हास्य गजल
मिले जहां से भी इनको उधार लेते हैं
मज़े में उम्र ये सारी गुजार लेते हैं
हमें तो समझा है मजदूर अफसरों ने सदा
सनक में आते ही हमको पुकार लेते हैं
न आयी गिनती कभी सैंकड़े के बाद इन्हें
अजीब बात है कसमें अक्सर हजार लेते हैं
कमाल के हैं खुले हैल्थ क्लब वतन में मेरे
जो पहलवानों की चमड़ी उतार लेते हैं
चबा के सूबे को नेताजी ब्रेकफास्ट करें
डिनर में पूरे वतन को डकार लेते हैं
अनावरण तो सुबह हँस के मूर्तियों का करें
परी की शाम को इज्जत उतार लेते हैं
प्रसाद भेजा जो भक्तों ने सूटकेसों में
उसी से पीढ़ियां सातों ये तार लेते हैं
पुजारी प्रेम के नीरव तमाम उम्र रहे
हमेशा गिफ्ट में यारों से प्यार लेते हैं।
पं. सुरेश नीरव
( डॉ.रूपेश श्रीवास्तव, वरुण राय,अंकित माथुर,अविश्री, रजनीश के.झा,अबरार अहमद, और बंधु अनिल भारद्वाज आपकी आत्मीय टिप्पणी के लिए शुक्रिया,धन्यवाद। )
24.5.08
गिफ्ट में यारों से प्यार लेते हैं।
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