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15.5.08

मां तुम कहां हो ?

मैं मुंबई में रहती थी
नाना नानी की याद बहुत सताती थी
मामा मामी भी याद बहुत आते थे
उनका दुलार उनका प्यार सब मिस कलती थी
लेकिन क्या कलूं ... पढ़ाई जो कलनी थी ...
कुछ बनना था... नाना को दिखाना था...
सो मुंबई में ही लहना था
गर्मी की छुट्टियों में पढ़ाई से थोली राहत मिली
नाना नानी की फिल याद आई
मौसा- मौसी से भी मिलना था
पापा से विनती की चलो ननिहाल
लेकिन, पापा तो बस काम में लगे लहे...
मम्मी को भी अपनी मम्मी से मिलना था
सो हम दोनों चल दिए ननिहाल... मेला ननिहाल
छुक छुक कलती ट्रेन पहुंच गई जयपुर
स्टेशन पर नाना की पकी दाढ़ी को खींचा
मामा को चपत लगाई...
घर में खूब धूम मचाया...
नानी से सुनी कहानी...
आज खुश थी...
दोनों मौसियां और मां तैयार थी
निकल पली बाजाल
वहां खलीदा खूब खिलौने और खलीदे कपड़े
नाना के लिए धोती ली और नानी के लिए साड़ी
जयपुर का ये बाजाल मुंबई से कितना अलग था
मां से की जिद जल्दी चलो नाना को धोती देनी है
उनकी पकी मूंछे भी लंगनी है
मौसी ने लिक्शा लिया....

और फिर ???????? कुछ याद नहीं...
आंखें खुली तो... तो पास में नर्स थी..
मां तुम कहां हो आओ न... मौसी तुम भी आओ न
नाना को धोती पहनानी है.... उनकी पकी मूंछें भी लंगनी है

(सुबीना मुंबई से नाना नानी के घर जयपुर आई थी... शहर में मम्मी और मौसियों के साथ खरीदारी
करने निकली थी। पर मंगलवार की शाम आतंक का जो तांडव जयपुर में हुआ उसके बाद सुबाना की दुनिया बदल गई. माँ का आंचल छिन गया, मौसियां सदा के लिए सो गईं. अब सुबीना भी जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है)

3 comments:

Anonymous said...

कौशल भाई,
दर्द को समेट कर जो शब्दों का आकार आपने दिया है वाकई बेहतरीन है. सिर्फ और सिर्फ सिहरन सी होती है जब छोटी सी सुबीना के बारे में सोचता हूँ. ईश्वर हमारी गुडिया को हिम्मत दे.

Anonymous said...

YADON KO BAHUT ACHI TARAH SANWARA HAI, BADHAI

VARUN ROY said...

कौशल भाई,
आपकी कविता पत्थर को भी रोने को मजबूर कर सकती है. काश, मौत के इन सौदागरों पर इसका कोई असर होता!
वरुण राय