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26.5.08

बस तू मेरी हो जा

हास्य-गजल
छोड़ बाप का डनलप गद्दा इस खटिया पर सो जा
दाग गरीबी की चादर के आकर सारे धो जा
टूटा-सा है जूता मेरा फटा हुआ है मौजा
फिर भी दिल दीवाना कहता बस तू मेरी हो जा
तू रखना उपवास प्रेम से रोजा में रख लूंगा
हूं मुंगेरी लाल मेरे सपनों में आ के खो जा
सरकारी नल-सी आंखों को आकर आज भिगो जा
मेरी टूटी हुई सुई में धागा कोई पिरो जा
मन के इस सूखे गमले में इश्क की फसलें बो जा
ढूंढ ही लेगी तू भी मुझको जैसे मैंने खो जा
लावारिस उजड़ी मजार पर एक शाम तो रो जा
डूध समझकर तू मथनी से मेरा कफन बिलो जा

नागफनी-सी पलकें तेरी आंखें हैं चिलगोजा
नीरव के पथराए दिल में जो मन करे चुभो जा।


पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
(सुश्री कमला भंडारी, रजनीश के.झा और डीयरेस्टतम डॉ.रूपेशजी को धन्यवाद,जिन्होने मेरी रचना को न केवल पढा बल्कि पसंद भी किया। )

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

महाराज,जरा हिन्दी अंग्रेजी और जौन जौन भाषाएं आती हों उनमें जरा अविनाश कलुआ और चिलांडु इरफ़ान को अपने अंदाज में जुतिया दें तो जरा यशवंत दादा के जख्म पर मरहम लग जाए। आप दिन ब दिन भयंकर होते जा रहे हैं और रचनाएं अधिक डरावनी.... हास्य अटैक से मर गया तो कत्ल आपके सिर आने वाला है...

Anonymous said...

पंडित जी प्रणाम,

"टूटा-सा है जूता मेरा फटा हुआ है मौजा"

अरे आप तो बेहतरीन हथियारों के बादशाह हो फिर विलम्ब क्योँ, अब जल्दी से अविनाश की विनाश लीला कह डालिए अपने इस जूते मौजे को इस चुतिये का सिरमौर बना दीजिये. आपका हास्य सचमुच इन बेतरतीब जीवों के जीवन को हास्य बना दे.

सुन्दर है.

जय जय भडास

Anonymous said...

ab koe kuchh bhi kahe, mai to ye hasya kavita apni kabhi na ho sakne wali premika ko bhejne ja raha hun, jinse mere prem nivedan ko na jane kitni baar thukaraya hai aur aaj pahli baar aapki es kavita ne mere jakhmo pe malhum lagaya hai....
jai ho bhadas...jai ho neerav.