाषा में नहीं आती? अगर इसी कारण से ऐसा हुआ है तो क्या सेना या सरकार बतायेगी कि उनके अनुसार वीरता की क्या परिभाषा होती है? क्या भ्रष्टाचार के कैंसर ने हमारी सेना को भी अपनी गिरफ्त में नहीं ले लिया है? क्या वीरता पुरस्कारों में भी अधिकारी हिस्सा बाँटते हैं? कुछ भी संभव है वर्तमान परिवेश में,कुछ भी असंभव या अनहोनी नहीं। क्या सुरेंद्र सिंह को इसलिए एक भी पैसा देने में 4 साल नहीं लग गए क्योंकि उनके मामले को देखनेवाले सेना के अधिकारियों को उस राशि में से कुछ हिस्सेदारी चाहिए थी? सवाल तो यह भी है कि हर तरह से योग्य होने पर भी क्यों सेना में जवानों को बिना घूस दिए नौकरी नहीं मिलती? कम-से-कम बिहार में ऐसी ही हो रहा है। आज के बिहार में क्यों लगभग प्रत्येक गाँव में एक ऐसा दलाल मौजूद है जो पैसे लेकर सेना में नौकरी दिलवाता है? क्या इस कमांडो प्रकरण से यह स्पष्ट नहीं हो गया है कि वीरता पुरस्कार देने की प्रक्रिया पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं है? क्या सरकार को इसे निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के उपाय नहीं करने चाहिए? हमें यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि जो समाज और राष्ट्र उसकी रक्षा के लिए जान पर खेलनेवाले वीर सपूतों का सम्मान नहीं करता उसको गुलाम होते देर नहीं लगती।
Posted by ब्रजकिशोर सिंह 1 comments
Labels: कमांडो और कंडोम-ब्रज की दुनिया
27.11.12
जब मनमोहन सिंह बने शोले के गब्बर सिंह !
Posted by Unknown 0 comments
Innocent Shayaries by 12 Year old RAJU GUIDE.
http://www.youtube.com/watch?v=9h19PFNbqlc&feature=youtu.be
अगर चाय में पत्ती नहीं तो
पीने का क्या मज़ा और
साथ में गाईड नहीं तो
घूमने का क्या मज़ा ।
चप्पल है छोटी तो
पैर में नहीं आती और
अंकल की बीवी मोटी तो
बग़ल में नहीं आती ।
अगर अत्तर की शीशी को
पत्थर से फोड़ दूँ और
जिन्सवाली मिल जाए तो
साड़ीवाली को छोड़ दूँ ।
अगर फूल को लेंगें तो
काँटा तो लगेगा और
लड़की को छेड़ेगें तो
छांटा तो उड़ेगा ।
अगर किचड़ है, पैर ड़ालोगे,
धोना तो पड़ेगा और
ड्राइवर से शादी करोगे तो
घूमना तो पड़ेगा ।
दिल्ली में घूमता तो
हेमामालिनी मिलती और
जिस की याद में घूमता हूँ
वो घरवाली नहीं मिलती ।
अगर काँच का बंगला है तो,
पत्थर कैसे मारुँ और
अमीर की बेटी है तो
आँख कैसे मारुँ ।
सिंगल बाय सिंगल वाले
नाराज़ मत होना और
अब की बार आयेंगे तो
टू बाय टू कपल में आना ।
मेहनत करते हैं
एन्गल बदल-बदल के
और
उसके बाप ने पिटा
सेन्डल बदल-बदल के ।
जाम पर जाम पीने से,
क्या फायदा,
शाम को पीएगें तो,
सुबह उतर जाएगी,
और हरि नाम का प्याला पीयेंगे
तो
आखी ज़िंदगी सुधर जाएगी ।
शायर - राजू गाइड़ ।
उम्र- क़रीब १२ साल.
स्थान- अचल गढ़ - माउन्ट आबु पर्वत -राजस्थान.
मार्कण्ड दवे। (एम.के.टीवी फिल्म्स ।)
Posted by Markand Dave 1 comments
Labels: Hindi, MARKAND DAVE, MKTVFILMS, SHAYARI
जेठमलानी ने क्या गलत कहा ?
Posted by Unknown 0 comments
Posted by ASHUTOSH VERMA 0 comments