कालिया अविनाश और चिलांडु इरफान फिर मैदाने-जंग में हैं। लंबे समय बाद इन दोनों को फिर मौका मिला है। भई, जुटे रहो, लिखे रहो, पेलो रहो। मैं जेल चला जाऊं, नौकरी से निकाल दिया जाऊं, फांसी पर लटका दिया जाऊं, भीख मांगता फिरूं.....लेकिन तुम लोग मजे से रहना, खुश रहना, प्रसन्न रहना, अपनी गोटियां फिट करते रहने, अपनी कुंठाओं के पहाड़ और ऊंचे करते रहना।
यही दोनों अनाम नाम से और बाद में खुद के नाम से मेरे बारे में कई कई चीजें लिखकर प्रचारित प्रसारित कर रहे हैं।
इनके उकसावे में बिना आए मैं कहना चाहता हूं कि जो कुछ मामला इन लोगों ने नाम या अनाम या फर्जी नाम से जगह जगह कमेंट के रूप में लिखा है और बाद में पोस्ट के रूप में लिखा है, इस पर मैं अपनी तरफ से कुछ न कहूंगा क्योंकि इस मामले में जितने भी पक्ष हैं, वो सब मेरे लोग हैं, अपने लोग हैं, अपने घर के हैं। मैं इनसे खुद को कभी अलग करके नहीं देखता था, न देखता हूं। मैं सच बोलूं या झूठ, सफाई दूं या बुराई करूं.....जो भी करूंगा, कीचड़ अपनों पर ही पड़ेगा। अच्छा यही है कि सारा कीचड़ और सारी गंदगी मेरे पर ही पड़े।
मैं घोषित तौर पर सबसे बड़ा बुरा आदमी हूं। इसलिए एक और बुराईः मैं इस हलाहल को भी स्वीकार करता हूं और इसके दुष्परिणाम झेलने की हिम्मत रखता हूं।
पर तेरा क्या होगा रे कालिया......
तेरा क्या होगा रे चिलांडु......
कालिया अविनाश और चिलांडु इरफान तभी से खार खाए बैठे हैं जब इनके भड़ास पर पाबंदी अभियान का हमने करारा जवाब दिया था। इनके बाद हम लोगों ने इनकी कायदे से फाड़ी थी, उसके बाद ये हें हें हें करते हुए चुप थे। अब फिर इन्हें बोलने का मौका मिला है। बोलो भाई, खूब बोलो। क्योंकि तुम जैसे दोगले न थे, न हुए और न होंगे।
पटना में रंगे हाथ एक घर में पकड़े जाने पर कालिया की धुनाई हुई थी, बाद में रिरियाते-गिड़गिड़ाते हुए माफी मांगकर छूटा, फिर भागा, वो शायद किस्सा भूल गया। पर उसके चाहने वालों ने मेरे पास किस्सों का अंबार लगा दिया है, पिछली बार के पंगे में ही। निकालता हूं एक एक करके सारे फसाने। लगता है पिछली बार से जी नहीं भरा। कालिया, पहले तुम अपनी पारी खेल लो, फिर जरा जेल वेल होकर आने के बाद मैं बैटिंग संभालूंगा। तब तक तुम मजे लेते रहो। तब तक तुम खूब बोल ले, खूब लिख ले, खूब नाटक फैला ले।
अभी रंजन का फोन आया था कि वो कालिया की हरकतों से दंग हैं, उन्होंने उससे कोई बात नहीं कही और उस कालिया ने उनके नाम से सारी पोस्ट बना दी। रंजन ने कहा कि आप मेरे नाम से भड़ास में खंडन छाप दो। मैंने रंजन से कहा, कोई बात नहीं भाई, जब दिन खराब होते हैं तो कुत्ते भी टांग उठाकर पेशाब कर देते हैं। मैं यह सब झेलते झेलते पक्का हो चुका हूं। ऐसे ही नहीं दिल्ली आया, और आकर भी अभी टिका हुआ हूं।
तुम साले कालिया और चिलांडु इरफान, दो पैसे की नौकरी के लिए दिन भर गांड़ मराते फिरते हो, अपने अपने संस्थानों में। तेल चपोड़ते फिरते हो अपने बासों को। तो तुम लोग काहे निकाले जाओगे। कालिया किस कदर तेल चपोड़ता रहा है प्रभात खबर में अपने बासेज को, किसे नहीं पता। और जब वहां से निकला तो जिनको तेल चपोड़ता रहा, उनकी बुराई करने लगा।
