रोज़ होती है दर्द की नुमाइश तकनीक के इस बेमिशाल डब्बे में, कुछ भी हो ख़बर का जामा पहना देते है हम उसे,अलग अलग दुकाने सजी है पर सामान एक ही है,वही लूप मे घूमती घटनाये वही होड़ मे उछलती सूचानाये.रिश्ते और घर का कोना-कोना बे परदा हो गया है इस TRP के चक्कर में पर वो है कि मिलाती ही नही.कोई करता है हकीकत की बात,कोई सच की कोई सबसे तेज़ है,तो कोई बदलना चाहता है तस्वीर देश की.सब है पढे लिखे ओहदे वाले नज़र रखते है हर चीज़ पर ऊपर से. किसी गुरू ने कहा था कि बेटा हर ईमारत की मजबूती उसकी नींव मे होती है. आज सोचता हूँ कि इस देश की नींव मे क्या है अगर आम जनता तो ये डिब्बा वो क्यों नही दिखाता कुन करता है नुमाइश सरे आम हर दर्द की कुछ मरहम दे तो सुकू मिले सबको...
19.5.08
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1 comment:
मेरा भटके हुए हिन्दुस्तानी भाई , आपने तो बाकायदा कविता लिख डाली है. उसे गद्द्य रूप में क्यों प्रस्तुत किया है.
वरुण राय
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