Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

7.5.08

अपने इज्जत को बचा के रखे,कही कोई इसको बेइज्जत न कर जाए !!

मैंने बुजुर्गो से बचपन में एक कहानी सुनी थी एक थी अँधेरी नगरी और उसका था एक चौपट राजा शायद अपने बारे में इतनी कड़वे शब्द पढ़ कर मुझे यकीं हो गया है की मेरे बड़े भाई यशवंत जी उस चौपट नगरी के राजा है और उनकी प्रजा का तो पूछना ही क्या माफ़ कीजियेगा यशवंत भाई मैं आपकी तरह अपशब्दों का इस्तेमाल नही कर सकता हू मुझे अगर भगवन ने कलम की ताकत प्रदान की है तो उसको मैं इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर के बर्बाद नही कर सकता हू क्यों की हम सब ऐसे समाज से ताल्लुकात रखते है जहा पर एक पढ़ा लिखा वर्ग है चूँकि हम सब पर समाज को कुछ नया देने की जिम्मेदारी है इस वजह से एक पत्रकार होने के नाते मैं अपने में तब्दीली नही कर सकता हू मैंने अपने विचार को तब प्रस्तुत किया है जब मैंने उसको बहुत करीब से देखा है ऐसा नही है की मैं अंधा हू या मुझे दुनिया की ख़बर नही है अपने विचारो को प्रस्तुत करने के लिए कई ऐसे शब्द श्रीष्टि ने बनाये है जिसका आप इस्तेमाल कर सकते है जरूरी नही है की हमेशा अपशब्दों का इस्तेमाल किया जाए,क्यों की इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल वो लोग करते है जो पढे लिखे नही होते है लेकिन किसी किसी पर लेख लिख कर टिप्परी करने का शौक बहुत होता है , लेकिन आप तो आप है कुछ भी किसी को लिख सकते है लेकिन मुझे दुःख इस बात का है की किसी भी लेख की हत्या करने के लिए आपकी प्रजा काफी है आपने इतनी जहमत क्यों उठाई अरे किसी से कह दिया होता तमाम लोग है जो इस तरह के लेख लिख कर अपनी भड़ास निकल सकते थे पर आपसे इस तरह के शब्दों की उम्मीद नही थी यशवंत भाई आपका ब्लॉग इतना फेमस हो चुका है की अब इसको हर वर्ग का व्यक्ति पढता है चूँकि हम सब एक सभ्य समाज से ताल्लुकात रखते है इस वजह से उम्मीद करता हू की भविष्य में शायद इस तरह के लेख जिसमे इतने वाहियात शब्दों का इस्तेमाल हुआ है आप नही लिखंगे !
akshat saxena

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अक्षत भाई,आप तो बड़े ही मेंटीसेंटल किस्म के प्राणी निकले,आप जरा सामयिकता के प्रभाव में आकर कुछ परिभाषाएं भूल गएं हैं,शरीफ़ और सभ्य होना और कायर होना अलग-अलग हैं,अन्याय का विरोध न करना षंढ़त्व है,भड़ास को ख्याति याचना करने या घिघियाने से नहीं मिली अहि बल्कि हमने अपना अस्तित्त्व सिद्ध किया है,आप यशवंत दादा के किस लेख पर ये आरोप लगा रहे हैं कि वे अपशब्द प्रयोग करते हैं???? इस ब्लाग पर माडरेटर की हैसियत से मौजूद हूं और आपने ये कैसे सोच लिया कि मैं और यशवंत दादा सभ्य समाज से न होकर असभ्य हैं,वाहियात शब्दों को सूचीबद्ध कर दीजिये ताकि उन पर विचार किया जा सके और आपकी भी पोस्ट की समीक्षा करी जा सके...
जय जय भड़ास

यशवंत सिंह yashwant singh said...

अक्षत, आपने अगर गल्ती से नहीं, सही से भी ये लिखा होता तो मैं बुरा नहीं मानता क्योंकि हम लोग बुरा और अच्छा मानने के चूतियापों से उबर चुके हैं। बड़ी सोच के लिए छोटे छोटे बांधों तंटबंधों को तोड़ना बहुत जरूरी होता है तभी आप हरहराते समुद्र जैसा बनकर गंभीर और असीम और अपार और असीमित बन सकते हैं।

दरअसल मामला यह हुआ कि अक्षत के पोस्ट पर किसी राजेश्वर सिंह ने जो लंबी टिप्पणी लिख मारी, वो मुझे इतनी प्यारी लगी कि उसे मैंने एक अलग पोस्ट के रूप में डाल दिया, अब उस पोस्ट को जब अक्षत भाई ने देखा तो प्रकाशित करने वाले के नाम में मेरा नाम था, सो वो बिना पूरा पढ़े एकदम से भड़क उठे और दे मारी यशवंत सिंह की ऐसी तैसी करती हुई एक पोस्ट।

बाद में उन्होंने शांति से पढ़ा होगा तो लगा होगा कि अरे, यह तो यशवंत ने सिर्फ पोस्ट किया है, लिखा तो किसी दूसरे साथी ने है....तो इस कनफ्यूजन में भाई ने अपनी भड़ास मेरे खिलाफ निकाल दी।

