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19.10.08

शर्म से कहो हम पत्रकार है

त्योहारों का सीज़न विज्ञापनों का सीज़न अखबारों के लिएएक बड़े अख़बार का दफ्तर ,मीटिंग चल रही है पत्रकारों की, विषय है कैसे ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन लाये जाए । सब कलम के सिपाही गुलामों की हालत मैं खडे थे । सम्पादक महोदय का भाषण चल रहा था ।

तुम लोग यह समझ लो हम कोई खेराती संस्था नही चला रहे है .१० रूपये लागत आती है अख़बार की और बेचते है ३ रूपये में । सबको विज्ञापन लाने है कैसे भी लाओ अगर पोलटिकल न्यूज़ छापनी है तो नेताओं से मांगो विज्ञापन ।

जब ही तुम किसी ऑफिस में जाते हो वहा अपने बाप का नाम नही बताते हो सिर्फ़ यह बताते हो हम पत्रकार है और .................... अख़बार से है ।

और कई बातें जो पाठक समझ चुके होंगे । क्या यह कहना उचित न होगा "शर्म से कहो हम पत्रकार है "

5 comments:

hridayendra said...

are bhaiyya tumhe aaj pata chal ki patrakaar kahlaana sharm ki baat hai...ye to badi puraani baat ho gayi..

SHEHZAD AHMED said...

jrrurt aisi vyvastha me bhi hme apne patrkaar ko jgaye rakhne ki hai

MANISH PANDEY LUCKNOW said...
This comment has been removed by the author.
MANISH PANDEY LUCKNOW said...

भाई साहब आपकी इस व्यथा से मै भी दुखी पर क्या किया जाए अगर आप के पास कोई ऐसा तरीका है तो कृपया बताये जिससे इश पीडा से बचा जा सके .

नदीम अख़्तर said...

लगता है आप अभी इस फील्ड में नये-नये आये हैं या फिर आपको वास्तविक अनुभव कम है। अगर आप अनुभवि होते, तो ऎसी पोस्ट स‌े बेहतर अपनी कलम को बंद ही रखना पसंद करते। स‌िर्फ लिखने के लिए लिख रहे हैं, तो आप धन्य हैं। वैसे ये स‌ब बातें लिखने की नहीं होतीं। अखबार भी एक परिवार होता है, जिसके भीतर की बात अपने परिवार के ही बीच रहनी चाहिए, तो ज़्यादा बेहतर है।