राजेन्द्र जोशी
देहरादून : प्रदेश में काबिज पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के शासनकाल के दौरान बांटी गई लाल बत्तियों के विरोध के बूते सत्ता हासिल करने वाली भाजपा सरकार भी अब उसी राह पर चल निकली है। यही कारण है भाजपा सरकार द्वारा प्रदेश के 23 पदों को आफिस आफ प्रोफिट की श्रेणी से बाहर करने को इसी रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जा रहा है कि अब भाजपा सरकार भी अपने प्रमुख कार्यकर्ताओं के साथ ही कुछ विधायकों को लाल बत्ती से नवाजने जा रही है यह वही भाजपा है जिसने विधानसभा चुनाव में लालबत्ती को मुद्दा बनाया था और इस समेत कई अन्य मुद्दों के साथ ही वह कांग्रेस के सामने खड़ी थी, और कांग्रेस से सत्ता छीनने में कामयाब हुई थी। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में काबिज भाजपा बीते विधानसभा चुनाव के पहले कांग्रेस सरकार द्वारा बेतहाशा लालबत्तियों के आवंटन, मुख्यमंत्री राहत कोष के आवंटन के साथ ही फिजूल खर्ची सहित उद्योगपतियों को रियायतें दिये जाने को मुद्दा बनाकर सत्ता में आई थी। इतना ही नहीं भाजपा ने कांग्रेस द्वारा गार्डनर को विधानसभा में एंग्लो इंडियन सदस्य के रूप में नामित किये जाने को भी मुद्दा बनाया था और वह इसके खिलाफ राज्यपाल से लेकर उच्च न्यायालय तथा चुनाव आयोग तक में गयी थी। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में यह साफ दिखाई देने लगा है कि भाजपा सरकार भी उसी कांग्रेसी सरकार के पद चिन्हों पर चलती नजर आ रही है। बीते दिन भाजपा सरकार ने जहां अपने कार्यकर्ताओं तथा विधायकों में सरकार के प्रति उठ रहे विरोध के स्वरों को दबाने के लिए प्रदेश के तमाम विभागों के 23 पदों को आफिस आफ प्रोफिट के दायरे से बाहर कर उन्हे इन पदों पर एडजस्ट करने की कवायद शुरू कर दी है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार अगले कुछ दिनों में कई भाजपाईयों को इन पदों पर बैठा दिया जाएगा इसके लिए भाजपा संगठन ने सूची बनानी शुरू कर दी है कि किस कार्यकर्ता को किस पद पर एडजस्ट किया जायेगा। ईधर भाजपा सूत्रों का कहना है कि सरकार इन्हे केवल दायित्वधारी तक ही सीमित करना चाहती है तथा इन पदों पर काबिज कार्यकर्ताओं को मानदेय भी दिया जाएगा। दायित्वों से नवाजे जाने के मामले पर नेता प्रतिपक्ष डा0 हरक सिंह रावत का कहना है कि तिवारी सरकार ने तो सरकार के तीन साल बाद अपने कार्यकर्ताओं को दायित्वधारी बनाया जबकि भाजपा ने मात्र 20 महीने में ही अपने कार्यकर्ताओं को दायित्वों से नवाजने की तैयारी कर दी है। उनका कहना है कि नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाली भाजपा को भी यही सब करना था तो उसने कांग्रेस की आलोचना क्यों की थी और प्रदेश की जनता को क्यों झूठे सपने दिखाये थे। मामले में डा0 हरक सिंह रावत का साफ कहना है कि मुख्यमंत्री अपने खिलाफ उपजे असंतोष को दबाने के लिए यह सब कर रहे हैं। उन्होने कहा कि पूर्व कांग्रेस सरकार ने लालबत्ती से नवाजे गये दायित्वधारियों को केवल बैठक में जाने के दौरान ही टैक्सी किराया व मामूली रकम को मानदेय के रूप में देने की ही अनुमति दी थी लेकिन कांग्रेस सरकार पर फिजूलखर्ची का आरोप लगाने वाली भाजपा ने अब इससे आगे बढक़र अपने कार्यकर्ताओं को दायित्वों के साथ ही मानदेय में कई गुना बढ़ोत्तरी कर इसे साढ़े आठ हजार से दस हजार रूपये तथा असीमित यात्रा व्यय तक देने के आदेश दिये हैं। उन्होने कहा जहां तक कांग्रेस शासनकाल में मुख्यमंत्री राहत कोष की बंदरबांट का मामला भाजपा द्वारा उठाया गया और इसे चुनावी मुद्दा तक बनाया गया लेकिन स्थिति इसके एकदम उलट है। प्रदेश सरकार ने जिस आरएसएस के व्यक्ति को इसे बांटने का जिम्मा सौंपा है उसकी पौ बारह हो गयी है। अंधा बांटे रेवड़ी अपने-अपने को देय की कहावत यहां चरितार्थ हो रही है प्रदेश मुख्यमंत्री के विवेकाधीन कोष का जमकर दुरपयोग किये जाने की शिकायतें आम हो गयी है। इस मामले पर कांग्रेस के नेता व नेता प्रतिपक्ष डा0 हरक सिंह रावत का तो साफ कहना है कि तिवारी जी के शासनकाल में उन पर उंगली उठाने वाली भाजपा तो उससे आगे चल निकली है। उनका कहना है कि कांगे्रस शासनकाल में मुख्यमंत्री राहत कोष का लाभ प्रदेश के हर उस जरूरतमंद व्यक्ति को मिला जिसको जरूरत थी लेकिन वर्तमान सरकार ने इसे आरएसएस कोष बनाकर रख दिया है और जिस जरूरतमंद व्यक्ति को विवेकाधीन कोष से आर्थिक सहायता की जरूरत है उसे धक्के खाने पड़ रहे हैं। कांगे्रसी नेता का कहना है कि मितव्ययता की बात करने वाली भाजपा सरकारी संसाधनों का जमकर दुरपयोग कर रही है। मंत्रिमंडल की बैठक में कोरम पूरा करने के लिए बीमार मंत्रियों को हैलीकाप्टर से लाया जा रहा है। सरकार संवेदनहीन हो चुकी है इसका उदाहरण यह है कि बीते दिनों हुई बस दुर्घटनाओं में घायलों को यदि हैलीकाप्टर से पहाड़ी क्षेत्रों से अस्पतालों तक पहुंचाया जाता तो कई घायल बच सकते थे लेकिन सरकार के पास उनके लिए समय नहीं है। मुख्यमंत्री केवल हवाई जहाज अथवा हैलीकाप्टर से यात्रा कर रहे हैं। दुर्घटनाओं के बाद अस्पतालों में जीवन मौत से जूझ रहे घायलों को देखने का वक्त न तो मुख्यमंत्री के पास है और न उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों के पास।
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