Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

3.5.08

माँ की ममता , ओरत की ताक़त या कमजोरी?


कुछ दिन पहले बाबा के एक दोस्त कोलकाता से आए थे.सेन अंकल पेशे से मनोचिकित्सक हैं.जब हम कोलकाता में थे तो अक्सर उन से मिलना होता था बाबा का,लेकिन जब से हम ने वो शहर छोड़ा ,बस कभी कभार फ़ोन पर ही बात होती हैं.बाबा अक्सर उन्हें याद करते रहते थे.दोस्ती का रिश्ता उधर भी उतना ही गहरा था तभी तो इतनी बिज़ी लाईफ से वक़्त निकाल कर वो उनसे मिलने यहाँ तक चले आए.
अब ज़ाहिर सी बात है कि जब वो उनके लिए यहाँ तक आगये तो हमारे बाबा का सारा समय उन्हीं के नाम हो गया था.अपने बाबा से बस एक यही शिकायत रहती है मुझे,जब भी उनके दोस्त मिल जाते हैं तो वो अपनी इस दोस्त को पूरी तरह भूल जाते हैं.
बहरहाल इस बार मुझे उन से उतनी शिकायत तो नही थी क्योंकि एक तो उनके दोस्त इतनी दूर से सिर्फ़ उन से मिलने आए थे और दूसरे डा.सेन अपने आप में इतने अच्छे इंसान हैं कि उन से मिलकर बन्दा उनकी ज़हानत और अखलाक(व्यवहार ) से मुतास्सिर(प्रभावित)हुए बिना नही रह सकता.
उनके बारे में डिटेल से लिखने को तो बहुत कुछ है लेकिन एक तो पढने वालों के लिए काफी लंबा हो जाएगा,दूसरे उस टॉपिक के लिए जगह कम पड़ जायेगी जिसने मुझे आज लिखने पर मजबूर किया है.
ये इत्तेफाक ही था कि जब वो दोनों(डा.सेन और बाबा) ये बातें कर बाहर बरामदे में कर रहे थे तो मैं ड्राइंग रूम में पढ़ रही थी.उन दोनों की आवाजें अन्दर तक आरही थीं,बातचीत का टॉपिक माँ और उसकी ममता थी. टॉपिक ने मुझे attract किया तो जाने कैसे मैं मतवाज्जाह हो गई. हो सकता है बहुत से लोगों को ऐसा लगे कि ये ये manners के खिलाफ है लेकिन कभी कभी ऐसा हो जाता है.
डा.सेन इस बात पर बड़ी मजबूती से कायम थे कि इस दुनिया में खुदा की खुदाई से तो बन्दा एक बार मुनकिर(नास्तिक)हो सकता है लेकिन माँ की ममता से नही.
सदियाँ बीत जाएं,दुनिया कितनी ही करवटें बदल डाले लेकिन माँ की ममता उतनी ही खालिस(शुद्ध)और बेलौस(निस्वार्थ)आज भी है जैसी सदियों पहले थी और ऐसी हजारों सदियों के बाद भी वैसी ही रहेगी.
बातचीत और आगे बढ़ती रही.इन्हीं बातों में उनहोंने अपना एक केस बाबा को सुनाया.जिसे सुनकर मैं अन्दर तक लरज़ गई.उनके इस केस ने मुझ पर कैसे असरात छोडे ये मैं नही लिखूंगी, क्योंकि ख़ुद अभी तक मैं ही नही जानती की मैं क्या सोच रही हूँ.