खैर, जो होता है अच्छे के लिए होता है, जो होगा अच्छे के लिए ही होगा....हम लोग तो ऐसा मानते हैं।
अक्षत भाई का पत्र जो उन्होंने बाद में मुझे मेल किया...

yashwant bhai pranam,

aapko suchit karna tha ki maine apne comment par ek lekh likha hai jo aap par galti se likh gaya hai chunki maine us ko baad me dekha asal me maine jab neeche dekha to usme post par aapka naam tha is wajah se main aap ko samajh kar apna sara gussa aap par nikal diya chunki mujse galti hui hai is wajah se main aapse maafi mangta hu aur umeed karta hu ki aap apne is chote bhai ko maaf kar denge lekin aapse ek nivedan hai ki kripa kar ke aise lekh ko mat post kiya kijiye jisme itne apshabdo ka prayog hua ho is se samaj me hum sab ki chavi kharab ho rahi hai.
--
AKSHAT SAXENA


अक्षत भाई, माफी वाफी की छोड़ो और अपनी भड़ास यूं ही निकालते रहो भाई...
जय जय
यशवंत

VARUN ROY said...

अक्षत भाई ,
एक बात मैं भी कहना चाहूँगा. आपका विषय ऐसा था जिस पर टिप्पणियों की वैविध्यता अवश्यम्भावी थी . मुझे हैरानी तो इस बात पर हो रही है कि महिलाओं की तरफ़ से उतनी टिपण्णी नहीं आयी जितनी मुझे अपेक्षा थी.
एक बात और. भड़ास पर जब आप लिखेंगे तो आपको हर तरह की टिप्पणी के लिए तैयार रहना होगा. लोग अपनी समझ के अनुसार अपना विचार रखते हैं. इससे बौखलाने की बजाय आप पुनः अपना पक्ष रखें तो बेहतर हो. ये सब तो चलता ही रहता है.
जो अच्छा लगे उसे अपना लो
जो बुरा लगे उसे जाने दो.
वरुण राय

Anonymous said...

अक्षत भाई को प्रणाम.
भाई आपका पोस्ट बड़ा जोरदार है. मगर सत्य को आत्मसात करने वाला नहीं है. जोरदार बिलकुल उसी तरह जिस तरह न्यूज़ चैनल पर ब्रेकिंग न्यूज़ होता है. ढाक के तीन पात. हालांकि आपने यशवंत दादा से माफ़ी भी मांगी मगर जो आपके भाव हैं वो बिलकुल माफ़ी लायक नहीं हैं. माफ़ करिये ना ही मैं माफ़ी देने वाला हूँ और ना ही लेने वाला हूँ मगर आपका पोस्ट उत्तेजित किये जा रहा है.
यशवंत जी चौपट राजा हो सकते है. भडास अंधेर नगरी ही है. सत्य वचन प्रभु.
परन्तु आपने "शब्द" का भी विवेचन किया है, मित्रवर मैं पत्रकार नहीं हूँ मगर आप जिस अंधी नगरी के रहवासी हैं वहाँ चौपट राजा की जरूरत ही नहीं है क्योँ की चारो तरफ चौपट ही चौपट है. जी हाँ में ने पत्रकार का जिक्र किया है. जिस सफाई से आपने पुरुष का पक्ष रखा बिलकुल उसी सफाई से आपने अपने पत्रकारों का भी पक्ष रख दिया. आपलोग पढे लिखे वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. और आपको कलम की ताकत है. और आप अपना बहूत कुछ बर्बाद नहीं करना चाहते हैं. आप पर समाज को कुछ देने की जिम्मेदारी है.
वाह वाह उत्तम अति उत्तम.
शब्दों का क्या मायाजाल बिछाया है आपने. अतुलनीय है और संग ही अनुकरणीय भी परन्तु मित्रवर आपने ये कैसे मान लिया की आप पत्रकार जन के अलावे सब जाहिल हैं. और संग ही अपने विचार पर प्रतिक्रिया से तिलमिलाहट बताती है की आपमें पत्रकारिता के सौ फीसदी गुण हैं, की हम पत्रकार हैं तो कोई हमें कुछ नहीं कह सकता हम पुलिस प्रशाषण, नेता से लेकर काली दुनिया तक पहुंच रखते हैं.
आपने लिखा की आपने दुनिया को करीब से देखा है मगर आपके विचार बताते हैं की आपने सिर्फ अपने चश्मे से देखा है जिसमें पुरुष के अहम् की बू आती है.
आपने भडास के शब्दों पर बहूत बड़ा प्रश्नवाचक चिह्न लगाया है, मित्र आप कलम से खेलते हैं और कलम से खेलने वालों को देख देख के मैं उब गया हूँ. आपके(पत्रकार) चरित्र से मैं भली भांति परिचित हूँ क्योँ की बड़े करीब से देखा है और अगर शब्दूं मैं उतार दूं तो कई कलम वाले अपनी धोती सम्हालते नजर आयेंगे.
अंत में आपसे अनुरोध है की आप जब भी अपने कलम का इस्तेमाल करें तो उसमें पत्रकारिता शामिल करें जो आम जन के लिए हो ना की लाला जी के कच्छे के अन्दर तेल लगाने वाली हो.

सादर प्रणाम