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23.5.08

जुर्म

आज पं० जी की रचना पढी जुर्म को लेकर, उसमें उन्होने जुर्म और क्रूरता के बारे में

एक कविता के माध्यम से अपने विचार रखे हैं, जी में आया कि टिप्पणी कर दूं एक कविता

ही लिख कर। लेकिन फ़िर सोचा यार पहले कभी तुमने हिन्दी में कविता नही लिखी तो

क्यों ना एक नयी पोस्ट ही छाप दी जाये। पता नही क्या बला बत्तल जोड़ दिया है, लेकिन

ये भी आज समाज में घट रही नयी नयी घटनाओं को परिलक्षित करती है। पढें और बतायें

कि मेरी पहली हिन्दी तुकबन्दी, या कविता कैसी रही।

पं०सुरेश नीरव जी, रियाज़ भाई, रुपेश जी, यशवंत भाई, रजनीश, रक्षंदा जी, कमला जी, अबरार भाई आदि सभी आदरणीय सदस्यों से अनुरोध है कि, और अच्छा लिखने के लिए अपने सुझाव मुझे अवश्य बतायें।

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जुर्म!!


जुर्म तो अब बन चुका है फ़ितरत ही इंसान की।

रिश्ते नाते, बाप मां, बेटा ना बेटी आपकी॥

मां को काटें मिल के बेटे बोले मुक्ति देगी मां।

मां भी क्यों कर चुप रहे, उसने भी काटा बाप को॥

बेटी ने सबको दे के ज़हरीला नशा कटवा दिया॥

बोली आशिक के सफ़र में हमसफ़र बन जाउंगी।

आशिक भी क्यो ना हमसफ़र हो, इस गली गुलज़ार में॥

उसने भी कर दी कलम गर्दन महबूबा के यार की।

कब तलक सहते रहोगे इस तपिश को आज तुम।

वक्त रहते बोल दे, अब ना सहा जाये ये सब।

बोल दे अब बोल दे तू आज हल्ला बोल दे॥

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अंकित भइया,अब कोबरा बन कर कविताओं का जहर उगल रहे हो, आपने तो यार अब तक अपने जहर के दांत दिखाए ही नहीं थे,गुरू निकले यार... अब एक काम करो बुराइयों के कुत्तों को जरा अपने जहरीले काव्यदंतों से कसकर काटो कि साले मर ही जाएं... बेकार ही जहर मत उगलना मेरे भाई बड़ा कीमती होता है ये जहर....

अबरार अहमद said...

सही कहा रूपेश भाई। अंकित भाई भी निकल आए कवि। तो भईया लिखो जरा जम कर।

Unknown said...

अंकित भाई,अपकी रचना अच्छी लगी,प्रयास करते रहिए,आपमें संभावनाएं है,एक अच्छे कवि बनने की। मेरी शुभकामनाएं। और बधाई।
पं. सुरेश नीरव

Anonymous said...

अंकित भाई,
बढ़िया है बस लिखते रहिये.