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6.5.08

भुखमरी की राह पर एक और कदम - भारत



शायद यह हिन्दुस्तान की राजनीति का सबसे घिनोना उदाहरण हो शायद यह हिन्दुस्तान की सबसे बडी त्रासदी साबित हो या यह हिन्दुस्तान मे एक नयी पैसो की रेस शुरु कर दे जिसमे अब किसान भी दोडेंगे जी हा प्राप्त सूचनाओ के आधार पर हम आपको बता रहे है कि BCCI के महाराज और क़ृषि मंत्री के पद पर आसीन शरद पवार अपने विभाग के अपने सबसे ज्यादा करीब नेताओ के साथ एक करोड़ बीस लाख हेक्टेयर भूमि पर जैव ईंधन उगाने की योजना बना रहे है यह योजना ऐसे वक्त में बनाई जा रही है जब विदर्भ या यू कहे कि पूरे बंगाल मे किसान मौत के रास्ते को अपना रहे है और उनकी माँ और उनकी पत्निया अपना जिस्म बेचने को तैयार है
सवाल उठता है कि क्या पवार साह्ब को किसानो के परिवार और उनसे सज़ रही जिस्म की मन्डिया नही दिखती या फिर T-20-20 के जोश इतना ज्यादा तेज़ है कि पूरा कर्म युद्द और धर्म युद्द के मोह जाल मे वो फस गये है वही महगाई के कारण जहा पूरा देश बल्कि पूरा विश्व परेशान है तो हमारे पवार साह्ब को नये –नये तरीके सूझ रहे है शायद इसी कारण हमारे कृषिमंत्री की अगुवाई में हमारे मंत्रियों ने एक करोड़ बीस लाख हेक्टेयर भूमि पर जैव ईंधन उगाने की योजना यह योजना ऐसे वक्त में बनाई जा रही है जब देश में गेंहू, चावल, का अभाव अपने चरम सीमा पर है खेती से जुडे लोगो से जब जानना चाहा तो पता चला कि इस खेती के बाद कई सालो तक जमीन बंजर हो सकती है
इतिहास भी गवाह रहा है कि 90-91 में अनाज की प्रति व्यक्ति खपत 485 ग्राम थी जो 2005-06 में घटकर 409 ग्राम हो गयी है. सन 56-58में दालों की प्रति व्यक्ति खपत 75 ग्राम हुआ करती थी जो अब 30 ग्राम रह गयी है. इसका मतलब लोगों को खाने का उतना अनाज नहीं मिल पा रहा है जितना 50 साल पहले मिलता था. पिछले 16 साल में अनाज की पैदावार तो 1.2 प्रतिशत बढ़ी है लेकिन आबादी 1.9 प्रतिशत की दर से बढ़ी है. अनाज की कमी तो होगी ही और मंहगाई भी बढ़ेगी. लेकिन यह सब पवार जी को कौन बताये की जनाब BCCI के अलावा आप कृषिमंत्री भी है शायद उनको पता नही कि जैविक खेती से बनने वाला पेट्रोल जरुरी नही है बल्कि जरुरी दो वक़्त की रोटी है
कैसा लगा आपको यह लेख जरुर बताये – अपनी राय दे

4 comments:

Anonymous said...

भईया
आप हर साल नई कार खरीद लो, टेलीविजन का स्क्रीन दो इंच बढ़ा लो, मल्टी प्लेक्स में 150 रुपये की फिल्म देखो, बर्गर और पिट्जा खाओं

ली लीवाइस के कपड़े पहनो, एडीडास रीवाक के जूते चप्पल पर चलो.

