Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

28.5.08

फिर तेरी कहानी याद आई उर्फ कालिया है हिप्पोक्रेट तीन चौथाई


घटिया, स्वार्थलोलुप, सनसनीप्रदानक
कुकृत्य करना कब बंद करोगे?
हृदयेंद्र प्रताप सिंह ने जो निजी पत्र व्यवहार कालिया से किया, उसे कालिया ने अपनी पुरानी आदत के अनुसार तड़ाक से सार्वजनिक कर दिया। और पुरानी आदत के ही अनुरूप उसमें से केवल वे ही अंश प्रकाशित किए जो उसके लिहाज से फिट थे, बाकी डिलीट कर दिया। बाद में हृदयेंद्र ने उन अंशों को भड़ास पर प्रकाशित किया। आखिर कालिया यह घटिया, स्वार्थलोलुप, सनसनीप्रदानक कुकृत्य करना कब बंद करेगा?


तुम रंगभेद का मुकदमा करो,
हम तो मानहानि का करेंगे ही
किसी भी व्यक्ति, बुद्धिजीवी, सेलीब्रटी का मीडिया ट्रायल किए जाने की तरह ही कालिया ने ब्लाग ट्रायल की परंपरा शरू कर रखी है, बहुत पहले से। एक एक कर इसने अपने सारे मित्रों को इस ब्लाग ट्रायल के दायरे में घसीटा और उन्हें कथित तौर पर नंगा कर खुद को सबसे लायक, सबसे सक्षम, सबसे बड़ा क्रांतिकारी बनाने की कोशिश की। पर हुआ हर बार उल्टा। लोगों ने इसको जमकर लात लगाई। पर कुक्कुर कभी मानता है, सो अपनी हरकत जारी रखे हुए है। अब इसने खुद के द्वारा (कठपिंगल) एक संदेश कमेंट के रूप में भेजा है कि कालिया शब्द हटाओ वरना भड़ास पर रंगभेद का मुकदमा होगा। तो भइया, करो, मुकदमा। तुम्हारे खिलाफ भी मानहानि का मुकदमा चलाने की तैयारी हो रही है, ये सिर्फ मैं बता रहा हूं तुमको, चुपके से। अबकी तुम्हें न छोड़ेंगे सनम।


ऐ पाखंडी प्रगतिशील, पत्नी
की नौकरी क्यों छुड़ा
दी और घर बिठा दिया?
प्रगतिशीलता का ढोंग रचने वाले इस पाखंडी से एक सवाल है कि उसने क्यों नौकरी कर रही अपनी पत्नी को नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया और घर पर पूरी तरह बिठाने की जिद पूरी की। आखिर उसे क्यों नहीं यह सुहाता कि पढ़ी लिखी वो महिला नौकरी करे और आत्मनिर्भर रहे। वह क्यों उसे एक गठरी की तरह इस्तेमाल करता है। कहीं यह वही सामंती प्रवृत्ति तो नहीं जो सदियों से मर्दों में कायम रही है और आज भी चल रही है।

रात भर नौकरी दिन भर सोना,
समय मिले तो किसी की बांह मरोड़ना....
यही तुम्हारा धंधा है, और रहेगा
ब्लागिंग के लिए फुल टाइम देने और कुछ जीवन में नया करने के लिए अदम्य इच्छा रखने वाला कालिया आखिर क्यों एनडीटीवी से चिपका हुआ है। रात भर नौकरी करेगा और दिन में एक सनसनीखेज पोस्ट लिखकर ब्लागिंग का मठाधीश बना रहेगा। दोनों हाथ में लड्डू। अगर तुम्हें वाकई ब्लागिंग से प्यार और लगाव है और इस देश के लोकतंत्र, दलितों, पिछड़ों, स्त्रियों के लिए तुम करना चाहते हो तो ठोकर मारो नौकरी को और आ जाओ फुल टाइम इस पेशे में। पर मैं जानता हूं, तुम बेहद लोमड़ी टाइप चालाक आदमी हो। ऐसी कर ही नहीं सकते क्योंकि तुमने नौकरी पाने, नौकरी बचाए रखने और नौकरी बढ़ाते रहने के लिए हमेशा से इतनी कसरत, कवायद की है कि तुम्हारा ओरीजनल व्यक्तित्व खो गया है। अब तुम केवल हिप्पोक्रेट ही बने रह सकते हो। रात भर नौकरी दिन भर सोना, समय मिले तो किसी की बांह मरोड़ना....यही तुम्हारा धंधा है, और रहेगा।

खबरें अभी और भी हैं.......

जय भड़ास
यशवंत

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अरे यार कोई मुझे कलुआ के घर का पता दो मैं उसे कुछ दवाएं भेजना चाहता हूं ताकि वो सुअर से बदल तो नहीं सकता लेकिन कुछ भला सा सुअर बन जाएगा,आयुर्वेद की जै हो जो कि पशुओं पर भी समान रूप से असर करता है....

Anonymous said...

दादा,
ये कालिया वोह बेपेंदी का लोटा है जो लोगों का लोडा पकड़ पकड़ कर दिल्ली पहुंच गया. एन डी टी वी के लोडेबाजों की कृपा इस पर बनी हुई है नहीं तो ये सूअर का गुंह उठाने तक के लायक और काबिल नहीं है. इस बात को इसने अपने मेल और कमेंटों से साबित भी कर दिया है.सूअर डरा रहा है कि हग दूंगा. ससुरे हग, यहाँ के कमीने भडासी तेरा हागा तेरे मुंह में डाल देंगे.