केस
ये केस एक ऐसी लड़की का था जिसे उसके बाप और भाइयों से ज़मीनी चली आरही दुश्मनी के कारण उनके दुश्मनों ने अगवा(अपहरण)कर लिया था. हमेशा से ऐसा होता आया है,आपसी दुश्मनियों का खामियाजा ओरत को भुगतना पड़ा है,क्योंकि बुजदिल मर्दों के लिए हमेशा से ओरत की जात आसान टारगेट रही है.
बहरहाल लगभग बीस दिन तक वो उसका गैंग रेप करते रहे और फिर अधमरी हालत में एक दिन उसके घर के दरवाज़े पर फ़ेंक गए.
भाई educated थे और उन्हें अपनी बहन से मुहब्बत भी थी,वरना आम हालात में ऐसी हालत के बाद नाम--निहाद (तथाकथित)इज्ज़त्दार खानदान अपनी बहनों और बेटियों को अपनाने तक से इनकार कर देते हैं .
लड़की लगभग पागल हो गई थी.कई बार उस ने खुदकशी की नाकाम कोशिश भी की.तब उसका एक भाई उसे डा.सेन के पास लेकर आया था.
डा.सेन उसका इलाज करते रहे और काफी हद तक कामयाब भी रहे थे लेकिन तभी पता चला कि वो लड़की गर्भवती है. घर वालों ने बच्चा अबार्ट कराना चाहा लेकिन doctors ने उसकी कमज़ोर सेहत को देखते हुए अबार्शन से साफ इंकार कर दिया.उनका एक राय में कहना था कि अबार्शन की सूरत में उसकी जान को पूरा खतरा है.
लेकिन वो लड़की इस बात के लिए बिल्कुल तैयार नही थी.बड़े ही पेचीदा हालात थे. वो लड़की जो ज़िंदगी की तरफ़ बड़ी मुश्किल से लौट रही थी,एक बार फिर पागल सी हो गई. कई बार उसने ख़ुद को और होने वाले बच्चे को नुकसान पहुँचाने की कोशिश की.
डा.सेन को उसे अपने अस्पताल में admit करना पड़ा. बार बार उसके साथ सिटिंग लेनी पड़ी.
भाइयों ने अंत में बड़ी मुश्किल से ये फ़ैसला किया कि बच्चे को जन्म लेने के बाद किसी यतीम खाने में दे दिया जाएगा.
डा.सेन को कुछ महीने उसे सँभालने में बड़ी मुश्किल हुयी लेकिन धीरे धीरे वो हैरत अन्गेज़ तौर पर संभलती चली गई.
उसने ख़ुद को या बच्चे को नुकसान पहुंचाने वाली हरकतें करना बंद कर दी थीं.
अपनी डाईट भी वो ठीक से लेने लगी थी.
डा.सेन हैरान तो थे लेकिन जल्दी ही उनकी ये हैरत तशवीश में बदल गई.
हुआ यूँ कि एक दिन उस लड़की ने डा. से अपनी delivery की डेट पूँछी .डा. ने मुस्कुराते हुए उसे डेट बताई और उसका मन बहलाने के लिए बच्चे के बारे में बातें करने लगे. उन्होंने देखा कि लड़की का चेहरा किसी पत्थर की तरह सख्त हो गया था. आँखें एक शून्य में स्थिर हो गई थीं ऐसा लग रहा था जैसे वो कोई भयानक मंज़र देख रही हो.
फिर उसके होंठ धीरे धीरे हिलने लगे थे. ''ये उन्हीं दरिंदों का बच्चा है ना डॉक्टर ,जिन्होंने मुझे दिन रात नोचा खसोटा है,मैं चीखती रही ,तड़पती रही और वो रात रात भर मुझे भेडियों की तरह नोचते रहे.''अब तुम देखना ,मैं उनके बच्चे के साथ क्या सुलूक करती हूँ.बस एक बार इसे जन्म लेने दो, मैं इसके जिस्म का एक-एक रेशा अपने नाखूनों से अलग करुँगी.बस इसे जन्म लेने दो'' वो बोले जारही थी ,यूँ जैसे अपने आप में ना हो.
डा. सेन ने ऐसी खतरनाक सिच्वेशन का तसव्वर भी नही किया था.
उन्होंने अस्पताल के दूसरे डॉक्टरों से मशविरा किया.सभी इस दर्दनाक सूरत--हाल के आगे बेबस थे.
अंत में सब की राय यही थी कि सीज़र के ज़रिये delivery कराई जाए और बच्चे को माँ से हमेशा के लिए दूर कर दिया जाए.
आखिरकार ये सब्र आजमा वक़्त गुज़रा और ओपरेशन से लड़की ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया.
असली मुश्किल तब आई जब लड़की को होश आया.उसने चीख-चीख कर आसमान सर पर उठा लिया.उसकी एक ही रट थी कि बच्चा उसे दिया जाए वरना वो अपनी जान ले लेगी.
डा.सेन अपनी पेशेवराना जिंदगी में इतने नर्वस कभी नही थे.
उसकी हालत के पेशे नज़र उसकी जान को पूरा खतरा था. लेकिन एक मासूम बच्चे को,उसके खतरनाक इरादों को जानने के बाद भी उसे सौंपना किसी भी लिहाज़ से ग़लत था.
अजीब सिच्वेशन थी. सब के हाथ पाँव फूले हुए थे. कई डॉक्टर ने राय दी कि उसे बच्चे के मुर्दा पैदा होने की ख़बर दी जाय.लेकिन डा.सेन जानते थे कि वो लड़की इस बात पर बिल्कुल भी यकीन नही करेगी.
और तब ---------
उन्होंने अपनी पेशेवराना ज़िंदगी का सब से बड़ा रिस्क ले लिया.
बकौल डा. सेन --- '' हाँ ,मैंने एक मासूम बच्चे की ज़िंदगी का रिस्क लिया क्योंकि मुझे तब भी माँ की ममता पर पूरा यकीन था.
'' मैंने ख़ुद अपने हाथों से उस बच्चे को उस वहशी माँ के हाथों में दिया.
उस ने जिस वहशत नाक अंदाज़ में बच्चे को झपट कर मुझ से छीना था, एक लम्हे के लिए मैं अन्दर तक लरज़ कर रह गया.
लेकिन मैंने देखा कि बच्चे को गोद में लेते ही उसकी वहशत साबुन के झाग की तरह बैठती चली गई.
वो पत्थर की मूरत की तरह देर तक रोते हुए बच्चे को देखती रही.
हम सब की तो जैसे साँसें रुकी हुयी थी.
फिर एक हैरत नाक मंज़र मेरे सामने था.
पत्थर की मूरत में हरकत हुयी थी.और फिर बेतहाशा उसने अपने बच्चे को चूमना शुरू कर दिया.
वो रोती जारही थी और उसे चूमती जारही थी.
साथ साथ कहे जारही थी.''तू मेरा बच्चा है,तू मेरे जिस्म का टुकडा है, तू सिर्फ़ मेरा है''.
इस दर्दनाक मंज़र ने मेरे साथ साथ सब को रुला दिया था.

