Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

6.10.08

ये देश है बस अवकाशों का ...... इस देश का यारों क्या कहना


एक तरफ़ निजी क्षेत्र हैं जहाँ छुटि्टयों के लिए इन्तजार करना पड़ता है और दूसरी तरफ़ सरकारी कार्यालय हैं जो खुलने से ज्यादा बंद रहते हैं [ खुलते भी हैं तो कितना काम करते हैं ? ] विदेशों की नक़ल कर के उन्होंने सप्ताह में दो दिन छुट्टी कर रखी है ............................
इसके बाद तुर्रा ये की देशी लाभ भी वे ले रहे हैं ! हर छोटे बड़े त्योहार पर छुट्टी उस पर से खोज -खोज कर महापुरुषों की जयंती पर अवकाश घोषित किया जाता है ! हर बार वेतन आयोग अपनी रिपोर्ट में छुटि्टयां कम करने की सिफारिश करता है , लेकिन वेतन तो बढ़ जाता है पर छुटि्टयां हैं की कम होने की बजाए और बढ़ जाती हैं ! इसके बाद सीएल , ईएल और न जाने कितनी छुटि्टयां अलग से !


अगर अध्ययन - अध्यापन से जुड़े हैं तब तो कार्य दिवसों से ज्यादा छुटि्टयां के दिन होंगे ! अब जो कार्य दिवस हैं उनमे भी देर से आना , जल्दी जाना , और बीच के डेढ़ घंटे लंच ! जाहिर है कि इन सबके बीच काम का वक्त ही कहाँ बचता है ? इसलिए सरकारी मुलाजिमों को काम करते देखना भी एक दुर्लभ दर्शन ही है !


लाजिमी है कि जब काम के लिए वक्त कम है तो फ़िर कौन सा काम होना है , कौन सा नही, इसके लिए प्राथमिकताएं निर्धारित करनी होंगी अब जिसे अपना काम करवाना हो , वह फाइल को प्राथमिकता में लाये और इसके लिए क्या करना पड़ता है , अगर वह नही जानता तो फ़िर फाइलों के ढेर में उसकी फाइल कैसे शहीद हो जायेगी , यह बेचारी फाइल को भी नही पता चलेगा !


ब्रिटिश जमाने में सरकारी काम काज के ये तौर तरीके स्टील फ्रेम की मजबूती के लिए अपनाए गए थे ! आज ये किसे मजबूत कर रहे हैं यह तो तथाकथित जिम्मेदार लोग ही बता सकते हैं !

6 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

wah bhai wah,bahut khub

Anonymous said...

भाई,
ये हुई न भड़ास. बढ़िया लिखा है भैये.

Anonymous said...

बहुत सही भाई ........ आपने तो मेरे दिल की बात कह दी , क्या खूब कहा है आपने - "सरकारी मुलाजिमों को काम करते देखना भी एक दुर्लभ दर्शन ही है".............. काश हुक्मरान भी इसे पढ़ें और कुछ ठोस उपाय करें |

- राजीव लोचन
बरेली

Anonymous said...

सही कहा जनाब आपने , सौ फीसदी सच कहा ..... हमने अंग्रेजों की सारी नक़ल कर ली, उनके जैसे कपड़े पहन लिए, खाना अपना लिया , बोल चाल अपना ली , लेकिन अपने काम के प्रति समर्पण की भावना नही सीख पाये , श्रम को महत्त्व देना नही सीख पाये , समय का पाबन्द होना और अनुशासन नही सीख सके , ............काश हमने उनकी ये खूबियाँ भी अपनाई होती तो मेरा भारत वाकई महान होता

- जसीम परवेज कुरैशी
जीरो रोड , इलाहबाद

Anonymous said...

जब भी कभी ज्यादा छुट्टियों की बात होती है सरकारी कर्मचारियों को ऐसे कोसा जाता है जैसे सारी छुट्टियों की या तो मांग उनके द्वारा की गयी हो या सारी छुट्टिया सरकारी कर्मचारियों ने ही घोषित की हो. यह सही है की छुट्टियां ज्यादा है मगर सरकारी कर्मचारियों को कोसने से पहले यह तो देखें की इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
त्योहारों पर जैसे होली, दीवाली, दशहरा, राम कृष्ण के जन्म दिवस, ईद, बकरीद, मुहर्रम, क्रिसमस, गुड फ्राई डे, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, जैसे अवसरों पर छुट्टी से किसी को विरोध नहीं है पर ज़रा यह तो बताएं कि इन जयंतियों पर छुट्टी कौन करता है? क्या इन छुट्टियों की मांग सरकारी कर्मचारी करते हैं? अगर नही तो ज्यादा छुट्टियों के लिए वे दोषी कैसे है?
सारी की सारी छुट्टियां राज नेताओं द्वारा घोषित की जाती है और बिना इसके सारे पहलुओं को जाने कोई बात नही करनी चाहिए मगर हमारी आदत हो गयी है हर काम के लिए सरकारी कर्मचारियों को दोषी ठहराने की. ज़रा बाकी लोग भी तो यह देख लें की वे कितने दूध के धुले, सत्यवादी, ईमानदार, व्यवस्था को मानने वाले, नियमों का पालन करने वाले हैं

Anonymous said...

जब भी कभी ज्यादा छुट्टियों की बात होती है सरकारी कर्मचारियों को ऐसे कोसा जाता है जैसे सारी छुट्टियों की या तो मांग उनके द्वारा की गयी हो या सारी छुट्टिया सरकारी कर्मचारियों ने ही घोषित की हो. यह सही है की छुट्टियां ज्यादा है मगर सरकारी कर्मचारियों को कोसने से पहले यह तो देखें की इसके लिए जिम्मेदार कौन है?
त्योहारों पर जैसे होली, दीवाली, दशहरा, राम कृष्ण के जन्म दिवस, ईद, बकरीद, मुहर्रम, क्रिसमस, गुड फ्राई डे, स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, जैसे अवसरों पर छुट्टी से किसी को विरोध नहीं है पर ज़रा यह तो बताएं कि इन जयंतियों पर छुट्टी कौन करता है? क्या इन छुट्टियों की मांग सरकारी कर्मचारी करते हैं? अगर नही तो ज्यादा छुट्टियों के लिए वे दोषी कैसे है?
सारी की सारी छुट्टियां राज नेताओं द्वारा घोषित की जाती है और बिना इसके सारे पहलुओं को जाने कोई बात नही करनी चाहिए मगर हमारी आदत हो गयी है हर काम के लिए सरकारी कर्मचारियों को दोषी ठहराने की. ज़रा बाकी लोग भी तो यह देख लें की वे कितने दूध के धुले, सत्यवादी, ईमानदार, व्यवस्था को मानने वाले, नियमों का पालन करने वाले हैं