और आपके जिन्दा रहने के लिए जरूरी गेहूं, चना और मूंग उपजाने वाला किसान अपनी फसल के लिए खाद तक नहीं खरीद सके, दवा दारू और भोजन की बात तो दूर है तो क्या होगा,

आपने कभी सोचा कि आपका अन्नदाता कितनी बुरी हालत में है, क्या दशा है उसकी, आप एसी में सोते रहोगे और वो धूप में जलता रहेगा, कब चलेगा ऐसा, वो तो एकजुटता नहीं उनमें. कोई ठीक ठाक दूरदर्शी नेता नहीं है उनका, नही तो एक दिन वो अपनी जरूरत से ज्यादा अन्न उपजाना बंद कर देंगे और तुम देखते रहना एसी में बैठकर सास बहू के झगड़े और क्रिकेट मैच।

यह तो महज शुरुआत है दिन कितने बुरे आने वाले हैं इसका अंदाजा नहीं है आपको,

दुनिया कोई दुकान नहीं है जहा सिर्फ खरीद बिक्री से ही जिन्दगी चले, इसके लिए हवा, पानी, रोटी, ज्ञान और जड़ की जरूरत है,

किसी दुकानदार से पूछो, जो उसकी दुकान में मंदी आती है, खरीद बिक्री कम होती है तो क्या होता है उसके परिवार का,

जड़ नहीं है, जमीन पर अनाज नहीं उपजा सकता तो भूखे मरने की नौबत आती है, जमीन बुरे से बुरे वक्त में भी पेट भरने लायक कुछ ना कुछ दे ही देती है।

तो तुम खोलते दुकान बना तो सारी दुनिया को बाजार, बेचते रहो सबकुछ और तुम्हारे लिए गेहुं उपजाने वाला मरता रहे...

ध्यान रखना ये ज्यादा दिन नहीं चलने वाला,,,
जब तुम्हारी दुकान बंद होगी तो

भुखमरी आएगी आएगी, और तब किसान के पास इतना अनाज नहीं होगा जो वो तुम्हारी जान बचा सके..


कृष्ण

VARUN ROY said...

भटके हुए हिन्दुस्तानी जी,
बातें तो आपकी भटकी हुई नहीं है बल्कि बड़ी पते की बातें की है आपने. जहाँ तक शरद पवार जी के नए वेंचर की बात है तो वही क्यों देश का न कोई नेता और न ही कोई उद्द्योगपति देश या देश की जनता के बारे में सोच रहा है. हर कोई दूसरे का गला काट कर अपने लिए दौलत जुटाने में लगा हुआ है या वोट जुटाने में. ललित मोदी ने लगता है शरद पवार को भी धंधा करना सिखा दिया है. किसानों की मौत इनके लिए कोई मायने नहीं रखती है.
वरुण राय

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाई,मैंने हमेशा कहा है कि अगर सब हिन्दुस्तानी आपके जैसे भटक जाएं तो देश सही राह पर आ जाएगा,दर असल नेताओं की हड्डियां कैल्शियम कार्बोनेट की न हो कर "चूतियम सल्फेट" नामक एक दुर्लभ रसायन की होती हैं जिसके कारण वे सिर्फ़ पेट और पेट के नीचे के चिन्तन में रहते हैं देश भाड़ में जाए या गधे की .....
लेख में लिया मुद्दा निचारणीय है,ये चूतिये जैविक ईंधन के लिये जैट्रोफ़ा इस्तेमाल नहीं करवाएंगे साले और न ही सौर ऊर्जा पर शोध के रास्ते खुलने देंगे...

Anonymous said...

भाई,
जब देश का कृषि मंत्री कृषक को छोर के गिल्ली डंडा के पीछे भागे तो बेचारे किसानों का कहना ही क्या. मरते रहें. जब से पवार साब कृषि के पावर में आये हैं तब से ही पहले डालमिया से और अब आई पी एल . भाई लोगों पहले तो तय करो की शरद पवार नाम का जीव कृषि मंत्री है या नहीं और अगर है तो हमारे देश का मुखिया ससुरा का चरा रहा है जो उसका मंत्री विभाग को छोर के गिल्ली डंडा बजा रहा है.
वैसी भी चीनी किंग का धंधा तो चल ही रहा है बाकी ससुरे माँ चुदायें मंत्री के ढेले से.

जय जय भडास.
जय जय भडास.