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5.5.08

दोस्त

सच है जब वो आयें तो किसी की जरुरत नहीं । उनसे हसींन कोई जीच नहीं.
पर श्रंगार को उनके फूलों की जरूरत पड़ ही गई।
पर निहारने को उनको सितारों की जरुरत पड़ ही गई।
स्वागत में भँवरे उनके गीत गुनगना ही गये।
आखों में उनके कई सागर लहरा ही गये।
तपिस ने उनकी सूरज का अहसास करा ही दिया।
प्यार ने उनके चाँदनी का से रुबरु करा ही दिया।
वो है ही इतने खास कि उनकी मौजदगी नें ही
इन सबका एहसास करा ही दिया।
वो वो है जो खास है जिनके साथ विश्वास है
वो हैं प्रीतम, दोस्त और आप है।
लिखते रहै हमें आप चाहे वो पत्र ईमेल या स्क्रेप हो
हम यहाँ हो आप वहाँ हो कोई भी कही भी हो।

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

का भइया मिसिर जी,ई का लिक्खे हैं आप?
उनसे हसींन कोई जीच नहीं......
का कौनो "एलियन" का जिकिर कर रहे हैं? ई "जीच" का होत है? का बिरहस्पति ग्रह का प्रानी है?

Anonymous said...

का रूपेश भैया आप शब्दों में पड़े जा रहे हैं, अरे भाव देखिये अजीत भाई कहाँ कहाँ जा रहे हैं, तभिये तो कहते हैं कि जहाँ ना जाए रवि वहाँ जाये कवि.

जय जय भडास

अबरार अहमद said...

बहुत अच्छा। बधाई।