बहुत दिनों बाद अपनी भड़ास निकाल रहा हूँ इस का मतलब ये नहीं की कुछ दिनों के लिये मर गया था। हफ्ते भर के लिये झीलों की नगरी भोपाल में हूँ । यहाँ आजकल बहुत उमस है । अख़बारों की बारिश खूब हो रही है , चेनलों के ओले भी गिर रहे हैं । अच्छे-अच्छे अखबार और पत्रकार ओछेपन की छतरी लगा कर घूम रहे हैं । पत्रकारिता जगत के तथा कथित (बूढे) बुद्धजीवी पैसे के प्रलोभन की आंधी में पेड़ की तरह उखड़ कर अपना एरिया बदल रहे है । इधर चुनाव की स्वर्णवर्षा में भीगने के लिये बंधु कमर कस रहे हैं । अनुभव और भी हैं लेकिन धीरे - धीरे ही बाटूँगा... हाँ सचिन भाई ( नई इबारतें ) से छोटी सी मुलाक़ात हो गई थी । अच्छा लगा ।
29.5.08
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1 comment:
आशेन्द्र भाई,
चलिए आपको बधाई, मौज कीजिए और हाँ भडास को अन्दर रोकिये मत उगलते रहिये.
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