जरा हमसे नजरें लड़ाओ तो जाने
यो नजरें तुम्हारी है जलवों के थाने
है आसान जितने ये पलभर में करने
है मुशकिल ही उतने ये वादे निभाने
छुड़ा करके दामन चले हो सितमगर
मेरी यादों से जा के दिखाओ तो जाने
हैं दरीचों में यादों के बावस्ता अब तक
वो रेशम के लम्हें वो मंजर सुहाने
है मकबूल उल्फत की महफिल में हमसा
कोई सिरफिरा आगे आये तो जाने।
मृगेन्द्र मकबूल
29.5.08
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1 comment:
कोई सिरफिरा आगे आये तो जाने
ए नीरव भडासी को रोको तो जाने ।
पंडित जी बढ़िया है
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