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28.10.08

रात को कोई रोया था !!

रात आँख खुल गयी
एक सपने ने छुआ था !
आँख बड़ी नम थी,शायद्
रात को मैं रोया था !!
आज वो खिल-खिल उठा
बीज जो मैंने बोया था !!
देर तक सोता ही रहा
बड़े ही दिनों से सोया था!!
आज वो बिखर ही गया
ख्वाब जो मैंने संजोया था !
मुझसे प्यार मांगता था
खुदा रु-ब-रु रोया था !!
था वो जनाजे में शामिल
जिसने मुझे डुबोया था !!
वो मेरे नजदीक था, पर
करवट बदल कर सोया था !
उसके आंसुओं से "गाफिल"
अपना जिस्म भिंगोया था !!

1 comment:

वेद रत्न शुक्ल said...

"था वो जनाजे में शामिल
जिसने मुझे डुबोया था !!" सुन्दर