नारी पूजनीय है इस बात से किधर इनकार है पर एक बात जो हमेशा से गले में फंस जाती है वो ये कि विचार किसने दिया है स्त्री ने या पुरुष ने? क्या नारियां अपने आपको निजी तौर पर सिर्फ़ इस लिये पूजनीय मानती हैं कि वे मानवों के समाज के लैंगिक विभाजन में नर वर्ग से भिन्न हैं मादा हैं..... अगर वैचारिकता नर या मादा में बंटी हो तो फिर हार्मोन्स का मन पर प्रभाव क्यों स्वीकारा जाता है? जिन राष्ट्रों ने स्त्री-पुरुष को बराबरी का दर्जा दे रखा है वे इस बात की गहराई को समझते हैं। हाल ही में मुंबई में हुई एक हत्या की घटना ने नारी की बेचारी होने के विरोध में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किया है जैसे कि लारेना बाबिट नाम की महिला ने किया था एक ऐसा काम कि उसके काम के आधार पर पुरुष के लिंगोच्छेदन यानि जड़ से लिंग काट देने को ही अंग्रेजी भाषा में शब्द के तौर पर स्वीकार लिया-"बाबिटाइजेशन" ।
मुंबई की घटना में भी मारिया सुशायरा नामकी एक अभिनेत्री ने ये सिद्ध किया कि क्रूरता के लिये स्त्री होना या पुरुष होना सर्वथा असंबद्ध विषय है। मारिया ने सिनर्जी एडलैब के क्रिएटिव हैड नीरज ग्रोवर की हत्या करे जाने के बाद अपने एक पुरुष मित्र मैथ्यू के साथ बैठ कर नीरज की लाश के बड़े धैर्यपूर्वक एक दो या दस नहीं पूरे तीन सौ टुकड़े करे और बाकायदा उन्हें धो-धोकर पैक किया ताकि खून जैसी चीज से मुक्ति पाई जा सके। क्या कोई कसाई आपने कीमा बनाते देखा है जो बड़े ही संतोष से बकरे की लाश के टुकड़ों को बारीक करके कीमा बनाता है और पैक करके ग्राहक को दे देता है। इस कार्य में कसाई को अपराध बोध नहीं होता क्योंकि वह मानता है कि ये कार्य वह अपने परिवार के पेट के लिये कर रहा है लेकिन आप मारिया के बारे में क्या कहेंगे? हो सकता है कि नारीवादी लोग दुहाई देने लगें कि एक दुष्टा के कारण सारी नारी जाति को बदनाम नहीं किया जा सकता तो ये बदनामी का प्रयास नारियों पर कीचड़ उछालने का प्रयत्न नहीं बल्कि एक गहरे मुद्दे की ओर आप सब का ध्यान आकर्षित कराने का प्रयास है कि अपराधिक सोच का आधार जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, वर्ण(रंग) और लिंग नहीं होते बल्कि इस सोच का आधार कुछ अलग ही होता है।
23.5.08
मादा(औरत) होने का अर्थ दयालु होना जरूरी नहीं है....
Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava)
Labels: नारी, नीरज ग्रोवर, पुरुष, बाबिटाइजेशन, महिला, मारिया सुशायरा, हत्याकांड
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2 comments:
आपने बिल्कुल सही कहा रूपेश भाई. अपराधिक सोच के लिए लिंग जाति धर्म के कोई मायने नहीं हैं. और औरत बेचारी तो कभी नहीं थी. उसे तो हम मर्दों ने अपनी अपने स्वार्थ के लिए जबरन बेचारी बना दिया था जिससे अब वो धीरे धीरे निकलने की कोशिश कर रही हैं.
वरुण राय.
सही कहा रूपेश भाई। उदाहरण तमाम हैं।
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