ये न पूछो कि किस-किस ने धोखे दिये
वरना अपनों के चेहरे उतर जाएंगे।
०००दोस्त जीवन में प्यारे वही है सगा
मौका पड़ते ही झट से जो दे दे दगा
तेरी चादर थी औरों से ज्यादा सफेद
इसलिए दाग दामन पे तेरे लगा।०००
उम्र गुजरी है आजमाने में
कोई अपना नहीं जमाने में
दोस्त मुश्किल से एक-दो होंगे
इतने बैठे हैं शामियाने में
परख दोस्तों की होती है तभी
टांग अपनी फंसी हो थाने में
पहले आते तो मदद कर देते
टाल दी बात यूं बहाने में
फ्राड-ही-फ्राड दूर तक फैले
खोटे सिक्के हैं बस खजाने में।
पं.सुरेश नीरव
मो,९८१०२४३९६६
27.5.08
दोस्तों के लिए...
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1 comment:
टांग अपनी फंसी हो थाने में
भागे डर के गुसलखाने में
मिल गए कवि सिरहाने में
पंडित जी दंडवत.
एक बार फिर से आपने जोश दिला दिया. बस तरोताजा रहिये और हमें करते रहिये
जय जय भडास
जय जय भडास
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