आजकल हर अखबार, हर टी.वी चेनल मै बस आतंकवाद , कत्ल और बलात्कार की घटनाएं ही देखने सुनने को मिलती है और मिल रही है। अभी कुछ ही दिनों पहले सी। आर ।पी ।ऍफ़ रामपुर मैं भी आतंकवादियों ने कई सैनिको की जाने ली थी और अब जयपुर मै कई हजार लोगो को मौत के घाट उत्तारकर खूनी होली क्हेली। और भी न जाने कितने ही अपराध किए होंगे । आख़िर कबतक आतंकवादी इसी तरह खूनी होली खेलकर खुशिया मानते रहेंगे और कबतक हमलोग इसी तरह मजबूर और बेबस होकर ये तमाशा देखते रहेंगे ? शायद तबतक जबतक हमारे देश के क़ानून को कड़ा न किया जाए । क्युकी इसी लचीले क़ानून की वजह से ही अभी तक कई खोंकार आतंकवादी खुले घूम रहे है और इस तरह के घिनोने कारनामो को अंजाम दे रहे है। अब तो आतंकवादियों की संख्या भी बढ़ती जा रही है क्युकी सभी जानते है की लचीले कानून के कारण हिन्दुस्तान मै सजा जल्दी नही हो पाती । केस लंबा और लंबा होता ही चला जाता है और तब तक मुजरिम बचने के सारे रास्ते तलाश कर लेता है और मामूली सजा काटने के बाद छुट जाता है और साथ ही उसके अन्दर का डर भी खत्म हो जाता है जिस कारण वो और भी हेवानियत पर उतर आता है। हर साल आतंकवादी लाखो निर्दोष लोगो की जाने लेते है । पकड़े भी जाते है पर क्या हो पाई है किसी को कड़ी सजा ? क्या लाखो लोगो की जाने लेने वाले किसी भी एक आतंकवादी को मिली है मौत की सजा ? क्या कटी है किसी खुन्कार आतंकवादी की सारी जिंदगी जेल मैं ? जबकि जेल मै जाया जाए तो कई निर्दोष लोग या मामूली जुर्म किए हुए लोग सालो से जेलों मै सजा काट रहे है । जाने किस बात की । यही है हमारे देश का कानून । इसी लिए तो कह रही हूँ इसे लचीला कानून। जब तक कानून को कड़ा नही किया जायेगा , जब तक सख्ती नही की जायेगी तब तक ये घटनाये यू ही होती रहेंगी शायद बढ़ती रहेंगी। बहुत दुःख के साथ कहने को मजबूर हूँ की भगवान् जयपुर मै मरने वाले लोगो की आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार को इस पीड़ा को सहने की शक्ति दे। पर सच्ची श्रधांजलि तो तभी दे पायेंगे जब इस घिनोने कृत्य को करने वालो को कड़ी से कड़ी सजा हो।
18.5.08
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5 comments:
कमला बहन,मुझे ही नहीं सारे दुनिया के अच्छे लोगों को निर्दोंषों के मारे जाने का दुख होता है लेकिन क्या इसके लिये कानून को कोस लेना पर्याप्त है? कानून पढिये वकालत करिये और लोकतांत्रिक तरीके से कानून में संशोधन की बात आगे बढ़ाइये। हमारे पास भड़ास जैसा विशालतम वैश्विक मंच है तो यहां से हम रचनात्मकता को रूप देने की शुरूआत कर सकते हैं। आतंकवादी को पकड़ कर जेल में बंद करने या मार डालने से समस्या हल नहीं होती ये मानसिकता उपजती क्यों है ये जानना जरूरी है।
kamla ji, manisaji ki bat se sahmat nahin hoiye. kanoon ka dar apradhion ko hona hi chahia.
कमला जी,
आप सिर्फ एक पक्ष को देख रही हैं. आतंकियों ने आतंक मचाया बहुतों की जान ली, बहूत नुकसान पहूँचाया. मगर इसका दूसरा पक्ष है की इन्होने आतंकवाद का रास्ता क्योँ अख्तियार किया. ये ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब कोई तंत्र नहीं देना चाहता. आतंकवाद के नाम पर राजनेता अपनी रोटी सेंकने के कारण इसको बंद नहीं करना चाहते, पुलिस नेताओं के इशारे पर चलने वाले वो पिट्ठू हैं जिन्हें आतंकवाद के नाम पर मेडल मिल जाता है, मरने वाले और मारने वाले दोनों पीड़ित और इनका सुनने वाला कोई नहीं. आपने ये क्यों नहीं सोचा की अगर आपने अपने किसी के साथ अन्याय नहीं किया तो वो भला क्यौंकर करेगा.
इन आतंकियों ( माफ़ करें मैं इन्हें आतंकी नहीं मानता, क्योँकी ये भी हमारे समाज के वो हिस्से हैं जिनके साथ हमने आपने जाने अनजाने में ऐसा कुछ किया है जिसके कारण इनका कानून व्यवस्था पर से विश्वास उठा और इन्होने आतंक का रास्ता चुना) को अगर हम समझें और इन्हें अपने समाज का हिस्सा मानते हुए बराबरी दें तभी हम इस से मुक्ति पा सकते हैं. मुझे लगता है की दबावों में दबा हमारे तंत्र का सभी पाया इसको जगह देने के पक्ष में नहीं है और अगर भडास इस का एक सशक्त माध्यम बने तो हमारी एक ये हमारे समाज की , मानवता की लोकतंत्र की जीत होगी. और मुझे उम्मीद है की भडासी जरूर विचार करेंगे.
जय जय यशवंत
जय जय भडास
मुझे खुशी इस बात की है कि इस मर्ज पर कम से कम भड़ास पर कुछ सार्थक बसह हो रही है और उम्मीद है कि इससे कुछ हल भी लिकल कर सामने आएगा.
वरुण राय
what a common I dian thinking of Netas like Digvijay, Shree Prakash, Subodh Kant Sahay and Chidamabaram etc., is refleted in this poem at http://chirkutdas.wordpress.com
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