बाबा से ये सब बताते हुए भी मैंने आख़िर में उन्हें अपनी आँखें साफ करते हुए देखा था.

कितनी देर तक तो मैं अपनी जगह से हिल भी नही पायी.
मैं रो रही थी या नही,मुझे याद नही है.
वाकई, माँ की ममता के आगे खुदाई भी झुक सकती है.माँ बनना एक ओरत के लिए दुनिया का सब से खूबसूरत अहसास है लेकिन क्या खुदा ने ममता का जज्बा देकर ओरत को और कमज़ोर नही कर दिया?
क्यों, वो किसी जज्बे के आगे इस कदर बेबस हो जाती है?
क्या उसके इसी जज्बे का फायेदा मर्दों ने उसकी कमजोरी समझ कर बार बार नही उठाया है?

6 comments:

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

क्या आपको दुनिया सिर्फ़ दो ही हिस्सों में विभाजित नजर आती है? कभी गलती से हमारे जैसे बदकिस्मत इन्सानों(लैंगिक विकलांगो) के बारे में कलम चलाने का साहस करिये या हम आपको नजर ही नहीं आते?औरत और मर्द के अलावा हमें भी ईश्वर ने बनाया है उम्मीद है कि आप राजनैतिक तरीका न अपनाते हुये इस बात से बचने की कोशिश नही करेंगी,चुप्पी नहीं साध लेंगी; जरा समाज और मजहब को टटोलिये ताकि हमारे लिये भी कुछ लिख सकें.....
जय जय भड़ास

मुनव्वर सुल्ताना Munawwar Sultana منور سلطانہ said...

मनी्षा दीदी,आप रक्षंदा आपा से क्यों ये अपेक्षा करती हैं कि वे आपकी सोच से दुनिया को देखें, सबके पास अपना चश्मा होता है और अपनी नजर.... इसलिये आप तो डाक्टर साहब के साथ ही सिर टकराइये और आप दोनो भाई बहन चश्मों की अदला-बदली का खेल खेलिये किसी से उम्मीद न करिये.....

अबरार अहमद said...

लिखते रहिए।

KAMLABHANDARI said...

rakshanda ji aapki ish post ne to aanshu hi laa diye ,jane kitni ladkiyo ki yahi kahani hogi.

Anonymous said...

रक्षंदा जी,
बेहतरीन मर्मस्पर्शी कहानी है, परन्तु मनीषा दीदी का प्रश्न अभी भी कायम है कि अगर वो बच्चा ना लड़का होता ना लड़की होती तो क्या ????????
जय जय भडास

rakhshanda said...

मनीषा दीदी,आपके सवाल ने सचमुच मुझे लाजवाब कर दिया है,इस में कोई शक नही कि सदियों से ज़ुल्म और उपेक्षाओं का शिकार ओरत रही है,,आज अगर उसकी स्थिति बेहतर हुयी है तो उसका सब से बड़ा श्रेय ख़ुद उसी को जाता है,अपने अधिकार की लड़ाई उसने ख़ुद लड़ी है और आज भी लड़ रही है...मैं मानती हूँ मनीषा दीदी कि समाज ने आपको पूरी तरह दरकिनार कर दिया,बिना ये सोचे कि इस समाज पर आपका भी उतना ही अधिकार है जितना हम सब का...लेकिन कहीं न कहीं सचाई ये भी है कि आप लोगों ने ख़ुद अपनी लड़ाई लड़ने की उतनी ज़रूरत नही समझी...और ख़ुद को वहीं तक सीमित कर लिया जहाँ पर समाज ने आपको धकेल दिया था...फिर भी कुछ किरणें हैं जो आज चमकने की कोशिश कर रही हैं...मैं आप से वादा करती हूँ...आने वाले दिनों में मेरे आर्टिकल का विषय आप भी होंगी.अब प्लीज़ थोड़ा सा मुस्कुरा दें...