इस आदमी के दोगलेपन की हद नहीं है। शक्ल से तो साला काला है ही, अक्ल से और दिल से भी जबरदस्त रूप से काला है। ऐसा संगम कम ही देखने को मिलेगा जिसमें सारा रंग सिर्फ काला ही काला हो। जियो मेरे कोयला के खदान....।
तुमने तो कालिया जाने कबके रिश्ते खत्म कर लिये थे पर वो तो मैं ही था जो बुरे से बुरे आदमी को भी प्यार करने लगता हूं क्योंकि स्वभाव में ही नहीं है दिल में मैल रखना। लेकिन तुमने जो कुछ किया है वो मेरे लिए अनपेक्षित नहीं है। तुम तो जाने कबके घोषित किए गए भेड़िए हो जो हमेशा शिकार के लिए उचित अवसर की तलाश में रहता है। इसी के चलते आज तुम मीडिया जगत के सबसे कुत्ते टाइप, मक्कार टाइप, लोमड़ा टाइप, भेड़िया टाइप आदमी के रूप में जाने जाते हो जिसके जुबान और दिल और दिमाग में हमेशा अलग अलग चीजें होती हैं।
वो चिलांडु भाई, गाना गा गा कर रोटी चलाते हैं और रोज रेडियो में नई नौकरी और बड़ी नौकरी पाने के लिए जुगाड़ तलाशते फिरते हैं। कई बार तो भाई ने मुझसे खुद कहा, जागरण के रेडियो में बात करने के लिए। जब कालिया बोलता है तो ये भी पीछे पीछे पें पें करने लगते हैं। वैसे तो ये पूरा समय अपनी गृहस्थी चलाने में लगाते हैं लेकिन कोई इनसे मिल ले या बतिया ले तो ये दुनिया के सबसे बड़े बौद्धिक बन जाते हैं। खामखा के बौद्धिक, कुंठाग्रस्त बौद्धिक, बवासीर वाला बौद्धिक.....। थू है तुम पर चिलांडु के चिलांडु ही रहोगे क्योंकि इससे ज्यादा औकात ही नहीं रही तुम्हारी।
तो, ये साले दोनों नीच क्या कहेंगे, पहले अपने अंदर का कचरा तो साफ कर लें, फिर दूसरों को आइना दिखाएं।
और हां, सिर्फ एफआईआर नंबर बताने और थाने का नाम बताने से ही काम नहीं चलने वाला। अब इस मामले को टीवी पर भी दिखवा दो, मुझे तिहाड़ भी भिजवा दो। मैं इन दोनों हालातों के लिए तैयार बैठा हूं। ये आइडिया शायद तुम लोगों के दिमाग में न आया हो, मैं दे रहा हूं। उससे मेरी बदनामी अखिल भारतीय स्तर पर हो जाएगी और तुम लोगों की इच्छा भी पूरी हो जाएगी। तो लग जाओ तुम दोनों इस मिशन में, मैं अपने घर पर ही हूं, कहीं गया नहीं हूं।
तुम लोग मुझे जितना कत्ल करोगे,
मैं उतनी उतनी बार कत्ल होने के वास्ते
फिर जी जाऊंगा
गारंटी है कि
लाश नहीं बनूंगा, तेरे बूचड़खाने में
कुछ बातें भड़ासी साथियों के लिए
दोस्तों, कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं कि उसमें कुछ भी बोलना उचित नहीं होता। ये आपके उपर है आप जो भी मान लो। ज़िंदगी किसी एक घटना या दुर्घटना या हादसे या साजिश या झूठ या सच के धधक जाने भर से नहीं ठहर जाती। जीना तो है ही। बड़े-बड़े जख्म समय के मरहम से भर जाते हैं, ये दिन भी बीत जाएंगे। हां, हर घटना-दुर्घटना से कई सबक मिलते हैं, जो उसे न सीखे वो निरा मूर्ख है। मैं भी शायद ये मूर्खता न करूं।
आप सभी साथियों का दिल से आभार, जो प्यार करते हैं, और उनका भी आभार, जो नफरत करते हैं।
एक सूचना की पुष्टि करें
चलते चलते एक चीज और कहनी थी कि एक साथी ने अभी मेल किया है जिसमें लिखा है कि...
