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23.5.08

सुनिए रूपेशजी...


नर हो या नारी
मुंबई हो या निठारी
जुर्म के सिर पर कभी कोई ताज नहीं होता है
जुर्म-जुर्म होता है जो लिंग का मोहताज नहीं होता है
इसलिए..
इनायत का लफ्ज जिसकी रूह से दूर होता है
वो जुर्म की जहनीयत से मगरूर होता है
वो न आदमी होता है ना औरत सिर्फ क्रूर होता है
सिर्फ क्रूर होता है..।
पं. सुरेश नीरव.

6 comments:

VARUN ROY said...

सदके जावाँ गुरुदेव. क्या बात कही है आपने. जबरदस्त.
वरुण राय.

Unknown said...

wah panditjee.... kya kattaksh kiya hai. vandan apka.....

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आपका हार्दिक धन्यवाद जो आपने मेरी बात को काव्य में ढाल दिया....

Anonymous said...

पंडित जी,

चरण वंदन,
आपकी इस लाजवाब पंक्तियों के लिए सहस्र बधाई.
अद्भूत है.

अबरार अहमद said...

बडे भइया प्रमाम। बिल्कुल सही कहा आपने।

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

bade bhai,
charan sparsh,
Apradh aur apradhi done ke manovigyan mein Kafhi farq hai. Par pedit paksh ka to puri duniya mein ek sa hi hal hai.Phir woh Bharat ho ya afaganisthan.