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4.2.08

मैंने भुगता है दंगों को, समझती हूं पीड़ा

आज मुंबई में मनसे के लोगों ने जो उठापटक करी उसका दुष्परिणाम ये हो सकता है कि जवाबी कार्यवाही हो और शहर सुलगने लगे । मैने मुंबई में ९२-९३ में हुए जातीय दंगों को भुगता है इसलिये इस पीड़ा को समझती हूं कि तकलीफ़ सबसे ज्यादा गरीब तबके को होती है जो वोट देकर सरकार बनाता है । ये तबका बेचारा पीने के पानी से लेकर रिहायशी परेशानियों से जूझता रहता है और हुक्मरान उन्हें लेमनजूस जैसी सुविधाएं देकर उलझाए रहते हैं । तालीम का प्रचार प्रसार जरूरी है ताकि लोग सही नेताओं को जान सकें । जब पढ़ेंगे नही तो ऐसे ही जाति धर्म क्षेत्र के नाम पर नेता आवाम को लड़ाते रहेंगे । मैं टीचर हूं तो इस बात को आप सबसे कह सकती हूं कि शिक्षा ही एकमात्र उपाय है तमाम मसलों का ।

5 comments:

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ said...

माफ़ कीजिए यशवंत भाईसाहब हैडिंग लिखना ही भूल गयी ,नयी हूं जल्दी ही सीख जाऊंगी...
भड़ास ज़िन्दाबाद

यशवंत सिंह yashwant singh said...

और ये लगा दी हेडिंग....। आपने काफी बड़ी जानकारी दी। अगर उन दंगों से जुड़ी कोई स्मृति हो तो उसे जरूर जानना चाहेंगे हम लोग। शायद, वह मंजर बंद दिमाग वालों की आंखें खोलने में काम आ सके।
यशवंत

anuradha srivastav said...

भगवान ऐसे अनुभव किसी को ना कराये। हां आपकी बात से सहमत हूं शिक्षा का व्यापक प्रचार -प्रसार होना ही चाहिये।

ghughutibasuti said...

बहुत ठीक लिखा है आपने ।
घुघूती बासूती

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मुनव्वर सुल्ताना जी,आपने मेरे क्रोध को सत्य मान लिया जबकि आप तो अब जानती हैं कि मैंने मात्र अभिनय करा है । मैं उपचारक हूं कभी-कभी घाव पर नश्तर चलाना पड़ता है उसे हिंसा कहना उचित नही है बल्कि नश्तर चलाने वाले की भावना को समझिए.......