यशवंत जी को प्रणाम
अभी जानकारी मिली है कि भोपाल से राजस्थान पत्रिका का अख़लांबार लांच हो गया है. जानकारी की पुष्टी भड़ासी भाइयों से करवा लें. मुझे पोस्ट लिखना नहीं आती इसलिए मेल लिख रही हूं.
अगर आपमें से कोई इस खबर की पुष्टि कर दे तो बाकी हिंदी पत्रकारों तक भी यह खबर पहुंच जाएगी।
और हां,
http://www.bhadas4media.com/ कैसा लगा, जो भड़ास का बच्चा है, अपनी राय जरूर दें। डा. रूपेश जी को शुक्रिया जिन्होंने भड़ास के बच्चे के पैदा होने पर बिलकुल खुशी के मूड में हैं और पार्टी सार्टी करने की सोच रहे हैं।
जय भड़ास
यशवंत
25.5.08
कालिया अविनाश और चिलांडु इरफान के दिन फिर आए.....
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6 comments:
दादा,एक ही उपाय है कि इन दोनो को पकड़ कर अगर पहले ही बधिया कर दिया होता तो ये साले आज हमें अपनी नुन्नू न दिखाने का साहस करते लेकिन आपने अपना बड़प्पन दिखा कर हम सबको रोक दिया था लेकिन अब बस बहुत हो गया,चलो भड़ासियों इन दोनो सुअरों को इनकी औकात बताएं...
जय जय भड़ास
यशवंत जी,सही किया आपने अपनी बात रखकर। आपकी साफगोई और साहस प्रशंसनीय है। आप का कुछ न कहना ही कह जाता है कि आपके साथ जो कुछ हो रहा है वो एक बड़ी साजिश का हिस्सा है। आप को झुकने की जरूरत नहीं है। ये अविनाश का काम तो हमेशा ही दूसरों को गरियाने और नीचा दिखाने का रहा है। उसे दर्द इस बात का है कि भड़ास इतना बड़ा ब्लाग कैसे हो गया। असल मुद्दा यही है कि वो आपको हर कीमत पर नीचा दिखाना चाहता है।
राकेश
दादा,
सबसे पहले तो हमारे नए संस्करण के लिए आपको ढेरक बधाई संग ही हमारे पोस्टों की उत्तरोतर बढ़ती संख्या पर तमाम भडासी को लख लख बधाई.
आपके इस नवीन प्रकरण से जो बात सामने आती है वो स्पष्ट इशारा करती है की ब्लोग के ये ठुके हुए मठाधीश अपने नाश को किस कदर पचा नहीं पा रहे हैं. आज जब भडास की तरक्की के साथ ही हमारा ब्लोग हिंदी ब्लोग का पर्याय बन चूका है ये इन से हजम नहीं हो पा रहा है.
वैसे तमाम प्रकरण ही संदेहास्पद है. कहने को पत्रकारों की टोली ने जिस प्रकार का ताना बना बुना है वो कहता है की अपनी स्टोरी की तरह ही एक कथा निर्वाण कर दी. टी आर पी की लड़ाई में ठुकने के बाद ब्लोग में भी ठुके और यहाँ भी वो ही हथकंडा. टॉप ब्लोगर के खिलाफ रची गयी साजिश जिसके सारे पहलू ही संदेहास्पद हैं.थाने और ऍफ़ आई आर तो हम देखेंगे ही मगर ये गए कहाँ की बस केस दर्ज और ख़तम. वैसे भी हम जिस मुकाम पर आ गए हैं इन चिल्ल्हारों से भी निबट लेंगे और इन छोटे मोटे गुर्गे की गैंग हलाक होती रहेगी.
जय जय भडास
जय जय भडास
भड़ास के बच्चे के लिये बधाई,
रही बात मामले की तो वो अपने पल्ले नहीं पड़ी. और हां पत्रिका राजस्थान से शुरू हो गई है और दो दिन उसे हो गए है पब्लिश होते हुए. पत्रिका ने ज्यादातर नियुक्तियां कर ली हैं. नगरीय निकाय या इस जैसी बीट के लिये अभी पद शायद खाली है. प्रादेशिक डेस्क भी सबसे पहले भर ली गई थी. अब पत्रिका जिला स्तर पर अपने संबाददाताओं की नियुक्ति में लगी है.
-रमाशंकर शर्मा
भाई,
अविनाश जी के बारे में हमारे पास भी दो जानकारियां हैं। एक ये कि ये महोदय आज से करीब छह साल पहले भी दिल्ली आए थे। प्रभातखबर के संपादक हरिवंश जी के ओएसडी और स्टेनोग्राफर के तौर पर। तब उनका काम चंद्रशेखर की पचहत्तरवीं वर्षगांठ पर किताबें निकालने में मदद करनी थी। उस दौरान उन पर पैसों की हेराफेरी का आरोप लगा और प्रभात खबर से नौकरी जाती रही। हालांकि बाद में जुगाड़ से फिर नौकरी पा लिए। जब चंद्रशेखर का काम ठप हुआ तो एक गांधीवादी बुद्धिजीवी की सिफारिश पर उन्हें पानीवाले राजेंद्र भाई के पास प्रकाशन काम का काम मिला। भैया अलवर पहुंचे और पैसे की हेराफेरी के बाद वहां से भी रफूचक्कर हो लिए। अब एनडीटीवी में सबको ब्लॉगिंग सिखाते हैं और मजे से नौकरी कर रहे हैं।
सुनिए, मैं भी कुछ भड़ास निकालना चाहता हूं। अविनाश से पीड़ित रहा हूं, पटना और रांची में। इसकी इतनी कारस्तानियां हैं कि मानवता शर्मसार हो जाए। पर इसे लगता है कि वो अब दिल्ली चला आया और एनडीटीवी जैसे संस्थान में नौकरी कर रहा है तो सारे पाप धुल जाएंगे पर ऐसा नहीं होगा। अब जबकि बात चली ही है तो बता दूं कि पटना में इस अविनाश ने रात में एक घर में घुसकर एक लड़की, जिससे वो प्रेम करता था, उसके साथ जबरदस्ती करने लगा। लड़की चिल्लाई तो घरवाले जग गए और ये महाशय फिर इतने पिटे कि पूछो मत। बाद में इन्होंने हाथ पैर जोड़कर और आइंदा से इधर मुंह न करने की कसम खाकर वहां से बचकर निकले। ऐसे ही ढेर सारे किस्से हैं जिन्हें अगर लिखने लगा जाए तो कई पन्ने रंग जाएंगे। ये सही में रंगा सियार है जो अब देश का सबसे बड़ा ब्लागिंग मठाधीश और सबसे बड़ा बुद्धिजीवी बनने के चक्कर में है। इस अविनाश को उखाड़ फेंकना वक्त की मांग है।
........, पटना
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